- गुलाबी सुंडी
- लक्षण
- जीवन चक्र
- गुलाबी सूंडी का जीवन चक्र
- इससे होने वाले नुकसान
- इसकी रोकथाम के उपाय
- सावधानियां
पिंक बॉलवॉर्म एशिया का मूल निवासी है लेकिन दुनिया के अधिकांश कपास उगाने वाले क्षेत्रों में एक आक्रामक प्रजाति बन गई है। भारत के कई क्षेत्रों में कपास पर गुलाबी सुंडी एक प्रमुख कीट के रूप में उभर कर आती रही है । कपास के सबसे बड़े दुश्मन पिंक बॉल वार्म (Pink Boll worm) यानी गुलाबी सुंडी कीट के आक्रमण का खतरा सबसे अधिक होता है । यह इल्ली कपास के बीजों को खाकर आर्थिक हानि पहुँचाती है । गुलाबी इल्ली का प्रकोप फसल के मध्य तथा देर की अवस्था में होता है । गुलाबी सुंडी की लटें फलीय भागों के अंदर छुपकर तथा प्रकाश से दूर रहकर नुकसान करती हैं जिसके कारण इस कीट से होने वाले नुकसान की पहचान करना कठिन होता है और फसल को अधिक नुकसान होता है। फसल का सीजन बदलने के बाद किसानों को लगता है कि अब सूंडी का प्रकोप खत्म हो चुका है। लेकिन केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान गुलाबी सूंडी का कीड़ा पूरी तरह नहीं मरता है यह लकड़ियों और खराब टिंडों में शांत होकर छिप जाता है कीड़ा सीजन आने पर जागता है । गुलाबी सूंडी का कीड़ा 2 किलोमीटर तक उड़कर जा सकता है तो आइये जानते है इसके लक्षण, जीवन चक्र, नुकसान और उसकी रोकथाम के बारे में :-
प्रौढ़ अवस्था में कीट आकार में छोटे व रंग में गहरे भूरे होते हैं। इनकी अगली पंखों पर काले धब्बे होते हैं तथा पिछली पंख किनारों से झालरनुमा होती हैं । रात को सक्रिय रहने वाला कीट है नमी के वातावरण में यह बहुत एक्टिव हो जाता है और फसल की अन्तिम अवस्था तक बना रहता है । यह एक प्रौढ़ गहरे स्लेटी चमकीले रंग का 8 से 9 मि.मी. आकार वाला फुर्तीला कीट है। अंडे हल्के गुलाबी व बैंगनी रंग की झलक लिए होते हैं जो कि प्रायः नई विकसित पत्तियों व कलियों पर पाए जाते हैं । प्रारम्भिक अवस्था में लटों का रंग सफ़ेद होता है जो कि बाद में गुलाबी हो जाते हैं पूर्ण विकसित लटों की लम्बाई 10 से 12 मि.मी. होती है।
प्रत्येक वर्ष नरमा के खेत में फूल आने के समय इसकी मादा पतंगों की पहली पीढी फुलगुड्डी पर या फिरॢ उनके नजदीकी टहनियों, छोटी व नई पत्तियों के निचले हिस्सों पर एक एक करके सफेद व चपटे अंडे देती हैं। इसके बाद वाली पीढियां अपने अंडे एक-एक करके ही फूलों के बाह्यपुंजदल पर देती हैं। सामान्यतौर पर 3 से 4 दिनों में इन अंडों से छोटी सूंडियाँ निकलती हैं, पर तापमान व नमी की अनुकूलता अनुसार यह अंड-विस्फोटन में समय अन्तराल भी हो सकता है। प्रारम्भिक अवस्था में ये सूंडियाँ हल्के सफेद रंग की होती हैं परन्तु बाद में इनका रंग गुलाबी हो जाता है जिसकी वजह से इसका नाम गुलाबी सुंडी पड़ा है। ये सूंडियां कपास की फसल में फूलगुड्डीयों व फूलों पर हमला करती हैं,ओर फूल के अंदर घुसती है,ओर वहीं रहने लगती हैं। सूंडियों से ग्रसित फूल के हिस्से आपस में जुड़ जाते है और पूरी तरह नही खुलते। कपास के ये ग्रसित फूल बनावट में फिरकी या गुलाब के फूल जैसे हो जाते हैं। शुरुआती अवस्था में ही ये छोटी सूंडियां छोटे-छोटे टिंडों में घुस कर कच्चे बिनौले (बीजों) को खाती हैं। टिंडे में घुसने के बाद ये अपने द्वारा बनाएं अपने सुराख को अपने मल से ही बंद कर देती है,जिससे इन पर किसी कीटनाशक का असर नही भी नही होता है,ओर इससे एक समस्या ओर है की जो छेद बंद किया जाता है उसमे फंगस का आक्रमण भी हो जाता है और समस्या दोगुनी हो जाती है।
4 से 5 दिन में गुलाबी सूंडी का अंडा तैयार होता है -> -अगले 10 से 14 दिन में लारवा बनता है -> प्यूपा 8 से 13 दिन में तैयार हो जाता है -> 15 से 20 दिन में सूंडी प्रौढ़ अवस्था में पहुंचती है |
वे भोजन के माध्यम से नुकसान पहुंचाते हैं । गुलाबी सुंडी के नुकसान की पहचान अपेक्षाकृत कठिन होती है क्योंकि लटें फलीय भागों के अंदर छुपकर तथा प्रकाश से दूर रहकर नुकसान करती हैं । कपास में फूल लगने और फूल खिलने के दौरान इसका संक्रमण शुरू होता है । संक्रमित फूल गुलाब के फूल की तरह ही रोसेट फूल में बदल जाते हैं । संक्रमित फूल, कलियां और छोटे कपाल बॉल नीचे गिर जाते हैं । लार्वा बॉल में प्रवेश कर शाखाओं और बीजों को नुकसान पहुंचाती है । वे बीज पर भोजन करने के लिए कपास की लिंट को चबाते हैं चूंकि कपास का उपयोग फाइबर और बीज के तेल दोनों के लिए किया जाता है इसलिए नुकसान दुगना होता है। बीजकोष के चारों ओर सुरक्षात्मक ऊतक का उनका विघटन अन्य कीड़ों और कवक के प्रवेश का एक पोर्टल है । कीट का सक्रिय काल मध्य जुलाई से मध्य अक्टूबर है।
घरेलु उपचार :-
- जिन किसानों ने पिछले सीजन की फसल की सूखी लकड़ी संभाल कर रखी है उसे अप्रैल माह से पहले किसी भी तरीके से आग से नष्ट कर दें।
- पिछली बार सूंडी के कारण जो टिंडे खराब हो गए थे या अधपके टिंडे थे उन्हें भी नष्ट कर दें। प्रभावित पौधों को बिच में उखाड़ कर जमीन में दबा दें ।
- लकड़ियों के ढेर को मच्छरदानी जैसी जाली, तिरपाल से पूरी तरह ढक दें ताकि सूंडी का पतंगा बाहर ना आ पाए और अंडे भी पनप ना सकें।
- खेत में बचे अधखुले, खराब टिंडों को नष्ट करने के लिए खेत में भेड़, बकरी आदि जानवरों को चरने दें
- सूंडी के प्रकोप वाले खेतों से लकड़ियों को नहीं ले जाना चाहिए और न ही कहीं एकत्र करें । संभव हो तो लकड़ियों को काट कर जमीन में मिला दें ।
- बुआई के दौरान खेत के चारों ओर एक या दो लाइन नॉन बीटी नरमा या अरहर या रिफ्यूजी बीज खेत के चारों तरफ लगाने से गुलाबी सुंडी के प्रबन्धन में आसानी रहती है।
रासायनिक उपचार :
किसान फसल की बुआई के 60 दिनों के बाद नीम के बीजों का अर्क 5% + नीम का तेल ( 5 मिली॰/ली) को मिलाकर छिड़काव किया जा सकता है। किसान कपास में गुलाबी सुंडी को ख़त्म करने के लिए रासायनिक दवाओं का प्रयोग कर सकते हैं इसके लिए किसान नीचे दिए गए कीटनाशकों में से किसी एक का प्रयोग करें :-
- साइपरमेथ्रिन 10 प्रतिशत ई.सी.- 1.0 मिली. प्रति लीटर पानी
- मेलिथियान 50 प्रतिशत ई.सी. – 2.0 मिली. प्रति लीटर पानी
- साइपरमेथ्रिन 25 प्रतिशत ई.सी.- 0.4 मिली. प्रति लीटर पानी
- डेल्टामेथ्रिन 2.8 प्रतिशत ई.सी. – 1.0 मिली. प्रति लीटर पानी
- तेज हवा या बारिश के टाइम स्प्रे न करें ।
- आँखों की सुरक्षा करें ।
- स्प्रे के बाद अपना हाथ, पैर और चेहरा अच्छी तरह से धोएं ।
- कीटनाशक का छिड़काव सुबह 11 बजे से पहले या शाम 5 बजे के बाद ही करें दोपहर को यह पतंगे सक्रिय नहीं होते हैं जिससे इनको नुकसान नहीं पहुंचता है ।
- कीटनाशकों के प्रयोग के समय किसी भी स्टिकर का प्रयोग अवश्य करें इससे कीटनाशक की क्षमता बहुत बढ़ जाती है स्प्रे के दौरान या स्प्रे करने के 8 से 12 घंटे के अंदर बारिश आ जाए दोबारा कीटनाशक का प्रयोग करें ।
- बच्चों की पहुच से दूर रखें ।