Pigeon Pea (अरहर)

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यदि किसान भाई अरहर की अच्छी फसल करना चाहते है तो उसके लिए उचित भूमि का चुनाव जरूरी होता है । जीवांशयुक्त बलुई दोमट व दोमट मिट्टी वाली भूमि को इसके खेती के लिए अच्छा माना जाता है । इसकी खेती के लिए उचित जल निकासी वाली ढाल वाली जगह को सर्वोत्तम माना जाता है ।

अरहर की बिजाई के लिए मुख्यतया 30-40 डिग्री सेल्सियस तापमान होना चाहिए ।

20 जून से 31 जुलाई के बीच का समय बिजाई के लिए बढ़िया माना जाता है ।

मृदा की उर्वरता एवं उत्पादन के लिये उपलब्ध होने पर 15 टन अच्छी सडी गोबर की खाद व 10-15 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 40-45 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 20 किग्रा. सल्फर की आवश्यकता होती है । फास्फोरस युक्त उर्वरकों जैसे सिंगल सुपर फास्फेट, डाई अमोनियम फास्फेट को अरहर की अधिक पैदावार के लिए उपयोग में लाया जाना चाहिए ।

 जे.के.एम.-7, जे.के.एम.189, आई.सी.पी.-8863, बी.एस.एम.आर.-736, आई.सी.पी.एल.-87 ।

बिजाई के लिए मोटे बीज चुनें और उन्हें कार्बेनडाज़िम  2 ग्राम प्रति  बीज के साथ उपचार करें । रसायन के बाद बीज को टराईकोडरमा व्यराईड 4 ग्राम प्रति किलो बीज के साथ उपचार करें ।

अरहर की बुवाई पंक्तियों से पंक्तियों की दूरी 50 सेंटीमीटर रखते हुए करनी चाहिए तथा पौधों से पौधों की दूरी 25 से.मी. उचित है ।

बिजाई के समय भूमि और पानी के अनुसार बीज का चयन करे । बिजाई के समय 6 से 7 Kg बीज की बिजाई करें।

अरहर की फसल को असिंचित दशा में बोया जाता है इसलिए अधिक समय तक वर्षा न होने पर तथा पूर्व पुष्पकरण अवस्था व दाना बनते समय फसल की जरूरत के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए । अच्छी पैदावार के लिए उचित जल निकासी वाली जगह का होना बहुत जरूरी होता है ।

खेत में बीजो की रोपाई के तक़रीबन 60 दिन बाद तक खरपतवार की उपस्थिति फसल के लिए अधिक हानिकारक होती है इसलिए इसके खरपतवार नियंत्रण के लिए पहली निराई-गुड़ाई 25-30 दिन तथा दूसरी निराई-गुड़ाई 45-60 दिन के बाद कर देनी चाहिए । खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई का तरीका सबसे उचित माना जाता है ।

अरहर में फली छेदक कीट पत्ती छेदक एवं माहों का प्रकोप होता है इसके लिए मोनोक्रोटोफॉस 1 मिली लिटर 1 लिटर पानी में या मैटासिटाक्स 15 मिली  लिटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें ।

जब अरहर के पौधों पर लगने वाली फलियाँ 80 प्रतिशत तक पककर भूरे रंग की हो जाये तब इसकी कटाई कर लेनी चाहिए । इसके बाद कटाई के 7 से 10 दिन बाद जब पौधे पूरी तरह से सूख जाये तो उसकी लकड़ी को पीट-पीट कर फलियों को अरहर के पौधों से अलग कर लेना चाहिए ।

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