Brahmakamal cultivation

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प्याज (Onion)

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आलू (Potato)

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Thrips (तेला)

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टमाटर (Tomato)

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Lumpy Skin Disease(गाँठदार त्वचा रोग)

Table Of Content परिचय लक्षण रोग फेलने के कारण इससे होने वाले नुकसान (दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक) इसकी रोकथाम के उपाय इसको फेलने से केसे रोकें Search परिचय भारत में पिछले एक महीने के दौरान लंपी स्किन डिजीज की वजह से काफी ज्यादा पालतू पशुओं की मौत

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ब्रह्मकमल की खेती

ब्रह्मकमल जैसा कि नाम से पता चलता है कि ब्रह्मकमल का संबंध सृष्टि के रचनाकार ब्रह्मा से है। वेदों और अन्य हिंदू धार्मिक ग्रंथों में ब्रह्मकमल का वर्णन मिलता है। इसके अनुसार इस पुष्प का संबंध ब्रह्मा से बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि इसी पुष्प पर ब्रह्मा विराजमान होते हैं, इसे ब्रह्मा का आसान भी कहा जाता है। इस पुष्प का वर्णन वेदों में भी मिलता है। भारत के हिमालय क्षेत्र में ये पुष्प काफी संख्या में पाया जाते है। यह उत्तराखंड राज्य का राजकीय पुष्प है। उत्तराखंड के कई जिलों में इसकी खेती की जाती है। ये पुष्प कमल के समान दिखता है लेकिन ये पानी में नहीं, पेड़ पर उगता है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह हैं कि बह्मकमल फूल रात में खिलता है।

क्या है बह्मकमल/बह्मकमल का परिचय

कमल के पुष्प अनेक तरह के होते हैं। इनमें से बह्मकमल अपनी खासियत के कारण सदैव चर्चा में बना रहता है। ये एक रहस्मयी पुष्प है। इसे जानने के लिए हमेशा से ही लोगों में उत्सुकता बनी रहती है। पौराणिक ग्रंथों में इसका वर्णन मिलता है। इसे कई देवताओं से जोडक़र कथाओं में इसका वर्णन किया गया है। इसका पुष्प कभी पानी में नहीं खिलता। इसका पेड़ होता है। पत्ते बड़े और मोटे होते हैं। पुष्प सफेद होते हैं। उत्तराखंड में ब्रह्म कमल की 24 प्रजातियां मिलती हैं, वहीं पूरे विश्व में इसकी 210 प्रजातियां पाई जाती है। ब्रह्मकमल का वानस्पतिक नाम सौसुरिया ओबवल्लाटा है। ये एस्टेरेसी कुल का पौधा है। सूर्यमुखी, गेंदा, डहलिया, कुसुम एवं भृंगराज इस कुल के अन्य प्रमुख पौधे हैं। ब्रह्म कमल के पौधों की ऊंचाई 70 से 80 सेंटीमीटर होती है। बैगनी रंग का इसका पुष्प टहनियों में ही नहीं बल्कि पीले पत्तियों से निकले कमल पात के पुष्पगुच्छ के रूप मे खिलता है। जिस समय यह पुष्प खिलता है उस समय वहां का वातावरण सुगंधित हो जाता है। ब्रह्मकमल की खुशबू या गंध बहुत तेज होती है। 

भारत में कहां-कहां पाया जाता है ब्रह्मकमल का पौधा

ब्रह्मकमल केदारनाथ से 2 किलोमीटर ऊपर वासुकी ताल के समीप तथा ब्रह्मकमल नामक तीर्थ पर ब्रह्मकमल सर्वाधिक उत्पन्न होता है। इसके अलावा फूलों की घाटी एवं पिंडारी ग्लेशियर, रूपकुंड, हेमकुंड, ब्रजगंगा, में यह पुष्प बहुत अधिक पाया जाता है। भारत में इसे ब्रह्म कमल और उत्तराखंड में इसे कौल पद्म नाम से जाना जाता हैं। 

साल में केवल एक बार आते हैं इस पेड़ पर पुष्प

ब्रह्मकमल पुष्प रात्रि में 9 बजे से 12.30 के बीच ही खिलता है। ब्रह्मकमल साल में केवल एक महीने सितंबर में ही पुष्प देता है। इसके पौधे के एक तने में सिर्फ एक ही पुष्प लगता है। ब्रह्मकमल कमल के खिलने का समय जुलाई से सितंबर है। इस पुष्प का वर्णन वेदों में भी मिलता है महाभारत के वन पर्व में इसे सुगन्धित पुष्प कहा गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस पुष्प कों केदारनाथ स्थित भगवान शिव को अर्पित करने के बाद विशेष प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। साल में सिर्फ एक रात खिलने वाला रहस्यमयी फूल ब्रह्म कमल इस बार अक्टूबर के महीने में खिलता दिखा। विशेषज्ञ इस बात को लेकर हैरान हैं क्योंकि दैवीय माने जाने वाले इस फूल के खिलने का सही वक्त जुलाई-अगस्त है, वो भी किसी एक दिन ही खिलता है। अब उत्तराखंड के चमोली में इसके ढेर के ढेर खिले हुए हैं। आमतौर पर ये फूल काफी दुर्गम स्थानों पर होता है और कम से कम 4500 मीटर की ऊंचाई पर ही दिखता है हालांकि इस बार ये 3000 मीटर की ऊंचाई पर भी खिला दिखाई दिया है।

ब्रह्मकमल का धार्मिक महत्व

ब्रह्म कमल को ब्रह्म देव का प्रिय फूल माना जाता है। मान्यता है कि दुनिया की रचना ब्रह्मा ने ही की और ये फूल उनका आसन है। हिंदू धर्म की किताबों में अक्सर ब्रह्म देवता को कमल के फूल पर बैठा दिखाया जाता है। महाभारत और रामायण में भी इस कमल फूल के बारे में बताया गया है। ऐसा कहा जाता है कि रामायण में लक्ष्मण के बेहोश होने के बाद इलाज और ठीक होने पर देवताओं ने स्वर्ग से जो फूल बरसाए, वे ब्रह्म कमल ही थे। इसे नंदादेवी का भी प्रिय पुष्प माना जाता है। नंदादेवी के अलावा केदारनाथ और बद्रीनाथ में भी ये पुष्प देवताओं पर चढ़ाया जाता है।

ब्रह्मकमल से कई रोगों का उपचार

ब्रह्मकमल के फूल का इस्तेमाल कई प्रकार के रोगों को ठीक करने के लिए भी किया जाता है। इसमें विशेषकर पुरानी खांसी को मिटाने में इसका इस्तेमाल किया जाता है। वहीं कैंसर जैसी असाध्य बीमारियों के इलाज का भी दावा किया जाता है। हड्डियों के दर्द में भी ब्रह्मकमल के फूल के रस का पुल्टिस बांधना आराम देता है। इसके अलावा लिवर संक्रमण की बीमारी तथा कई रोगों में इसका इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि अभी तक ऐसे किसी दावे की वैज्ञानिक पुष्टि नहीं हो सकी है लेकिन स्थानीय स्तर पर ये काफी प्रचलित है। 

उत्तराखंड में होने लगी है ब्रह्मकमल खेती

बह्मकमल की काफी मांग होने के कारण उत्तराखंड में इसकी खेती होने लगी है। ये पिंडारी से लेकर चिफला, रूपकुंड, हेमकुण्ड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ तक पाया जाता है। बता दें कि भारत के अलावा तिब्बत में भी इस फूल की काफी मान्यता है। वहां इसे आयुर्वेद से मिलती-जुलती शाखा के तहत इसका दवा बनाने में उपयोग लिया जाता है।

कैसे लगाएं ब्रह्मकमल का पौधा

ब्रह्मकमल लगाने के लिए आपको सबसे पहले मिट्टी को तैयार करना है। इसके लिए आपको 50 प्रतिशत सामान्य मिट्टी और 50 प्रतिशत गोबर की पुरानी खाद को मिलकर तैयार कर लेना है। इसके बाद आपको ब्रह्मकमल की पत्ती को करीब तीन से चार इंच की गहराई में लगाना है। ब्रह्मकमल को लगाने के बाद गमले में भरपूर मात्रा में पानी डाल दें। इसके बाद गमले को किसी ऐसे स्थान पर रख दें, जहां पर सूरज की रोशनी सीधी न आती हो। क्योंकि ब्रह्मकमल को ज्यादा गर्मी पसंद नहीं होती है। यह ठंडे स्थान पर बहुत अच्छी तरह से वृद्धि करता है। करीब एक महीने में सभी पत्तियों से जड़े निकलना शुरू हो जाती हैं। जब पौधे बड़े हो जाएं, तो इन्हें मात्र इतना पानी दें ताकि सिर्फ नमी बनी रहे। क्योंकि इन्हें पानी की बहुत कम आवश्यकता होती है। 
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