- परिचय
- लक्षण
- रोग फेलने के कारण
- इससे होने वाले नुकसान (दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक)
- इसकी रोकथाम के उपाय
- इसको फेलने से केसे रोकें
भारत में पिछले एक महीने के दौरान लंपी स्किन डिजीज की वजह से काफी ज्यादा पालतू पशुओं की मौत हो चुकी है जिनमें से ज्यादातर गायें हैं। ये जानलेवा वायरस गुजरात, राजस्थान और पंजाब समेत अन्य राज्यों में मवेशियों की जान ले रहा है। लंपी वायरस की वजह से अकेले गुजरात में रोज करीब एक लाख लीटर दूध का प्रोडक्शन घट गया है तो आइये जानते है इसके लक्षण, नुकसान और उसकी रोकथाम के बारे में :-
जानवरों में बुखार आना, आंखों एवं नाक से स्राव, मुंह से लार निकलना, पूरे शरीर में गांठों जैसे नरम छाले पड़ना, दूध उत्पादन में कमी आना और भोजन करने में कठिनाई इस बीमारी के लक्षण हैं इसके अलावा इस रोग में शरीर पर गांठें बन जाती हैं । गर्दन और सिर के पास इस तरह के नोड्यूल ज्यादा दिखाई देते हैं कई दफा तो ये भी देखा जाता है कि इस रोग के चलते मादा मवेशियों में बांझपन, गर्भपात, निमोनिया और लंगड़ापन झेलना पड़ जाता है। इस वायरस से भैंसों के मुकाबले गायों की मौत ज्यादा होती है क्योंकि भैसों की नैचुरल इम्युनिटी गायों से ज्यादा होती है।संक्रमित मवेशी में ये लक्षण कैसे सामने आते हैं, चलिए समझते हैं …
- इंफेक्शन होने के बाद लक्षण दिखने में 4-7 दिन का समय लगता है इसे इन्क्यूबेशन पीरियड कहते हैं ।
- शुरुआत में गायों या भैसों की नाक बहने लगती है, आंखों से पानी बहता है और मुंह से लार गिरने लगती है ।
- इसके बाद तेज बुखार हो जाता है, जो करीब एक हफ्ते तक बना रह सकता है ।
- फिर जानवर के शरीर पर 10-50 मिमी गोलाई वाली गांठें निकल आती हैं साथ ही उसके शरीर में सूजन भी आ जाती है ।
- जानवर खाना बंद कर देता है क्योंकि उसे चबाने और निगलने में परेशानी होने लगती है । इससे दूध का प्रोडक्शन घट जाता है ।
- ज्यादा दूध देने वाली वाली गायों पर लंपी का खतरा ज्यादा रहता है क्योंकि उनकी शारीरिक और मानसिक ताकत दूध उत्पादन में लग जाती है जिससे वे कमजोर हो जाती हैं ।
- कई बार लंपी पीड़ित गायों की एक या दोनों आंखों में गहरे घाव हो जाते हैं जिससे उनके अंधे होने का खतरा रहता है ।
- कई बार चेचक के घाव पूरे पाचन, श्वसन और शरीर के लगभग सभी आंतरिक अंगों में हो जाते हैं ।
- जानवरों में बांझपन और गर्भपात की समस्या नजर आती है । जानवर बहुत कमजोर हो जाता है।
- ये लक्षण 5 हफ्ते तक बने रहते हैं इलाज न होने पर मौत भी हो सकती है ।
- लंपी संक्रमित मवेशियों को ठीक होने में दो हफ्ते से एक महीने तक का समय लगता है ।
- वहीं इस बीमारी से गंभीर रूप से संक्रमित मवेशी के वायरस से पूरी तरह उबरने में करीब 6 महीने तक लग जाते हैं ।
लंपी एक संक्रामक बीमारी है । यूएन फूड एंड एग्रीकल्चरल ऑर्गेनाइजेशन यानी FAO के अनुसार लंपी बीमारी मच्छर, मक्खियों, जूं और पिस्सू जैसे जीवों के जरिए फैलने वाली एक चेचक जैसी बीमारी है । एक्सपर्ट्स के मुताबिक ये बीमारी जानवरों के एक जगह से दूसरी जगह मूवमेंट से भी फैलती है ये बारिश में तेजी से फैलता है । पशुओं की लार तथा दूषित जल एवं भोजन के माध्यम से फैलता है ।
इससे होने वाले नुकसान (दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक ) :-
- लंपी वायरस से मौत होने की संभावना :- एक पशु से दूसरे पशु में लंपी वायरस फैलने की दर 45% है लेकिन मौत की दर 5 से 10% है । वर्ल्ड आर्गनाइजेशन फॉर एनिमल हेल्थ यानी WOAH के अनुसार इस बीमारी में मृत्यु दर 5% तक है। FAO के अनुसार, लंपी से मौत की दर 10% से कम होती है ।
- क्या लंपी संक्रमित जानवर का दूध पीना सुरक्षित है :– एक्सपर्ट्स के मुताबिक ऐसे दूध को 100 डिग्री सेंटीग्रेड तक गरम करने यानी अच्छी तरह उबालने से उसमें मौजूद वायरस खत्म हो जाते हैं । अभी तक लंपी से संक्रमित पशु का दूध पीने से इंसानों के बीमार होने का कोई मामला सामने नहीं आया है ।
- क्या इंसानों में फैल सकता है लंपी :- नहीं । लंपी वायरस जानवरों से इंसानों में फैलने वाला वायरस यानी जूनोटिक नहीं है ।
- देश में इस बीमारी का क्या असर पड़ रहा है :- भारत में लंपी बीमारी फैलने से बड़ी संख्या में गायों की मौत हो रही है। इससे कई राज्यों में दूध का उत्पादन घट गया है। अकेले गुजरात में रोज 1 लाख लीटर दूध का उत्पादन घट गया है। बाकी प्रभावित राज्यों का दूध उत्पादन भी 10-15% तक घट गया है। लंपी आने के तुरंत बाद संयुक्त राष्ट्र की संस्था FOA ने एक आकलन किया था इसके मुताबिक लंपी बीमारी के चलते भारत और साउथ ईस्ट एशिया में करीब 11 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हो सकता है ।
दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक :–
इसके लिए कोई खास एंटीवायरल दवा उपलब्ध नहीं है। इसे फैलने से रोकने का एकमात्र उपाय संक्रमित गाय-भैंस को कम से कम 28 दिन के लिए आइसोलेट करना है। इस दौरान उनके लक्षणों का इलाज होते रहना चाहिए।
सबसे ज्यादा ध्यान शरीर पर होने वाली गांठों का रखना चाहिए क्योंकि इससे दूसरे इंफेक्शन और निमोनिया हो सकता है। संक्रमित जानवरों की भूख बनाए रखने के लिए एंटी-इंफ्लेमेटरी पेनकिलर्स जैसे पैरासीटामॉल का इस्तेमाल किया जाता है।
भारत में फिलहाल लंपी से सुरक्षा के लिए गोट पॉक्स-वायरस वैक्सीन लगाई जा रही है। नेशनल डेयरी डेवलेपमेंट बोर्ड ने लंपी से बचाव के लिए गुजरात, राजस्थान और पंजाब को गोट पॉक्स वैक्सीन की 28 लाख डोज भेजी हैं।
केंद्र सरकार ने लंपी के लिए लंपी-प्रोबैकएंड नाम से एक नई स्वदेशी वैक्सीन लॉन्च की है। इसे इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च यानी (ICAR ) की हिसार और बरेली यूनिट ने विकसित किया है ।
देश के राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की ओर से लंपी स्किन रोग के लिए परंपरागत उपचार की विधि बताई गई है गाय के संक्रमित होने पर अगर इन परंपरागत उपायों को भी कर लिया जाए तो काफी राहत मिल सकती है ।
ये है परंपरागत उपचार की विधि :-
पहली विधि :- सामग्री- 10 पान के पत्ते, 10 ग्राम कालीमिर्च, 10 ग्राम नमक और गुड़ आवश्यकतानुसार
. इस पूरी सामग्री को पीसकर एक पेस्ट बना लें और इसमें आवश्यकतानुसार गुड़ मिला लें ।
. इस मिश्रण को पशु को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पशु को खिलाएं ।
. पहले दिन इसकी एक खुराक हर तीन घंटे पर पशु को दें ।
. दूसरे दिन से दूसरे सप्ताह तक दिन में 3 खुराक ही खिलाएं ।
. प्रत्येक खुराक ताजा तैयार करें ।
दूसरी विधि :- घाव पर लगाए जाने वाला मिश्रण ऐसे तैयार करें –
सामग्री :- कुम्पी का पत्ता 1 मुठ्ठी, लहसुन 10 कली, नीम का पत्ता 1 मुठ्ठी, मेहंदी का पत्ता 1 मुठ्ठी, नारियल या तिल का तेल 500 मिलीलीटर, हल्दी पाउडर 20 ग्राम, तुलसी के पत्ते 1 मुठ्ठी ।
बनाने की विधि :- पूरी सामग्री को पीसकर इसका पेस्ट बना लें इसके बाद इसमें नारियल या तिल का तेल मिलाकर उबाल लें और ठंडा कर लें ।
ऐसे करें उपयोग :- अब गाय के घाव को अच्छी तरह साफ करने के बाद इस ठंडे मिश्रण को सीधे घाव पर लगाएं वहीं अगर घाव में कीड़े दिखाई दें तो सबसे पहले नारियल के तेल में कपूर मिलाकर लगाएं या फिर सीताफल की पत्तियों को पीसकर उसका पेस्ट बना लें और घाव पर लगा दें ।
- संक्रमित पशुओं को अपने पालतू जानवरों से दूर रखें ।
- मवेशियों के आसापास की जगहों को साफ करें ।
- पालतू जानवर जहां रहते हैं वहां मच्छरों और मक्खियों को पनपने से रोकें ।
- बीमार पशु का जूठा चारा या दाना-पानी दुसरे पशुओं को न दें ।