- भूमि
- तापमान
- उचित समय
- भूमि की तेयारी
- उच्चतम वैरायटी
- बीज उपचार
- नर्सरी तैयार करना
- बिजाई का तरीका
- बिजाई
- खरपतवार नियंत्रण
- उर्वरक
- खरपतवार
- रोग नियंत्रण
- अब फसल पकने का इंतजार करें
प्याज की खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है प्याज की खेती के लिए उचित जलनिकास एवं जीवांषयुक्त उपजाऊ दोमट तथा वलूई दोमट भूमि जिसका पी.एच. मान 6.5-7.5 के मध्य हो सर्वोत्तम होती है, प्याज को अधिक क्षारीय या दलदली मृदाओं में नही उगाना चाहिए ।
इसके अच्छे उत्पादन के लिए 15 से 30 डिग्री सेल्सियस तक तापमान होना चाहिए ।
15 नवम्बर से 15 दिसम्बर के बीच का समय बढ़िया माना जाता है ।
प्याज के खेत को तैयार करने के लिए सबसे पहले उसकी गहरी जुताई कर दी जाती है जिसके बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है इसके बाद खेत में प्राकृतिक खाद के रूप प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 15 से 20 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद डाली जाती है । खाद डालने के बाद खेत की फिर से अच्छे से जुताई कर दी जाती है, इससे खेत की मिट्टी में गोबर की खाद अच्छे से मिल जाती है यदि आप चाहे तो वर्मी कम्पोस्ट खाद को भी इस्तेमाल में ला सकते है । इसके लिए आपको खेत की आखरी जुताई के समय नाइट्रोजन 40 KG, पोटाश 20 KG, सल्फर 20 KG की मात्रा को प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में डालकर जुताई करना होता है ।
पूसा रतनार, एग्रीफाउंड लाइट रेड, एग्रीफाउंड रोज, भीमा रेड, भीमा शक्ति और पूसा रेड ।
रोगों से बचाव के लिए बीज और पौधशाला की मिट्टी को कवकनाशी या थीरम आदि से उपचारित कर लेना चाहिए। बीज और पौधशाला को ट्राइकोडर्मा से भी उपचारित किया जा सकता है ।
प्याज की रोपाई से पहले इसकी नर्सरी तैयार की जाती है यदि किसान भाई रबी के लिए प्याज की खेती करना चाहते हैं तो प्याज की रोपाई जनवरी-फरवरी में किया जाता है और दिसंबर-जनवरी में ठंड काफी बढ़ जाती है जिसकी वजह से नर्सरी में बीजों का जमाव बहोत दिनों में होता है और अधिक ठंठ के कारण नर्सरी में पौधे भी काफी धीरे-धीरे बढ़ते हैं इसलिए प्याज की नर्सरी नवंबर महीने में डाल देनी चाहिए । नर्सरी लगाते समय 1 से 1.5 मीटर लम्बी और लगभग 3 मीटर चौड़ी छोटी-छोटी क्यारी बना लेनी चाहिए उसके बाद प्रति क्यारी 100 से 150 ग्राम D.A.P. और 10 किलो अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद डालकर गुड़ाई कर देनी चाहिए और फिर उसके बाद इन क्यारियों में प्याज की नर्सरी डालनी चाहिए ।
प्याज की अच्छी पैदावार के लिए पौधे की दूरी का खास ध्यान देना चाहिए अधिक नजदीक पर पौधे की रोपाई न करें क्योंकि घना रोपाई करने से प्याज की फसल में रोग अधिक लगते हैं इसलिए पौधे से पौधे की दूरी 10 से 12 सेंटीमीटर रखनी चाहिए तथा लाइन से लाइन की दूरी 7 से 8 सेंटीमीटर पर रखनी चाहिए ।
रोपाई के समय भूमि और पानी के अनुसार बीज का चयन करे और तरीकेवार रोपाई करें ।
प्याज एक ऐसी फसल है जिसमें बिचड़े की रोपनी के बाद यानि जब पौधे स्थिर हो जाते हैं तब इसमें निकौनी एवं सिंचाई की आवश्यकता पड़ती रहती है। इस फसल में अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसकी जड़ें 15-20 सेंटीमीटर सतह पर फैलती है। इसमें 5 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए। अधिक गहरी सिंचाई न करें। पानी की कमी से खेतों में दरार न बन पाए। आरम्भ में 10-12 दिनों के अंतर पर सिंचाई करें। गर्मी आने पर 5-7 दिनों पर सिंचाई करें।
यदि खेत मे खरपतवार उग आये हों तो आवश्यकतानुसार उन्हें निकालते रहना चाहिए। रासायनिक खरपतवार नाषक जैसे पेन्डिमीथेलिन 30 ई.सी. 3.0 कि.ग्रा. 1000 ली.पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के 48 घंटे के अन्दर प्रयोग करने पर प्रारम्भ के 30-40 दिनों तक खरपतवार नहीं उगते हैं। खरपतवारों के नियंत्रण के लिए खेत की 2-3 बार निदाई-गुड़ाई करें। दूसरी निदाई-गुड़ाई करने के समय पौधों की छटनी कर दें ।
जब फसल 60-65 दिनों की हो जाए तो 30 किलोग्राम यूरिया का प्रयोग कर सकते हैं ।
प्याज में खरपतवार की अधिकता होने से तमाम तरह के रोग और कीट लगते हैं. इसलिए प्याज में समय रहते हाथ की सहायता से पतली खुरपी यंत्र से खरपतवार को निकाल देना चाहिए. प्याज की फसल को खरपतवार से मुक्त रखने पर प्याज के कंद का साइज भी बढ़ता है ।
प्याज की फसल में लीफ माइनर के प्रकोप से पौधों को बहुत हानि होती है इसके प्रकोप से पौधों की पत्तियां प्रभावित होती हैं जिससे पौधों का विकास रूक जाता है । प्याज की फसल को लीफ माइनर कीटों से बचाने के लिए बायो AK-57 25 ml दवा 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए तथा झुलसा रोग से बचने के लिए मिराडोर 15ml/15 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए । अगर पोधा जड़ गलन रोग से प्रभावित है तो कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा की छिड़काव पौधों पर किया जाता है ।
प्याज के पौधे रोपाई के 4 से 5 महीने बाद पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है । जब इसके पौधों की पत्तिया पीली होकर गिरने लगे उस दौरान इसके फलो की तुड़ाई कर ली जाती है इसके बाद कंद की खुदाई कर उन्हें दो से तीन दिन तक अच्छे से सुखा लिया जाता है सुखाने के बाद जड़ और पत्तियों को अलग कर लिया जाता है। इसके बाद इन्हे छायादार जगह पर अच्छे से सुखा लिया जाता है ।