तरबूज (Watermelon)

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 तरबूज की खेती के लिए अधिक तापमान वाली जलवायु सबसे अच्छी मानी जाती है अधिक तापमान से फलों की वृद्धि अधिक होती है । अब बात करें इसकी खेती के लिए मिट्टी की तो रेतीली और रेतीली दोमट भूमि इसके लिए सबसे अच्छी रहती है वहीं मिट्टी का पी. एच. मान 5.5-7.0 के बीच होना चाहिए बता दें कि इसकी खेती अनुपजाऊ या बंजर भूमि में भी की जा सकती है।

 

बीजों के अंकुरण के लिए 22-25 डिग्री सेटीग्रेड तापमान अच्छा रहता है।

 

सामान्य रूप से जनवरी  से मार्च में इसकी बुवाई की जाती है परन्तु फ़रवरी  मध्य के आसपास समय ज्यादा उचित समझा जाता है।

इसके लिए खेत की सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई कर दी जाती है जुताई के बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है, इससे खेत की मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में धूप लग जाती है  इसके बाद खेत में 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को डालकर मिट्टी में अच्छे से मिला दिया जाता है । खाद को मिट्टी में मिलाने के पश्चात् पानी लगाकर पलेव कर दे  इसके बाद जब खेत की मिट्टी ऊपर से सूखी दिखाई देने लगती है तब रोटावेटर लगाकर खेत की अच्छे से जुताई कर दी जाती है इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है  मिट्टी के भुरभुरा हो जाने के बाद खेत में पाटा लगाकर भूमि को समतल कर दिया जाता है ।

तरबूज के खेत में यदि आप प्राकृतिक खाद की जगह रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहते है तो उसके लिए आपको आखरी जुताई से पूर्व 40 कि.ग्रा. नत्रजन प्रति हैक्टर देना चाहिए तथा फास्फेट व पोटाश की मात्रा 30-30 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से देनी चाहिए ।

 

यदि आपको अच्छी पैदावार लेनी है तो अच्छी किस्म के बीज उपयोग करें। इसके लिए तरबूज की अच्छी उन्नत किस्मों के नाम इस प्रकार हैं – शुगर बेबी, अर्का ज्योति, आशायी यामातो, डब्लू. 19, पूसा बेदाना, अर्का मानिक आदि है  तरबूज की हाईब्रिड यानि संकर किस्में भी है जिनमें मधु, मिलन और मोहनी प्रमुख रूप से उपयोगी किस्में है। 

औसतन बीज की मात्रा  3-4 किलो प्रति हेक्टर आवश्यकता पड़ती है । बीजों को अधिकतर हाथों द्वारा लगाना प्रचलित है इससे अधिक बीज बेकार नहीं होता है 

 

बिजाई से पहले कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें । रासायनिक उपचार के बाद ट्राइकोडरमा विराइड 4 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें ।  बीजों को छांव में सुखाएं और तुरंत बिजाई कर दें ।

तरबूज की बुवाई के समय दूरी भी निश्चित होनी चाहिए । जाति व भूमि उर्वरा शक्ति के आधार पर दूरी रखते हैं । लम्बी जाति बढ़ने वाली के लिए 3 मी. कतारों की दूरी रखते हैं तथा थामरों की आपस की दूरी 1 मीटर रखते हैं । एक थामरे में 3-4 बीज लगाने चाहिए तथा बीज की गहराई 4-5 सेमी. से अधिक नहीं रखनी चाहिए । कम फैलने वाली जातियों की दूरी 1.5 मी. कतारों की तथा थामरों की दूरी 90 सेमी. रखनी चाहिए ।

तरबूजे की सिंचाई बुवाई के 10-15 दिन के बाद करनी चाहिए । यदि खेत में नमी की मात्रा कम हो तो पहले कमी की जा सकती है । जाड़े की फसल के लिये पानी की कम आवश्यकता पड़ती है लेकिन जायद की फसल के लिये अधिक पानी की जरूरत होती है क्योंकि तापमान बढ़ने से गर्मी हो जाती है जिससे मिट्‌टी में नमी कम हो जाती है । फसल की सिंचाई नालियों से 8-10 दिन के अन्तर से करते रहना चाहिए कहने का तात्पर्य यह है कि नमी समाप्त नहीं हो पाये ।

 40 कि.ग्रा. नत्रजन प्रति हैक्टर तथा फास्फेट व पोटाश की मात्रा 30-30 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से बिजाई के 25 – 30 दिन में  देनी चाहिए इसके अलावा आप प्राकृतिक विधि से तैयार किये गये ग्रोथ बूस्टर भी डाल सकते हो

तरबूज के पौधों को खरपतवार नियंत्रण की अधिक आवश्यकता होती है जिसके लिए निराई – गुड़ाई विधि का इस्तेमाल किया जाता है  इसके पौधों की पहली गुड़ाई एक महीने पश्चात् खेत में खरपतवार दिखाई देने पर की जाती है  गुड़ाई के बाद पौधों की जड़ो पर मिट्टी चढ़ा दी जाती है इससे पौधा अच्छे से विकास करता है और पैदावार भी अधिक प्राप्त होती है | तरबूज के पौधों को अधिकतम तीन से चार गुड़ाई की आवश्यकता होती है 

कद्दू का लाल कीड़ा :-  तरबूज की खेती में यह कीड़ा पौधों में लगता है। इसके निदान के लिए आप कारब्रिल 50 डस्ट का छिड़काव खेतों में कर सकते हैं ।

फल की मक्खी :- तरबूज में फल मक्खी का रोग फल में लगता है इसके कारण फल में छेद हो जाता है। इस रोग से बचाव के लिए तरबूज के पौधों पर मेलाथियान 50 ईसी या फिर एंडोसल्फान 35 ईसी का छिड़काव कर रोगी फलो को तोड़कर अलग कर दें।

बुकनी रोग :- इस रोग में तरबूज की पत्तियों पर सफेद रंग का पाउडर दिखाई पड़ने लगता है जिससे पौधों में प्रकाश संश्लेषण नहीं हो पाता है । इस रोग से बचने के लिए डायनोकेप 0.05% और गंधक 0.03% का छिड़काव करें। 

डाउनी मिल्ड्यू :- यह रोग पौधे की निचली सतह पर गुलाबी रंग के पाउडर के रूप में लगता है। जिससे फसल की उपज में कमी आती है। इस रोग से बचाव के लिए पौधों पर जाइनेब या मैंकोजेब का छिड़काव सप्ताह में 3 से 4 बार करें। 

फ्यूजेरियम विल्ट :- इस रोग से ग्रसित पौधा पूरी तरह से नष्ट होकर गिर जाता है। तरबूज के पौधों को इस रोग से बचाने के लिए बीज रोपाई से पूर्व बीजों को कार्बेन्डाजिम से उपचारित कर लिया जाता है और खेतों में केप्टान 0.3% का छिड़काव करें।

तरबूज के पौधे बीज रोपाई के 85 से 90 दिन पश्चात् तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है  जब इसके फलो में लगा डंठल सूखा दिखाई देने लगे तब उनकी तुड़ाई कर लेनी चाहिए  इसके अतिरिक्त जब फल का रंग हल्का पीला दिखाई देने लगे तो समझ ले कि फल पूरी तरह से पक चुका है  फलो की तुड़ाई के बाद उन्हें किसी ठंडे स्थान पर रखकर संरक्षित कर ले  

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