- भूमि
- तापमान
- उचित समय
- भूमि की तेयारी
- उच्चतम वैरायटी
- बीज की मात्रा
- बीज उपचार
- बिजाई का तरीका
- सिंचाई
- उर्वरक
- खरपतवार
- रोग नियंत्रण
- अब फसल पकने का इंतजार करें
कद्दू की खेती को करने के लिए उचित जल निकासी वाली उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है । कद्दू की फसल की अच्छी वृद्धि के लिए गर्म और आद्र दोनों ही जलवायु को उपयुक्त माना जाता है । इसकी फसल में अधिक पानी की आवश्यकता होती है, किन्तु अधिक जलभराव वाली भूमी को इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है । कद्दू की अच्छी फसल के लिए जमीन का P.H. मान 5 से 7 के मध्य होना चाहिए ।
तकरीबन 25 से 30 डिग्री सेल्सियस के तापमान में इसके पौधे अच्छे से विकास करते हैं।
कद्दू की खेती साल में दो बार की जा सकती है। खरीफ में बुवाई का समय जून – जुलाई और जायद में बुवाई का समय जनवरी – फ़रवरी होता है।
कद्दू की बुवाई के लिए सबसे पहले खेत की ट्रैक्टर और कल्टीवेटर से अच्छी तरह से जुताई करके मिट्टी भुरभुरा बना लेना चाहिए। खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए। इसके बाद 2-3 बार हैरो या कल्टीवेटर से खेत की जुताई करें। इसके बाद सड़े हुए 8-10 टन गोबर की खाद प्रति एकड़ प्रतिकिलो खाद के हिसाब से डालें। फसल बुवाई के समय प्रति एकड़ खेत में 50 किलो डीएपी, 50 किलो पोटाश, 25 किलो यूरिया, 10 किलो कार्बोफुरान का इस्तेमाल करें ।
कद्दू की खास किस्मों या प्रजातियों में पूसा विश्वास, पूसा विकास, कल्यानपुर पम्पकिन-1, नरेन्द्र अमृत, अर्का सुर्यामुखी, अर्का चन्दन, अम्बली, सीएस 14, सीओ 1 और 2, पूसा हाईब्रिड 1 और कासी हरित कददू की किस्मे हैं ।
एक एकड़ में लगभग 700 – 800 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है ।
हाइब्रिड बीज पहले से उपचारित आते है इनकी सीधी बुवाई की जा सकती है । अगर घर पर तैयार किया हुआ या देसी बीज की बुवाई करते है तो इसे कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम + थिरम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित कर ले ।
कद्दू की बुवाई के समय पौधे से पौधे की दूरी 60 सेमी और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 150 से 180 सेमी रखे । बीज को 1 इंच की गहराई पर लगाए।
पहली सिंचाई बिजाई के तुरंत बाद करें । गर्मियों के मौसम में, 4-5 दिन के फासले पर जलवायु, मिट्टी की किस्म, के अनुसार सिंचाई करें जबकि सर्दी के मौसम में 7-8 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें । बारिश के मौसम में बारिश की आवृति के आधार पर सिंचाई करें। फल बनने की अवस्था में सिंचाई का अवश्य ध्यान रखें क्योकि इस टाइम उचित नमी नहीं होने पर फसल पर विपरीत प्रभाव पड़ता है ।
फसल बुवाई के 10-15 दिन बाद पौधों के अच्छे विकास के लिए 1 किलो एनपीके 19:19:19 और 250 मिली इफको सागरिका को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें । फसल बुवाई के 35 से 40 दिन पर प्रति एकड़ खेत में 25 किलो यूरिया का इस्तेमाल करें । फसल बुवाई के 50 से 55 दिनों के बाद प्रति एकड़ खेत में 1 किलो एन.पी.के. 13:00:45 और 400-500 ग्राम बोरोन B – 20 को 150 से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें । फसल बुवाई के 60 से 70 दिन बाद 1 किलो 12:61:00 एनपीके को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें ।
कद्दू की फ़सल पर पहली निराई-गुड़ाई बुवाई के दो सप्ताह बाद करनी चाहिए । निराई के दौरान अवांछित खरपतवारों को उखाड़ दें । साथ ही पौधों की जड़ों में मिट्टी चढ़ा दें। अधिक खरपतवार की दशा में एनाक्लोर रसायन की 1.25 लीटर मात्रा को प्रति हेक्टेयर मात्रा का छिड़काव करना चाहिए ।
तेला और चेपा रोग :- यह रोग पत्तो का रस चूस लेता है, जिससे पत्ता पीला पड़कर मुरझा जाता है । तेले के कारण पत्ते का आकार मुड़कर कपनुमा हो जाता है । इस रोग से बचाव के लिए 15 लीटर पानी में 5 GM थाइमैथोक्सम को मिलाकर स्प्रे फसल पर करे ।
पत्तों पर सफेद धब्बे :- इस रोग से प्रभावित होने पर पत्ते की ऊपरी सतह पर सफ़ेद रंग का पाउडर जमा हो जाता है इससे बचाव के लिए 10 लीटर पानी में घुलनशील 20 ग्राम सल्फर को मिलाकर उसका छिड़काव 10 दिन के अंतराल में 2-3 बार करे ।
एंथ्राक्नोस :- इस रोग से प्रभावित पौधे का पत्ता झुलसा हुआ दिखाई देता है । एंथ्राक्नोस रोग की रोकथाम के लिए 2 GM कार्बेनडाज़िम की मात्रा से प्रति किलोग्राम बीजो को उपचारित किया जाता है । यह रोग खेत में दिखाई देने पर 2 GM मैनकोजेब या 0.5 GM कार्बेनडाज़िम की मात्रा प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करे ।
फल सडन रोग :- कद्दू के पौधे 100 से 110 दिन के अंतराल में पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है । जब इसके फल ऊपर से पीले सफ़ेद रंग के दिखाई दे तो इसकी तुड़ाई कर लेनी चाहिए तथा इसके हरे फलों को 70 से 80 दिन बाद तोड़ा जा सकता है ।
सफ़ेद सुंडी रोग :- सफ़ेद सुंडी रोग कद्दू की फसल को अधिक प्रभावित करता है । यह रोग पौधों पर जमीन के अंदर से आक्रमण करता है । इसका रोग पौधों की जड़ो को प्रभावित करता है,जिससे पौधा सूखकर नष्ट हो जाता है । इस तरह के रोग से बचाव के लिए जुताई से समय नीम की खली का छिड़काव करना चाहिए ।
कद्दू के पौधे 100 से 110 दिन के अंतराल में पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है । जब इसके फल ऊपर से पीले सफ़ेद रंग के दिखाई दे तो इसकी तुड़ाई कर लेनी चाहिए तथा इसके हरे फलों को 70 से 80 दिन बाद तोड़ा जा सकता है ।