तोरिया/लाही (Toriya)

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तोरिया लगभग सभी प्रकार की कृषि योग्य भूमि में पैदा हो सकती है । तोरिया की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली हल्की रेतीली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है इसके अलावा इसे और भी कई तरह की भूमि में उगा सकते हैं ।

तोरिया की बिजाई के लिए मुख्यतया 25-35 डिग्री C तापमान होना चाहिए ।

1 सितम्बर से 30 सितम्बर के बिच का समय बढ़िया माना जाता है ।

फसल में बुआई से पूर्व 5 से 7 टन प्रति एकड गोबर की सड़ी खाद तथा उर्वरकों के रूप में 35 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 25 कि.ग्रा. फॉस्फोरस, 15 कि.ग्रा. पोटाश तथा 12 कि.ग्रा. सल्फर प्रति एकड प्रयोग करना चाहिए ।

टी-9, भवानी ,पीटी 303 एवं तपेश्वरी ।

 बीज जनित रोगों से सुरक्षा के लिए फफूंदीनाशक दवा बाविस्टीन 2 ग्राम, एप्रॉन 6 ग्राम, कैप्टॉफ 2 ग्राम या थीरम 2.5 ग्राम नामक रसायन से प्रति कि.ग्रा. बीज को उपचारित अवश्य करें। अगर उपचारित बीज का उपयोग कर रहे हो तो उन्हें उपचारित न करें ।

कतारों के बीच की दुरी लगभग 30 से 45 cm और पौधे से पौधे की दुरी 10 से 15 cm होती है ।

बिजाई के समय भूमि और पानी के अनुसार बीज का चयन करे । बिजाई के समय 1 से 1.5 Kg तोरिया के बीज की बिजाई करें ।

नोट : बिजाई के 30-35 दिन के बाद तोरिया में से निराई गुड़ाई करके खरपतवार निकाले ।

पहली सिंचाई: बिजाई के 40 से 50 दिन के अंदर पहली सिंचाई करें और पहली सिंचाई के साथ 25-30 Kg प्रति एकड़ यूरिया खाद डालें । पहली सिचाई के बाद फसल में गुड़ाई अवश्य करें इससे पोधे की ग्रोथ अच्च्छी होती है ।

दूसरी सिंचाई: बिजाई के 70 से 80 दिन के अंदर दूसरी सिंचाई करें और अगर बारिश हो जाये तो दूसरी सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती ।

अ- क्षेत्र

1. अल्टरनेरिया झुलसा

अल्टरनेरिया एक कवक है। यह बीजाणु पैदा करता है, जो हवा, पानी और उपकरणों के माध्यम से फैल सकता है। यह कवक ब्रैसिका परिवार के किसी भी पौधे को संक्रमित कर सकता है, लेकिन ब्रोकोली और फूलगोभी में यह सबसे अधिक नुकसानदायक होता है। अल्टरनेरिया संक्रमित बीजों के माध्यम से खेतों में प्रवेश कर सकता है।

पहचान

इस रोग में पत्तियों तथा फलियों पर गहरे कत्थई रंग के धब्बे बनते हैं, जिसमें गोल-गोल छल्ले केवल पत्तियों पर स्पष्ट दिखाई देते हैं।

उपचार

झुलसा सफेद गेरूई तथा तुलासिता रोग की रोकथाम हेतु निम्नलिखित में से किसी एक रसायन का छिड़काव प्रति हेक्टर 800-1000 लीटर पानी में मिलाकर करें :-

  1. जाइरम 27 प्रतिशत के 3 लीटर।
  2. मैकोजेब 75 प्रतिशत 2 किलोग्राम।
  3. जाइरम 80 प्रतिशत 2 किलोग्राम।
  4. जिनेब 75 प्रतिशत 2.5 किग्रा।

2. सफेद गेरूई

पहचान

इस रोग में पत्तियों की निचली सतह पर सफेद फफोले बनते हैं और बाद में पुष्प विन्यास विकृत होता है।

उपचार

इसकी रोकथाम भी उपयुक्त रसायनों से की जा सकती है। नोटः 30 दिन की फसल पर एक अवरोधक छिड़काव करना लाभदायक होगा।

ब-कीट

1. आरा मक्खी

आरा मक्खी एक देशी घास खाने वाला कीट है, जो 2010 में कोलोराडो में शीतकालीन एक महत्वपूर्ण कीट बनकर उभरा। वयस्क मई के अंत या जून के आरम्भ में निकलते हैं, जब फसल पक रही होती है, और आमतौर पर तब सक्रिय होते हैं जब हवा शांत होती है और खेत का तापमान 50° F से ऊपर होता है।

पहचान

इसकी गिडारें सरसों कुल की सभी फसलों को हानि पहुंचाती हैं, गिडारें काले रंग की होती है जो पत्तियों को बहुत तेजी से किनारे से अथवा भिन्न आकार के छेद बनाती हुई खाती हैं, जिससे पत्तियां बिल्कुल छलनी हो जाती हैं।

उपचार

निम्नलिखित किसी एक कीटनाशक रसायन का प्रति हेक्टर की दर से प्रयोग करें :-

  1. डाइक्लोरवास 76 प्रतिशत ई.सी. 0.5 लीटर।
  2. मैलाथियान 50 ई.सी. 1.5 लीटर।
  3. क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत धूल 20 किग्रा.।

2. मॉहूं

पहचान

यह छोटा, कोमल शरीर वाला, हरे मटमैले रंग का कीट है, जिसके झुण्ड पत्तियों, फूलों उठलों, फलियों आदि पर चिपके रहते हैं एवं रस चूसकर पौधे को कमजोर कर देते हैं।

उपचार

निम्नलिखित कीट नाशक रसायन की संस्तुत मात्रा प्रति हे. की दर से प्रयोग करे :-

  1. मिथाइल ओडिमेटान 25 ई.सी. 1.00 लीटर या
  2. डायजिनान 20 ई.सी. 1.25 लीटर या क्राइसोपर्लो कार्निया के 50000 अण्डे/लारवा/प्रति हे. 10-15 दिन के अन्तराल पर दो बार प्रयोग करें।
  3. फेनीट्रोथियान 50 ई.सी. 1.00 लीटर या
  4. क्लोरपायरीफास 20 प्रतिशत ई.सी. 0.75 लीटर या
  5. मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत ई.सी. 0.75 लीटर या
  6. क्यूनालफास 25 ई.सी. 1.5 लीटर प्रति हे. या

3. बालदार गिडार (भुड़ली)

पहचान

इस भुड़ली के शरीर का रंग पीला अथवा नारंगी होता है परन्तु सिर पर पीछे का काला होता है तथा शरीर पर घने काले बाल होते हैं

उपचार

इसकी रोकथाम के लिए निम्नलिखित उपचार करें :-

(क) प्रथम अवस्था में गिडार झुण्ड में पाई जाती है। उस समय उन पत्तियों को तोड़कर एक बाल्टी मिट्टी के तेलयुक्त पानी में डाल दिया जाय, जिससे गिडार नष्ट हो जायें।

(ख) विभिन्न अवस्थाओं की गिडारों की रोकथाम हेतु निम्नलिखित में से किसी एक कीटनाशक रसायन का प्रति हेक्टर बुरकाव/छिड़काव किया जाये।

  1. डाइक्लोरवास डी.डी.वी.पी. 76 प्रतिशत ई.सी. 625 मिली.।
  2. कार्बराइल 10 प्रतिशत धूल 25 किग्रा.।
  3. क्लोरपायरीफास 20 .सी. 1.25 लीटर।
  4. क्यूनालफास 25 ई.सी. 1.25 लीटर।

 

नोट: फसल पकते टाइम जडगलन रोग की समस्या आ सकती है ।

 फसल के पकने का समय 25 दिसम्बर से 15 जनवरी के लगभग माना जाता है । फसल पकने पर इसकी फलियाँ पीली पड़ जाती है और दाने सख्त हो जाते है । फसल पकने के बाद अपने सुविधाजनक साधनों से फसल की कटाई और कढ़ाई करे ।

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