Ashwagandha cultivation

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Pearl farming from marine creatures

Table of Contents Pearl Farming From Marine समुद्री जीवो से मोती की खेती समुद्री जीवों से मोती की खेती करते हैं जिसे सीप मोती कहते हैं | ये समुद्री जीव सीप  होता है| जिस से सीप के मोती की खेती करते हैं| सीप किसे कहते हैं? समुद्री जीव जिसे सीप

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Free Borewell Yojana 2024

Table of Contents निःशुल्क बोरवेल योजना 2024 (Free Borewell Yojana 2024) : निःशुल्क बोरवेल योजना 2024 (Free Borewell Yojana 2024) : हरियाणा सरकार द्वारा किसानों के लिए फ्री बोरवेल योजना शुरू की गई है। इस योजना के तहत राज्य के किसान अपने खेतों में मुफ्त में बोरवेल लगवा सकते हैं।

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kaccha Aadhatiya Association,Ellenabad

श्री गणेशाय नमः Posts कच्चा आढ़तिया एसोसिएशन, ऐलनाबाद दुकान नंबर, फर्म का नाम एवं दुरभाष निर्देशिका दुकान नंबर फर्म का नाम संपर्क नंबर 1-ए 1-बी रामेश्‍वर दास गौरीशंकर 97424 26642 93154 92149 2-ए सिद्धि विनायक एग्रो प्रोडक्ट 90500 09550 80598 92313 2-बी चम्पालाल चतरभुज 3-ए गौरीशंकर गौरव कुमार 94162 85011

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Red Sandalwood

Table of Contents लाल चंदन का पौधे की जानकारी लाल चंदन एक खूबसूरत पौधा है जो अपनी महकती हुई सुगंध और लाल रंग के लिए प्रसिद्ध है। यह एक छोटा पेड़ होता है जिसकी पत्तियाँ छोटी होती हैं और पूरे साल हरा-भूरा रहता है। लाल चंदन के फूलों का उपयोग

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Ashwagandha cultivation

Posts Search अश्वगंधा खरीफ (गर्मी) के मौसम में वर्षा शुरू होने के समय लगाया जाता है। अच्छी फसल के लिए जमीन में अच्छी नमी व मौसम शुष्क होना चाहिए। फसल सिंचित व असिंचित दोनों दशाओं में की जा सकती है। रबी के मौसम में यदि वर्षा हो जाए तो फसल

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French Bean’s Organic

Table of Contents सिंचाई और जल प्रबंधन बुआई के तुरंत बाद, तीसरे दिन और बाद में सप्ताह में एक बार सिंचाई की जाए। फूल आने तथा फलियों के विकास के समय सिंचाई करना लाभदायक होता है। पानी की कमी में मृदा में नमी का अभाव या अत्यधिक वाष्पोत्सर्जन से फली

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ginger organic

Recent Posts Search भूमि का चुनाव और तैयार करना अदरक हिमाचल प्रदेश की एक महत्वपूर्ण मसालेदार नगदी फसल है। इसकी काश्त के लिए 5-6.5 पी.एच. रेंज और एक प्रतिशत से अधिक जैविक कार्बन वाली रेतीली अथवा भंगुर मृदा काफी उपयुक्त है। यदि जैविक कार्बन की मात्रा एक प्रतिशत से कम है,

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orchid flower

Table of Contents परिचय फूलों में आर्किड एक अति सुंदर पुष्प है । इसकी उत्पति अमेरिका, मैक्सिको, भारत, श्रीलंका, फिलिपींस, आस्ट्रेलिया इत्यादि देशों को माना जाता है । यह पुष्प अपने अनोखे रूप रंग, आकार, आकृत्ति एवं समय तक रखने योग्य होने के कारण अन्य पुष्पों से अलग है ।

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khirni plant

Table of Contents प्रकृति की अनमोल देन, खिरनी का पौधा एक रहस्यमयी और उपयोगी पौधा है। इस पौधे के विविध प्रकार और इसके विशेषता बनाते हैं इसे अद्भुत वन्यजीवों के लिए भोजन का स्रोत। हम इस लेख में खिरनी के पौधे की प्रमुख जानकारी, इतिहास, व्यापारिक महत्व और इसके उपयोग

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अश्वगंधा खरीफ (गर्मी) के मौसम में वर्षा शुरू होने के समय लगाया जाता है। अच्छी फसल के लिए जमीन में अच्छी नमी व मौसम शुष्क होना चाहिए। फसल सिंचित व असिंचित दोनों दशाओं में की जा सकती है। रबी के मौसम में यदि वर्षा हो जाए तो फसल में गुणात्मक सुधार हो जाता है। इसकी खेती सभी प्रकार की जमीन में की जा सकती है। केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, करनाल में किए गए परीक्षणों से पता चला है कि इसकी खेती लवणीय पानी से भी की जा सकती है।          

लवणीय पानी की सिंचाई से इसमें एल्केलोइड्‌स की मात्रा दो से ढाई गुणा बढ़ जाती है। इसकी खेती अपेक्षाकृत कम उपजाऊ व असिंचित भूमियों में करनी चाहिए। विशेष रूप से जहां पर अन्य लाभदायक फसलें लेना सम्भव न हो या कठिन हो। भूमि में जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए। फसल की अच्छी बढ़वार के लिए शुष्क मौसम व तापमान 350 ब से अधिक नहीं होना चाहिए। इस फसल के लिए 500 से 700 मि.मी वर्षा वाले शुष्क व अर्धशुष्क क्षेत्र उपयुक्त हैं।

पादप विवरण

अश्वगंधा एक मध्यम लम्बाई (40 से. मी. से 150 से. मी.) वाला एक बहुवर्षीय पौधा है। इसका तना शाखाओं युक्त, सीधा, धूसर या श्वेत रोमिल होता है। इसकी जड़ लम्बी व अण्डाकार होती है। पुष्प छोटे हरे या पीले रंग के होते है। फल 6 मि. मी चौड़े, गोलाकार, चिकने व लाल रंग के होते हैं। फलों के अन्दर काफी संख्या में बीज होते हैं।

भूमि एवं जलवायु

भारत में अश्वगंधा अथवा असगंध जिसका वानस्पतिक नाम वीथानीयां सोमनीफेरा है, यह एक महत्वपूर्ण औषधीय फसल के साथ-साथ नकदी फसल भी है। यह पौधा ठंडे प्रदेशों को छोड़कर अन्य सभी भागों में पाया जाता है। मुख्य रूप से इसकी खेती मध्यप्रदेश के पश्चिमी भाग में मंदसौर, नीमच, मनासा, जावद, भानपुरा तहसील में व निकटवर्ती राज्य राजस्थान के नागौर जिले में होती है। नागौरी अश्वगंधा की बाजार में एक अलग पहचान है। इस समय देश में अश्वगंधा की खेती लगभग 5000 हेक्टेयर में की जाती है जिसमें कुल 1600 टन प्रति वर्ष उत्पादन होता है जबकि इसकी मांग 7000 टन प्रति वर्ष है।

प्रजातियां

अनुपजाऊ एवं सूखे क्षेत्रों के लिए केन्द्रीय औषधीय एवं सुगंध अनुसंधान संस्थान, लखनऊ की पोशीता एवं रहितता नामक प्रजातियां उपयुक्त पायी गई हैं।

भूमि की तैयारी व बुआई

वर्षा होने से पहले खेत की 2-3 बार जुताई कर लें। बुआई के समय मिट्‌टी को भुरभुरी बना दें। बुआई के समय वर्षा न हो रही हो तथा बीजों में अकुंरण के लिए पर्याप्त नमी हो। वर्षा पर आधारित फसल को छींटा विधि से भी बोया जा सकता है। अगर सिचिंत फसल ली जाए तो बीज पंक्ति से पंक्ति 30 से. मी. व पौधे से पौधे की दूरी 5-10 से. मी. रखने पर अच्छी उपज मिलती है तथा उसकी निराई-गुडाई भी आसानी से की जा सकती है। बुआई के बाद बीज को मिट्‌टी से ढक देना चाहिए। अश्वगंधा की फसल को सीधे खेत में बीज द्वारा अथवा नर्सरी द्वारा रोपण करके उगाया जा सकता है। नर्सरी तैयार करने के लिए जून-जुलाई में बिजाई करनी चाहिए। वर्षा से पहले खेत को 2-3 बार जुताई करके मिट्‌टी को अच्छी तरह भुरभुरी बना देना चाहिए। बुआई के तुरन्त बाद फुआरे से हल्का पानी लगा दें। एक हेक्टेयर के लिए 5 किलो बीज की नर्सरी उपयुक्त होगी। बोने से पहले बीजों को थीरम या डाइथेन एम-45 से 3 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर लेना चाहिए। ऐसा करने से अकुंर बीज जनित रोगों से सुरक्षित रहते है। बीज 8-10 दिन में अंकुरित हो जाते है। अकुंरण के बाद उनकी छटाई कर लें। पौधों की ऊंचाई 4 से 6 सें. मी. होने पर पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 से. मी. व पौधे से पौधे की दूरी 5-10 सें. मी. की कर देनी चाहिए।

उर्वरक व निराई गुडाई

अश्वगंधा की फसल में किसी प्रकार की रासायनिक खाद नही डालनी चाहिए क्योंकि इसका प्रयोग औषधि निर्माण में किया जाता है लेकिन बुआई से पहले 15 किलो नाईट्रोजन प्रति हैक्टर डालने से अधिक ऊपज मिलती है। बुआई के 20-25 दिन पश्चात्‌ पौधों की दूरी ठीक कर देनी चाहिए। खेत में समय-समय पर खरपतवार निकालते रहना चाहिए। अश्वगंधा जड़ वाली फसल है इसलिए समय-समय पर निराई-गुडाई करते रहने से जड़ को हवा मिलती रहती है जिसका उपज पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

सिंचाई

सिंचित अवस्था में खेती करने पर पहली सिंचाई करने के 15-20 दिन बाद दूसरी सिंचाई करनी चाहिए। उसके बाद अगर नियमित वर्षा होती रहे तो पानी देने की आवश्यकता नही रहती। बाद में महीने में एक बार सिंचाई करते रहना चाहिए। अगर बीच में वर्षा हो जाए तो सिंचाई की आवश्यकता नही पड़ती। वर्षा न होने पर जीवन रक्षक सिंचाई करनी चाहिए। अधिक वर्षा या सिंचाई से फसल को हानि हो सकती है। 4 ई.सी. से 12 ई.सी. तक वाले खारे पानी से सिंचाई करने से इसकी पैदावार पर कोई असर नही पड़ता परन्तु गुणवत्ता 2 से 2.5 गुणा बढ़ जाती है।

फसल सुरक्षा

जड़ों को निमोटोड के प्रकोप से बचाने के लिए 5-6 कि.ग्रा ग्राम फ्यूराडान प्रति हैक्टर की दर से बुआई के समय खेत में मिला देना चाहिए। पत्ती की सड़न (सीडलीग ब्लास्ट) व लीफ स्पाट सामान्य बीमारियां हैं। जो खेत में पौधों की संखया कम कर देती हैं। अतः बीज को डायथीन एम-45 से उपचारित करके बोना चाहिए। एक माह पुरानी फसल को 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में डायथीन एम-45 मिलाकर 7-10 दिन के अंतर पर छिड़काव करते रहना चाहिए जब तक बीमारी नियंत्रित न हो जाए। पत्ती भक्षक कीटों से फसल को सुरक्षित रखने के लिए रोगर या नुआन 0.6 प्रतिशत का छिड़काव 2-3 बार करना चाहिए।

खुदाई, सुखाई और भंडारण

अश्वगंधा की फसल 135 से 150 दिन के मध्य खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। पौधे की पत्तियां व फल जब पीले हो जाए तो फसल खुदाई के लिए तैयार होती है। पूरे पौधे को जड़ समेत उखाड़ लेना चाहिए। जड़ें कटने न पाए इसलिए पौधों को उचित गहराई तक खोद लेना चाहिए। बाद में जड़ों को पौधो से काट कर पानी से धो लेना चाहिए व धूप में सूखने दें। जड़ों की छंटाई उनकी आकृति के अनुसार निम्न प्रकार से करनी चाहिए।

सर्वोतम या ए श्रेणी

जड़ें 7 सें. मी. लम्बी व तथा 1-1.5 सें. मी. व्यास वाली भरी हुई चमकदार और पूरी तरह से सफेद ए श्रेणी मानी जाती हैं।

उतम या बी श्रेणी

5 सें. मी. लम्बी व 1 सें. मी. व्यास वाली ठोस चमकदार व सफेद जड़ उत्तम श्रेणी की मानी जाती है।

मध्यम या सी श्रेणी

3-4 सें. मी. लम्बी, व्यास 1 सें. मी. वाली तथा ठोस संरचना वाली जड़ें मध्यम श्रेणी में आती हैं।

निम्न या डी श्रेणी

उपरोक्त के अतिरिक्त बची हुई कटी-फटी, पतली, छोटी व पीले रंग की जड़ें निम्न अथवा डी श्रेणी में रखी जाती हैं।

जड़ो को जूट के बोरों में भरकर हवादार जगह पर भडांरण करें। भडांरण की जगह दीमक रहित होनी चाहिए। इन्हें एक वर्ष तक गुणवत्ता सहित रुप में रखा जा सकता है।

उपज

आमतौर पर एक हैक्टर से 6.5-8.0 कुंतल ताजा जड़ें प्राप्त होती हैं जो सूखने पर 3-5 क्विंटल रह जाती है। इससे 50-60 किलो बीज प्राप्त होता है

विपणन (मार्कटिंग)

नीमच मण्डी (मघ्य प्रदेश), अमृतसर (पंजाब), खारी बावली (दिल्ली), पंचकूला (हरियाणा), सीतामढ़ी (बिहार)

फसल चक्र

अश्वगंधा खरीफ फसल के रूप मे लगाई जा सकती है तथा फसल चक्र में गेहूं की फसल ली जा सकती है।

गुणवत्ता

खारे पानी से भी इस फसल को उगाया जा सकता है। इसकी लवण सहनशीलता 16 ई. सी. तक होती है। खारे पानी के उपयोग से इसकी गुणवता में 2 से 2) गुणा वृद्धि होती है। अल्कलायड की मात्रा 0.5 से बढ़कर 1.2 प्रतिशत हो जाती हैं।

उपयोग

अश्वगंधा की जड़ें व पत्तियां औषधि के रूप में काम में लाई जाती हैं जो कि निम्नलिखित बीमारियों में उपयोगी है।

विथेफेरिन : टयूमर प्रतिरोधी है।

विथेफेरिन-ए : जीवाणु प्रतिरोधक है।

विथेनीन : उपशामक व निद्रादायक होती है।

जड़ों का उपयोग

Roots

सूखी जड़ों से आयुर्वेदिक व यूनानी दवाइयां बनाई जाती हैं। इसकी जड़ों से गठिया रोग, त्वचा की बीमारियां, फेफड़े में सूजन, पेट के फोड़ों तथा मंदाग्निका उपचार किया जाता है। पंजाब में इसकी जड़ों का उपयोग कमर व कूल्हों के दर्द निवारण हेतु किया जाता है।

पत्तियों का उपयोग

पत्तियों से पेट के कीड़े मारने तथा गर्म पत्तियों से दुखती आँखों का इलाज किया जाता है। हरी पत्तियों का लेप घुटनों की सूजन तथा क्षय (टी.बी.) रोग के इलाज के लिए किया जाता है। इसके प्रयोग से रुके हुए पेशाब के मरीज को आराम मिलता है। इसे भारतीय जिनसेंग की संज्ञा दी गई है जिसका उपयोग शक्तिवर्धक के रूप में किया जा रहा है। इसके नियमित सेवन से मानव में रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है। इसकी निरन्तर बढ़ती मांग को देखते हुए इसके उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं।

अश्वगंधा की खेती के लिए आय-व्यय का ब्यौरा

एक हेक्टेयर में अश्वगंधा पर अनुमानित व्यय रु. 10000/- आता है जबकि लगभग 5 क्विंटल जड़ों तथा बीज का वर्तमान विक्रय मूल्य लगभग 78,750 रुपये होता है। इसलिए शुद्ध-लाभ 68,750 रुपये प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता है। उन्नत प्रजातियों में यह लाभ और अधिक हो सकता है।

सारणी-1. अश्वगंधा की खेती का प्रति हेक्टेयर आय-व्यय का विवरण

 

व्यय

रु.

1.

खेत की तैयारी

2000.00

2.

बीज की कीमत

1000.00

3.

नर्सरी तैयार करना

500.00

4.

पौध रोपण

2000.00

5.

निराई, गुडाई

1000.00

6.

सिंचाई

500.00

7.

खाद, उर्वरक और उनका प्रयोग

1000.00

8.

जड़ की खुदाई और उनकी सफाई

2000.00

 

योग

10000.00

* दिये गये कुल योग में स्थान अनुसार और वर्तमान मुद्रास्फीति की दर के अनुसार परिवर्तन हो सकता है। अत: दिया गया आय-व्यय का विवरण रुपये मूल्यों में परिवर्तनीय है। यह केवल अनुमान पर आधारित है।

 

आय

 

उपज

मूल्य प्रति किलो ग्राम

कुल आय

जड़ें 5 क्विंटल

145/-

72,500.00

बीज 50 किलोग्राम

125/-

6,250.00

 

योग

78,750.00

शुद्ध-लाभ प्रति हेक्टेयर : 78,750-10,000 = 68,750 रुपये

** दी गई कुल आय में स्थान अनुसार खर्च और वर्तमान मुद्रास्फीति की दर के अनुसार परिवर्तन हो सकता है। अत: दिया गया आय (लाभ) का विवरण रुपये मूल्यों में परिवर्तनीय।यह केवल अनुमान पर आधारित है।

स्त्रोत : केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, करनाल 132001, हरियाणा

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