ज्वार (Sorghum)

Table Of Content
Search
Search

ज्वार विश्व की एक मोटे अनाज वाली महत्वपूर्ण फसल है ज्वार की फसल को किसी भी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है किन्तु अधिक मात्रा में उत्पादन प्राप्त करने के लिए खेती उचित जल निकासी वाली चिकनी मिट्टी में करे । इसकी खेती में भूमि का P.H. मान 5 से 7 के मध्य होना चाहिए । इसकी खेती खरीफ की फसल के साथ की जाती है उस दौरान गर्मी का मौसम होता है गर्मियों के मौसम में उचित मात्रा में सिंचाई कर अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है ।

ज्वार की बिजाई के लिए मुख्यतया 25-30 डिग्री C तापमान होना चाहिए ।

1 अप्रैल से 30 अप्रैल के बीच का समय बढ़िया माना जाता है ।

ज्वार की फसल उगाने से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार कर ले । इसके लिए सबसे पहले खेत की गहरी जुताई कर दी जाती है । जुताई के पश्चात् खेत में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 10 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को डालना होता है । खाद डालने के तुरंत बाद खेत की जुताई कर खाद को मिट्टी में अच्छे से मिला दे इसके बाद खेत में पानी लगाकर पलेव कर दिया जाता है । ज्वार के खेत में रासायनिक उवर्रक के तौर पर प्रति हेक्टेयर के खेत में एक बोरा डी.ए.पी. का छिड़काव करे यदि फसल हरे चारे के लिए की गयी है तो पौध कटाई के पश्चात् खेत में 20 से 25 KG यूरिया का छिड़काव करे ।

हरा सोना, PCH-106, SL-44 ।

 बीजोपचार के लिए कार्बण्डाजिम (बॉविस्टीन) 2 ग्राम अथवा एप्रोन 35 एस डी 6 ग्राम कवकनाशक दवाई प्रति किलो ग्राम बीज की दर से बीजोपचार करने से फसल पर लगने वाले रोगों को काफी हद तक कम किया जा सकता है इसके अतिरिक्त बीज को जैविक खाद एजोस्पाइरीलम व पी एस बी से भी उपचारित करने से 15 से 20 प्रतिशत अधिक उत्पादन लिया जा सकता है ।

 

ज्वार के बीजों की बुवाई ड्रिल और छिड़काव दोनों विधियों से की जाती है। बुआई के लिए कतार के कतार की दूरी 45 सेंटीमीटर रखें और बीज को 4 से 5 सेंटीमीटर गहरा बोयें ।

बिजाई के समय भूमि और पानी के अनुसार बीज का चयन करे । बिजाई के समय 20 से 30 Kg प्रति एकड़ के बीज की बिजाई करें ।

ज्वार की फसल के लिए सामान्य सिंचाई उपयुक्त होती है । हरे चारे के लिए की गयी खेती में पौधों को अधिक पानी की जरूरत होती है इस दौरान पौधों को 4 से 5 दिन के अंतराल में पानी देना होता है ताकि पौधा ठीक तरह से विकास कर सके और फसल कम समय में कटाई के लिए तैयार हो जाए । ज्वार की फसल में भुट्टा और दाना बंनने की अवस्था में उपयुक्त नमी की जरुरत होती है । अगर बारिश समय अनुसार हो रही है तो सिंचाई की कम होती है ।

अगर ज्वार की खेती हरे चारे के रूप में की गई है तो इसके पौधों को खरपतवार नियंत्रण की जरूरत नही पड़ती। लेकिन इसकी पैदावार के रूप में खेती करने पर इसके पौधों में खरपतवार नियंत्रण करना चाहिए। ज्वार की खेती में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक और रासायनिक दोनों तरीके से किया जाता है। रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए इसके बीजों की रोपाई के तुरंत बाद एट्राजिन की उचित मात्रा का छिडकाव कर देना चाहिए। जबकि प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए इसके बीजों की रोपाई के 20 से 25 दिन बाद एक बार पौधों की गुड़ाई कर देनी चाहिए|

तना छेदक मक्खी :- कार्बोफ्युरॉन का छिड़काव पौधों पर करे ।

ज्वार का भूरा फफूंद :- क्लोरोपाइरीफॉस का छिड़काव पौधों की जड़ो पर करे ।

गोभ में सुंडी :- मोनोक्रोटोफॉस या प्रोफेनोफॉस का छिड़काव पौधों पर करे ।

फूल निकलने के 35-40 दिनों के बाद बाल के पकने पर इसकी कटनी करें । बाली को 2 से 3 दिनों तक धूप में अच्छी तरह सुखाकर इसके दाना को बाली से छुड़ाकर अलग कर ले ।

Posts
Previous slide
Next slide