चावल(Rice)

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धान की खेती के लिए अधिक जलधारण क्षमता वाली मिटटी जैसे- चिकनी, मटियार या मटियार-दोमट मिटटी प्रायः उपयुक्त होती हैं । धान की खेती के लिए चिकनी काली मिट्टी सबसे उपयुक्त होती हैं क्योंकि चिकनी मिट्टी में जल धारण की क्षमता अधिक होती हैं इस तरह की मिट्टी में एक बार पानी देने के बाद कई दिनों तक पानी भरा रहता है । भारत में इसकी खेती उत्तर से लेकर दक्षिण भारत के ज्यादातर राज्यों में की जा रही है । धान की खेती के लिए जमीन का पी.एच. मान 5.5 से 6.5 तक होना चाहिए हालांकि इससे कम और ज्यादा पी.एच. वाली जमीनों को उपचारित कर उनमें भी इसकी खेती की जा रही है ।

धान को उन सभी क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है जहां 4 से 6 महीनों तक औसत तापमान 21 डिग्री सेल्सियस या इससे अधिक रहता है । फसल की अच्छी बढ़वार के लिए 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तथा पकने के लिए 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है । रात्रि का तापमान जितना कम रहे फसल की पैदावार के लिए उतना ही अच्छा है लेकिन 15 डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं गिरना चाहिए ।

इसके लिए मानसून का सीजन प्रारम्भ होने से दो हफ्ते पहले यानि 15-20 जून तक बुवाई कर देनी चाहिए ।

धान की खेती के लिए शुरुआत में खेत की दो से तीन गहरी जुताई कर मेडबन्दी कर दे खेत की ये तैयारी बारिश के मौसम से पहले करें जिससे खेत में बारिश का पानी भर जाए । अगर बारिश ना हो तो खेत में पानी भर देना चाहिए उसके बाद पानी भरी जमीन में मिट्टी पलटने वाले हल से दो से तीन अच्छी जुताई करनी चाहिए इससे मिट्टी में कीच बन जाता है जिसमें धान की रोपाई की जाती है । जुताई के वक्त खेत में लगभग 12 गाडी गोबर की खाद प्रति एकड़ के हिसाब से डालनी चाहिए । खाद को खेत में डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें इसके अलावा प्रति हेक्टेयर 25 से 30 किलो नाइट्रोजन, 40 किलो फास्फोरस और 40 किलो पोटाश की मात्रा को खेत में धान की रोपाई से पहले की जाने वाली आखिरी जुताई के वक्त डालनी चाहिए ।

 बासमती 2000, सुपर कर्नेल बासमती, पीके-385 बासमती , पीके-118 बासमती, सुपरा बासमती ,सुपरफाइन बासमती ,किरन बासमती ,परी बासमती ।

बीज को नर्सरी में उगाने से पहले उसे स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट या प्लान्टो माइसिन के घोल में एक रात के लिए डुबो दें जिससे पौधे में झुलसा की बिमारी नही होती है और यदि झुलसा की समस्या क्षेत्र में नही हो तो बीज को कार्बेन्डाजिम या थिरम से उपचारित कर बोना चाहिए। बीज को क्यारियों में उगाने के 10 दिन बाद उसमें ट्राइकोडर्मा का छिडकाव कर दें और खैरा रोग से बचाव के लिए 15 दिन बाद जिंक सल्फेट और बुझे हुए चूने को उचित मात्रा को क्यारियों में छिड़क दें ।

नर्सरी लगाने का सही समय :- मध्यम व देर से पकने वाली किस्मों की बुबाई जून के दूसरे हफ्ते तक करें और जल्दी पकने वाली किस्मों की बुबाई जून के दूसरे हफ्ते से तीसरे हफ्ते तक करें ।

नर्सरी के लिए क्यारियां बनाना :- नर्सरी के लिए 1.0 से 1.5 मीटर चौड़ी व 4 से 5 मीटर लंबी क्यारियां बनाना सही रहता है ।

 नर्सरी के लिए तैयार की गई क्यारियों में उपचारित किए गए सूखे बीज की 50 से 80 ग्राम मात्रा का प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से छिड़काव करें । धान की मोटे दाने वाली किस्मों के लिए 30 से 35 किलोग्राम व बारीक दाने वाली किस्मों के लिए 25 से 30 किलोग्राम बीज की प्रति हेक्टेयर की दर से जरूरत होती है । नर्सरी में ज्यादा बीज डालने से पौधे कमजोर रहते हैं और उनके सड़ने का भी डर रहता है ।

धान की बिजाई रोपण विधि से की जाती है । धान के पौधे की रोपाई किसान भाई हाथ और मशीन दोनों से करते है लेकिन वर्तमान में मेडागास्कर विधि का उपयोग सबसे ज्यादा किया जा रहा है इस विधि में हाथ से धान की पौध को खेत में लगाया जाता है इस विधि को श्री पद्धति के नाम से भी जाना जाता है । इस विधि में धान को 15 सेंटीमीटर की दूरी पर पंक्तियों में लगाते है दो पंक्तियों के बीच भी 15 सेंटीमीटर की दूरी रखते हैं । एक जगह पर धान के दो से तीन पौधे एक साथ लगाते हैं । इस विधि से धान की उपज ज्यादा होती हैं । साधारण तरीके में धान को 10 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाया जाता है जिससे पौध भी ज्यादा लगती और पैदावार भी सामान्य रहती है ।

धान के पौधे को पानी की ज्यादा जरूरत होती है इस कारण इसके पौधे की उचित समय पर सिंचाई करते रहना चाहिए । धान की सिचाई के वक्त पौधों की कुछ ऐसी अवस्थाएं आती है जब पौधे को पानी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है । पौधे को खेत में लगाने के बाद कल्ले फूटने, बाली निकलने, फूल खिलने और बालियों में दाना भरते समय खेत में पानी भरा रहना चाहिए क्योंकि इन वक्त पर अगर खेत में पानी नही भरा रहेगा तो पौधा ना तो अच्छे से विकास करेगा और ना ही पैदावार अच्छी होगी । धान के पौधे को लगभग 15 से 20 सिंचाई की जरूरत होती है. जब भी खेत में पानी दिखाई देना बंद हो जाए और ऊपरी जमीन सूखने लगे तभी पौधों को पानी दे देना चाहिए ।

30 से 40 किलो नाइट्रोजन कल्ले बनते वक्त पौधों की सिंचाई के साथ दें और लगभग 20 किलो नाइट्रोजन बाली में बीज बनने से पहले पौधों को देनी चाहिए । यूरिया की पहली तिहाई मात्रा का प्रयोग रोपाई के 5 से 8 दिन बाद करें जब पौधे अच्छी तरह से जड़ पकड़ लें दूसरी एक तिहाई यूरिया की मात्रा कल्ले फूटते समय (रोपाई के 25 से 30 दिन बाद) और शेष एक तिहाई हिस्सा फूल आने से पहले (रोपाई के 50 से 60 दिन बाद) खड़ी फसल में छिड़काव करें ।

धान के खरतपवार नष्ट करने के लिए खुरपी या पेडीवीडर का प्रयोग किया जा सकता है । रासायनिक खरपतवार नियंत्रण के लिए खरपतवारनाशी दवाओं का प्रयोग करना चाहिए । खरपतवारनाशी रसायनों की आवश्यक मात्रा को 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से समान रूप से छिड़काव करना चाहिए । मुख्य खरपतवारनाशी :- पेंडीमेथालिन, आक्सीफ्लोरफेन, फेनाक्जाफ्राप, एनिलोफास इत्यादी ।

तना छेदक :- रोपाई के 30 दिन बाद ट्राइकोग्रामा जैपोनिकम (ट्राइकोकार्ड) 1 से 1.5 लाख प्रति हेक्टेयर प्रति सप्ताह की दर से 2 से 6 सप्ताह तक छोड़ें ।

पत्ती रेखा :- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर एग्रीमाइसीन या स्ट्रेप्टोसाइक्लिन का छिडकाव करना चाहिए ।

झौंका रोग :- इसके लिए थीरम 75 प्रतिशत की 2.5 ग्राम अथवा कार्बेडाजिम 50 प्रतिशत डब्ल्यूपी की 2.0 ग्राम मात्रा प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचार करना चाहिए ।

भूरा धब्बा रोग :-  इस रोग की रोकथाम के लिए मैंकोजेब की 2.5 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करते हैं ।

सफेदा रोग  :- इसके नियंत्रण के लिए 5 कि.ग्रा. फेरस सल्फेट को 20 कि.ग्रा. यूरिया अथवा 2.50 कि.ग्रा. बुझे हुए चूने को प्रति हैक्टर लगभग 1000 लीटर पानी में घोल का छिड़काव करना चाहिए ।

 बालियां निकलने के लगभग एक माह बाद सभी किस्में पक जाती हैं । कटाई के लिए जब 80 प्रतिशत बालियों में 80 प्रतिशत दाने पक जाएं तथा उनमें नमी 20 प्रतिशत हो वह समय उपयुक्त होता है । कटाई दरांती से जमीन की सतह पर व ऊसर भूमियों में भूमि की सतह से 15 से 20 सेंटीमीटर ऊपर से करनी चाहिए । मड़ाई साधारणतया हाथ से पीटकर की जाती है ।

शक्ति चालित श्रेसर का उपयोग भी बड़े किसान मड़ाई के लिए करते हैं । कम्बाईन के द्वारा कटाई और मड़ाई का कार्य एक साथ हो जाता है । मड़ाई के बाद दानों की सफाई कर लेते हैं सफाई के बाद धान के दानों को अच्छी तरह सुखाकर ही भण्डारण करना चाहिए । भण्डारण से पूर्व दानों को 10 प्रतिशत नमी तक सुखा लेते हैं ।

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