Cluster Beans (ग्वार)

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ग्वार लगभग सभी प्रकार की कृषि योग्य भूमि में पैदा हो सकती है । इसके लिए बलुई मिट्टी या दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है वैसे इसके लिए अच्छी जल निकासी वाली मध्यम से भारी मिट्टी की आवश्यकता होती है ।

ग्वार की बिजाई के लिए मुख्यतया 30-40 डिग्री सेल्सीयस तापमान होना चाहिए ।

1 जुलाई से 15 जुलाई के बीच का समय ग्वार की बिजाई के लिए बढ़िया माना जाता है ।

खरीफ की कटाई के बाद मई माह में खेत को एक से दो बार गहरा जोतकर छोङ देना चाहिये । मानसून की प्रथम वर्षा के साथ एक दो जुताई कर पाटा लगाकर खेत तैयार करना चाहिये । मानसून पूर्व खेत में गोबर की खाद चार पॉच ट्रोली प्रति हेक्टेयर की दर से अच्छी तरह बिछा लें या 25 कि.ग्रा. नाइट्रोजन 50 कि.ग्रा. फॉस्फोरस और 50 कि.ग्रा. पोटाश डालें । बुवाई से पूर्व खेत खरपतवार रहित तथा पर्याप्त नमीयुक्त होना चाहिये l

 इसमे वैरायटी का चयन अलग अलग क्षेत्र के हिसाब से किया जाता है ।

 ग्वार की जङों में जो मूलग्रंथियां होती है वे पर्यावरण की नाइट्रोजन के स्थरीकरण का कार्य-करती है अथार्त जमीन को नाइट्रोजन की आपूर्ति करती हैं ।  इन जड़ ग्रंथियों के अच्छे विकास के लिए बीज को राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना चाहिए ।  इसके लिए 100 ग्राम गुड़ को 1 लीटर पानी में घोल लेवें । घोल ठण्डा होने पर इसमें 600 ग्राम राइजोबियम कल्चर अच्छी तरह से मिला लेवें । इस घोल में 10 किलोग्राम बीज को अच्छी तरह से उपचारित करें ताकि  सभी बीजों पर कल्चर की परत चढ जाये । अब बीजों को निकालकर छाया में सुखाकर शीघ्र ही बुवाई कर देवें । फसल को रोग मुक्त रखने हेतु बीज को ट्राईकोडर्मा 4 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से भी उपचारित करना चाहिये ।

ग्वार की बिजाई 2 तरीके से कर सकते है छिटा विधि और कतारों में । ज्यादातर ग्वार की बिजाई कतारों में की जाती है । कतारों के बीच की दूरी लगभग 1 फीट होती है ।

बिजाई के समय भूमि और पानी के अनुसार बीज का चयन करे । बिजाई के समय 6 से 8 किलोग्राम ग्वार के बीज की बिजाई करें ।

नोट: बिजाई के 40-50 दिन के बाद ग्वार में से निराई गुड़ाई करके खरपतवार निकाले ।

 बिजाई के 40 से 50 दिन के अंदर पहली सिंचाई करें और पहली सिंचाई के साथ 25-30 किलोग्राम प्रति एकड़ यूरिया खाद डालें । अगर बारिश समय अनुसार हो रही है तो ग्वार में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है । पहली सिंचाई के बाद हरी फलियों की कटाई शुरु हो जाती है ।

नोट: ग्वार में तेला का विशेष ध्यान रखे अगर तेला रोग आता है तो रोगर या कांफिडर नामक किटनाशक का छिड़काव करें ।

 

फसल के पकने का समय 20 सितम्बर से 15 अक्टूबर के लगभग माना जाता है । फसल पकने पर इसकी फलियाँ पिली पड जाती है और दाने सख्त हो जाते है । फसल पकने के बाद अपने सुविधाजनक साधनों से फसल की कटाई और कढ़ाई करे ।

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