- परिचय :
- इस्तेमाल :
- फायदे :
- किस्में :
- जलवायु :
- मिट्टी :
- खेत की तैयारी :
- खाद एवं उर्वरक :
- बुआई :
- सिंचाई :
- निराई गुड़ाई :
- कीट और रोकथाम :
- कटाई :
स्विस चार्ड चुकंदर के परिवार का सदस्य है जिसको उसके चमकीले और रंगीन तनों के लिए जाना जाता है। इसके तने पीला, गुलाबी, लाल, नारंगी और सफेद रंगो के होते हैं। इसके पत्ते और तने दोनों को कच्चा या पकाके खाया जाता है।
ताजा स्विस चार्ड को कच्चा सलाद, टॉर्टिला रैप, सूप या ऑमलेट में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके पत्ते और डंठल को आमतौर पर खाना पकाने के लिए उबाला जाता है जिससे इसकी कड़वाहट कम हो जाती है।
इसमें कई पोषक तत्व पाये जाते हैं जिसके कारण यह सेहत के लिए फायदेमंद होता है। विटामिन ए, विटामिन के, विटामिन सी, विटामिन ई, कैल्शियम, मैग्नीशियम, तांबा, जस्ता, सोडियम, फास्फोरस और बहुत कम कैलोरी पाये जाते है। इस सब्जी से कैंसर से लड़ने में मदद, रक्तचाप को कम करने में, मोटापे, मधुमेह, हृदय रोग के खतरे को कम करने में, स्वास्थ्य सुधार करने में, ऊर्जा में वृद्धि और वजन कम करती है।
स्विस चार्ड की अधिक किस्में नहीं हैं लेकिन फोर्ड हुक नामक किस्म की खेती सफलतापूर्वक उत्तरी भारत या दिल्ली के निकट अधिक की जाती है। अन्य किस्मों में ब्राइट येलो, फोर्डहुक, लुकुलस और रूबी आदि है।
स्विस चार्ड एक पौष्टिक सब्जी है जो ठंडी और गर्म दोनों मौसमों में अच्छी तरह से उपज देती है लेकिन ठंड का मौसम इसकी खेती के लिए सबसे अच्छा माना जाता है क्योंकि यह बसंत और पतझड़ के ठंडे तापमान के दौरान आसानी और जल्दी से बढ़ता है। स्विस चार्ड की खेती गर्मियों में भी की जाती है लेकिन गर्मियों में इसका विकास धीरे होता है। 20°-30° सेल्सियस तापमान पर इसके पत्ते अधिक बनते हैं।
इसे सभी प्रकार की मिट्टी में उगाई जा सकती है लेकिन दोमट या हल्की बलुई दोमट जिसका pH मान 6.5-7.5 हो और जल-निकास प्रबंध अच्छा हो, इसकी खेती के लिए उपयुक्त होता हैं।
स्विस चार्ड की खेती के लिए खेत की मिट्टी के अनुसार उसे तैयार किया जाता है। चिकनी मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए 1-2 जुताई और अन्य मिट्टी में जितनी बार में मिट्टी भुरभुरा हो जाये उतनी बार जुताई करनी पड़ती है। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल या ट्रेक्टर से करनी चाहिए जिससे खेत में मौजूद खरपतवार खत्म हो जाये। खेत पानी निकास का प्रबंध अच्छे से कर ले।
खेत जुताई करने के बाद मिट्टी में अच्छे से प्रति हेक्टर 10-12 टन गोबर, 120 किलो नाइट्रोजन, 80 किलो फास्फोरस तथा 60 किलो पोटाश मिला दे। अन्तिम जुताई के समय फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा दे और बचे हुए बाकि नाइट्रोजन को 2-3 बार में पत्तियों को तोड़ने के बाद टोप-ड्रेसिंग के रूप में दे।
उत्तरी भारत में सितम्बर-अक्टूबर और पहाड़ी जगहों में मार्च-अप्रैल का महीना बीज बोने के लिए उपयुक्त रहता है। बीज से पौध बनाने के लिए प्रति हैक्टर 4-5 किलो और सीधे बोने के लिये 6-8 किलो काफी होते हैं।
पौधा तैयार करने के लिए बीज को पंक्तियों में बोया जाता है। 2 पंक्तियों के बीच की दुरी 1-2 सेंटीमीटर और 2 बीजो के बीच की दूरी 2-3 मिलीमीटर होनी चाहिए। जब पौधे में 2-4 पत्तियां आ जाये तो उसे क्यारियों में रोप देना चाहिए।
पौधा रोपने के लिए 2 पंक्तियों के बीच की दुरी 30 सेंटीमीटर और 2 पौधों के बीच की दूरी 20-25 सेंटीमीटर होनी चाहिए। पौधों को शाम के वक्त रोपना चाहिए और सिंचाई भी कर दे। जब पौधे को खेत में रोपने के लिए उखाड़े तब उसे पहले ही हल्की सिंचाई कर लें जिससे पौधों की जड़ों को नुकसान ना पहुंचे।
पहली सिंचाई बीज और पौधे रोपने के तुरंत बाद कर दे और उसके बाद की सिचाई जरुरत के अनुसार करे। स्विस चार्ड एक पत्तेदार सब्जी है जिस कारण से इसे अधिक पानी की जरूरत होती है। हफते में 1-2 बार सिंचाई कर देनी चाहिए।
सिचाई के बाद खरपतवार उग आते है जो पौधों के विकास को कम कर सकते है इसीलिए हर सिचाई के बाद निराई गुड़ाई करते रहना चाहिए। गुड़ाई करने से मिट्टी का वायु-संचार बना रहता है और अगर कोई पौधा ख़राब हो जाये तो उसे दोबारा भी रोपा जा सकता है।
आमतौर पर इसकी खेती के शुरुआत में उखटा और पौध सड़न की परेशानी देखने को मिलती है जिसके रोकथाम के लिए फफूंदीनाशक दवा बेवस्टीन छिड़का जाता है। इसके अलावा एफिड या चेचा, माहू छोटे कीट की परेशानी देखने को मिलती है जिसके रोकथाम के लिए नुवान, एण्डोसल्फान या मेटासिस्टॉक्स का 1% का घोल बनाकर छिड़का जाता है।