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Red Sandalwood
Table of Contents लाल चंदन का पौधे की जानकारी लाल चंदन एक खूबसूरत पौधा है जो अपनी महकती हुई सुगंध और लाल रंग के लिए प्रसिद्ध है। यह एक छोटा पेड़ होता है जिसकी पत्तियाँ छोटी होती हैं और पूरे साल हरा-भूरा रहता है। लाल चंदन के फूलों का उपयोग
Ashwagandha cultivation
Posts Search अश्वगंधा खरीफ (गर्मी) के मौसम में वर्षा शुरू होने के समय लगाया जाता है। अच्छी फसल के लिए जमीन में अच्छी नमी व मौसम शुष्क होना चाहिए। फसल सिंचित व असिंचित दोनों दशाओं में की जा सकती है। रबी के मौसम में यदि वर्षा हो जाए तो फसल
French Bean’s Organic
Table of Contents सिंचाई और जल प्रबंधन बुआई के तुरंत बाद, तीसरे दिन और बाद में सप्ताह में एक बार सिंचाई की जाए। फूल आने तथा फलियों के विकास के समय सिंचाई करना लाभदायक होता है। पानी की कमी में मृदा में नमी का अभाव या अत्यधिक वाष्पोत्सर्जन से फली
ginger organic
Recent Posts Search भूमि का चुनाव और तैयार करना अदरक हिमाचल प्रदेश की एक महत्वपूर्ण मसालेदार नगदी फसल है। इसकी काश्त के लिए 5-6.5 पी.एच. रेंज और एक प्रतिशत से अधिक जैविक कार्बन वाली रेतीली अथवा भंगुर मृदा काफी उपयुक्त है। यदि जैविक कार्बन की मात्रा एक प्रतिशत से कम है,
orchid flower
Table of Contents परिचय फूलों में आर्किड एक अति सुंदर पुष्प है । इसकी उत्पति अमेरिका, मैक्सिको, भारत, श्रीलंका, फिलिपींस, आस्ट्रेलिया इत्यादि देशों को माना जाता है । यह पुष्प अपने अनोखे रूप रंग, आकार, आकृत्ति एवं समय तक रखने योग्य होने के कारण अन्य पुष्पों से अलग है ।
khirni plant
Table of Contents प्रकृति की अनमोल देन, खिरनी का पौधा एक रहस्यमयी और उपयोगी पौधा है। इस पौधे के विविध प्रकार और इसके विशेषता बनाते हैं इसे अद्भुत वन्यजीवों के लिए भोजन का स्रोत। हम इस लेख में खिरनी के पौधे की प्रमुख जानकारी, इतिहास, व्यापारिक महत्व और इसके उपयोग
मैस्टा
मैस्टा वार्षिक उगने वाली कपास और पटसन के बाद एक महत्वपूर्ण व्यापारिक फसल है| इस फसल का मूल स्थान एफ्रो-ऐशीआयी (Afro-Asian) देश है| इसका तना और छिलका रेशा बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है| हिबिसकस कैनाबिनस और हिबिसकस सबदारिफा नाम की दो प्रजातियों को आमतौर पर मैस्टा कहा जाता है| हिबिसकस सबदारिफा सूखे मौसम को सहने योग्य किस्म है और हिबिसकस कैनाबिनस 50-90 मि.मी. बारिश वाले क्षेत्रों में उगाई जा सकती है,क्योंकि यह जल्दी पकने वाली फसल है| यह फसल उगाने वाले मुख्य राज्य महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, बिहार, उड़ीसा,मेघालय,कर्नाटक और त्रिपुरा आदि है|
जलवायु
Temperature
Rainfall
Sowing Temperature
Harvesting Temperature
मिट्टी
मैस्टा की फसल अलग-अलग तरह की मिट्टी में उगाई जा सकती है| बढ़िया चिकनी मिट्टी में यह बढ़िया पैदावार देती है| तेज़ाबी और जल जमाव वाली ज़मीन मैस्टा की खेती के लिए उचित नहीं है| इसके लिए मिट्टी का pH 4.5-7.8 होना चाहिए|
प्रसिद्ध किस्में और पैदावार
Hibbiscus cannabinus: HC 583 (पश्चिमी बंगाल में उगाने योग्य किस्में)
दूसरे राज्यों की किस्मे Hibiscus Cannabinus MT 150 (Nirmal): यह किस्म सारे मैस्टा उत्पादक राज्यों के लिए सहायक है| इसकी गुणवत्ता बहुत बढ़िया होती है और इस किस्म को मुख्य रूप से अख़बार बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है| इसकी औसतन पैदावार 13 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|
JRM3 (Sneha): यह पूरे देश में उगाने योग्य किस्म है| यह कीटों और बीमारीयों की रोधक किस्म है| इसकी औसतन पैदावार 10.5-15 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|
JRM5 (Shrestha): इसकी औसतन पैदावार 12 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|
Hibiscus Sabdariffa AMV 7: यह किस्म 130-135 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है| यह नमी की कमी को सहने योग्य, कीटों और बीमारीयों की रोधक किस्म है| इसकी औसतन पैदावार 10.5-13 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|
ज़मीन की तैयारी
मानसून आने से पहले खेत की अच्छी तरह से जोताई करके मिट्टी को भुरभुरा कर लें| जोताई के बाद मिट्टी को नदीनों और अन्य बचे-खुचे पदार्थो से मुक्त करें| फिर ज़मीन को अच्छी तरह से समतल करें|खेत की तैयारी के समय मिट्टी में 2-4 टन गली-सड़ी रूड़ी की खाद डालें|
बिजाई
बिजाई का समय मैस्टा की बिजाई के लिए मई-जून महीने का समय उचित माना जाता है| फासला बढ़िया विकास और पैदावार के लिए फसल में 30×10 सैं.मी. का फासला रखने की सिफारिश की जाती है| बीज की गहराई बीजों की बिजाई 2.5-3 सैं.मी. गहराई पर करें| बिजाई का ढंग इसकी बिजाई आमतौर पर बुरकाव विधि द्वारा की जाती है पर पंक्तियों में बिजाई करना भी लाभदायक सिद्ध होता है|
बीज
बीज का उपचार बिजाई से पहले मैनकोजेब 3 ग्राम प्रति किलो से बीज का उपचार करें| बीज की मात्रा हिबिसकस सबदारिफा के लिए 6 किलो प्रति एकड़ और हिबिसकस कैनाबिनस के लिए 5 किलो प्रति एकड़ बीज का प्रयोग करें|
खाद
UREA | SSP | MOP |
36 | 50 | 14 |
NITROGEN | PHOSPHORUS | POTASH |
16 | 8 | 8 |
खरपतवार नियंत्रण
खेत को साफ और नदीन-मुक्त करने के लिए गोड़ाई करें और पौधों को विरला करें| पहली गोड़ाई बिजाई से 21 दिन बाद और दूसरी गोड़ाई बिजाई से 35 दिन बाद करें और साथ-साथ कमज़ोर पौधों को बाहर निकाल दें| नदीनों को रायासनिक ढंग से रोकने के लिए बिजाई से 2-3 दिन पहले फ्लूक्लोरालिन 800 मि.ली. प्रति एकड़ डालें या बिउटाक्लोर 1200 मि.ली. प्रति एकड़ या पेंडीमैथालीन 1-1.25 लीटर प्रति एकड़ को बिजाई के तुरंत बाद डालें|
सिंचाई
सिंचित फसल होने के कारण इसे ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है| अगर जरूरत हो तो मौसम और मिट्टी की किस्म के अनुसार सिंचाई करें|
पौधे की देखभाल
-
कीट और रोकथाम
- चेपा: अगर खेत में इसका नुकसान दिखाई दे तो डाईमैथोएट 2 मि.ली. या ऐमिडाक्लोप्रिड 0.25 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें या थाइओमैथोकसम 0.2 ग्राम या ऐसेटामिप्रिड 0.2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें|
- हरी सुंडी: अगर इसका नुकसान दिखाई दे तो थाइओडीकार्ब 1 ग्राम या इंडोकसाकार्ब 1 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें|
- मिली बग: जब नुकसान कम हो तो इसकी प्रभावशाली रोकथाम के लिए नीम का तेल 5 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें| अगर नुकसान ज्यादा हो तो प्रोफैनोफॉस 2 मि.ली. या ट्राईज़ोफोस 2 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें|
- तेला: इसकी रोकथाम के लिए ऐमिडाक्लोप्रिड 0.25 मि.ली. या थाइओमैथोकसम 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें|
- बीमारीयां और रोकथाम जड़ और तना गलन: खेत में अच्छे निकास का प्रबंध करें और पानी को खड़ा न होने दें| बिजाई से पहले प्रति किलो बीजों का 3 ग्राम मैंकोजेब के साथ उपचार करें| अगर इसका हमला दिखी दें तो रिडोमिल 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें|
- पत्तों का झुलस रोग: यदि इसका हमला दिखाई दे तो, 3 ग्राम मैंकोजेब या कॉपर आक्सीक्लोराइड 3 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें| जरूरत पड़ने पर 7 दिनों के फासले पर दोबारा स्प्रे करें|
- नाड़ियों का पीला चितकबरा रोग: यह रोह सफेद मक्खी से फैलता है| सफेद मक्खी के हमले की जांच करें| बिजाई से 50 दिन बाद थाइओमैथोकसम 0.1 ग्राम या ऐमिडाक्लोप्रिड 0.25 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें|
फसल की कटाई
फसल की कटाई समय पर करें, क्योंकि कटाई जल्दी करने से रेशे की पैदावार कम हो जाती है और देरी से कटाई करने पर रेशे की गुणवत्ता खराब हो जाती है| 50% फूलों के खिलने पर कटाई का उचित समय होता है| कटाई के समय फसल को ज़मीन के नज़दीक से काटें|
कटाई के बाद
कटाई के बाद फसल को तने के आकार के अनुसार छांट लें| फिर तने को बांध कर खेत में पत्ते झड़ने के लिए रख दें|
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