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फार्मर रजिस्ट्री की नई अंतिम तिथि और पीएम किसान योजना के अपडेट्स
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मूंगफली की खेती के लिए मिट्टी, उर्वरक और सिंचाई की सही जानकारी
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अलसी की खेती: एक लाभदायक तिलहन फसल
Table of Contents अलसी (Linseed): एक महत्वपूर्ण और लाभदायक तिलहन फसल अलसी (Linseed) एक प्रमुख तिलहन फसल है, जिसे भारत में पारंपरिक रूप से रबी सीजन के दौरान उगाया जाता है। यह फसल अपनी बहुपयोगी प्रकृति और पोषण से भरपूर गुणों के लिए जानी जाती है। अलसी के बीजों से

हरियाणा में ग्राम (चना) की खेती की पूरी जानकारी
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हरियाणा में आंवला की सफल खेती के लिए विस्तृत जानकारी और सुझाव
Table of Contents Haryana में भारतीय आँवला (Indian Gooseberry) की खेती Haryana में भारतीय आँवला (Indian Gooseberry) की खेती बहुत फायदेमंद हो सकती है, क्योंकि आँवला कम लागत में अच्छा उत्पादन देता है और इसकी बाजार में हमेशा मांग रहती है। आंवला को भारतीय चिकित्सा प्रणाली में एक महत्वपूर्ण स्थान

किसान मित्र योजना
Table of Contents हरियाणा किसान मित्र योजना हरियाणा सरकार ने किसानों के कल्याण के लिए “हरियाणा किसान मित्र योजना” शुरू की है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य किसानों को विभिन्न क्षेत्रों में वित्तीय सहायता प्रदान करना है ताकि उनकी आय में वृद्धि हो सके और वे अपने कृषि, पशुपालन, डेयरी,

परिचय
फूलों में आर्किड एक अति सुंदर पुष्प है । इसकी उत्पति अमेरिका, मैक्सिको, भारत, श्रीलंका, फिलिपींस, आस्ट्रेलिया इत्यादि देशों को माना जाता है । यह पुष्प अपने अनोखे रूप रंग, आकार, आकृत्ति एवं समय तक रखने योग्य होने के कारण अन्य पुष्पों से अलग है । कटे फूलों में यह एक उच्च स्थान रखता है। आर्किड्स ( Orchidaceae) कुल में 600- 800 प्रजातियों (Genera) और 30,000-35,000 जातियाँ (Species) है। हमारे देश में आर्किड की लगभग 1300 प्रजातियाँ पायी जाती है । इसकी खेती चेन्नई, कोच्ची, बंगलुरू, मुम्बई, तिरुवनंतपुरम, पुणे, सिक्किम एवं गुवाहाटी में व्यावसायिक आर्किड फार्म स्थापित कर की जा रही है । इन जगहों से फूलों को अर्न्तराष्ट्रीय पुष्प बाजार में भी भेजी जाता है । विश्व पुष्प बाजार में भी भेजा जाता है । विश्व बाजार में आर्किड की भागीदारी 8-10 प्रतिशत है ।

आर्किड फूल की दो प्रमुख प्रजातियाँ
आर्किड को वंश के आधार पर कई भागों में बाँटा गया है, पर व्यावसायिक दृष्टिकोण से दो प्रजातियाँ मुख्य है: देन्द्रोबियम प्रजाति एवं सिम्बिदियम प्रजाति।
इस प्रजाति में 1000 से ज्यादा किस्में है । इस किस्म के फूल बड़े एवं अदभुत सुन्दरता के साथ लम्बे समय तक खिले रहते हैं । इनकी किस्मों में, डेन लिबर्टी, डेन लाईजिंदा, डेन जिंदा स्वीट, डेन सूरी पीच, डेन वैलेंटाइन, डेन यल्लो सकूरा न्यू मैडम, डेन सूरी, डेन डंग टावी, डेन अन्ना, डेन सकूरा, डेन डी, - 40, डेन फातिमा, डेन रेडब्लू, डेन रेड सोनिया, डेन लिंडा व्हाईट, प्रीटी डॉल, डेन सूरी गोल्ड, डेन ब्लू बटर फ्लाई, डेन डीलाईट, डेन लवली पिंक, डेन सिरीन क्लासिक, डेन लकी पिंक, डेन इलिगा व्हाईट, डेन अरी द्रु डेन बूराना जाड़े ग्रीन, डेन चार्मिंग व्हाईट, डेन क्वीन पिंक लाईट, डेन व्हाईट सेनान, डेन चिड चाम, डेन मिस्टीन, चैनेल, डेन एसबोर्थी, डेन साम बेली, डेन कूलयाना, डेन कूलयाना, डेन रोयल वेलवेट, डेन येमी, डेन गोल्डन ब्लोसम, डेन हनीलीन, डेन ओरियंटल ब्यूटी एवं डेन सेलर ब्याय मुख्य हैं ।
इसकी कई संकर किस्मों को व्यावसायिक स्तर पर खेती के लिए उगाया जा रहा है । इनमें सोनिया 17 म्यूटेंट, सोनिया 17 म्यूटेंट, सोनिया 28 म्यूटेंट, हैंग ब्यूटी , रानापा, डोरिन व्हाईट, कसम व्हाईट, ममे वीपर, कसम गोल्ड, पी. एम्. 11, वाय पालू ब्यूटी, सरीफा फतेमाह, वाल्टर ओमी एवं जियाद गोल्ड प्रमुख है ।
देन्द्रोवियम के स्टैंडर्ड आकार/साईज
लम्बाई एक्स. एल. 56 अप
एल. 45-55
एम्. 40-45
एस. 35-40
एस.एस. 30 अप
सिम्बिदियम प्रजाति
यह आर्किड भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्र में पाया जाता है । इसकी शाखाओं में घने एवं ढंके हुए फूल विभिन्न रंगों के पाये जाते है ।

इनकी किस्में निम्न है-
सिम्बिदियम पिंक लेडी, सी. सनगोल्ड, सी. लोबिनम, सी. ऐलेक्जेंड्री वेस्टो नबीट, सी. कैरिस्बूक, सी. रेड ब्यूटी, सी. बैल्टिक, सी. किंग अरतूर, सी. रसस्टोन महोगनी, सी. मोरही हिन्द आदि ।

जलवायु एवं मिट्टी-
आर्किड की खेती में आर्द्रता का होना प्रमुख है । साथ- ही - साथ छाया का थोड़ी मात्रा में रहना, हवा का आना-जाना इनके पौधों की वृद्धि में सहायक है ।

पौध प्रवर्धन-
आर्किड का प्रसारण बीज, विभाजन, भूस्तारी या उत्तक सम्वर्धन द्वारा किया जाता है । बीज द्वारा : बीज से उगाये पौधों में बहुत दिन के बाद फूल खिलते हैं। विभाजन द्वारा : पौधों के घने होने पर उनका विभाजन कर नये पौधे तैयार किए जाते हैं । नये पौधों को आई. बी.ए. (2000 पी. पी. एम्.) के घोल से उपचारित करने से अच्छी जड़ें निकलती है । भूस्तरी द्वारा : आर्किड में ईख की तरह नये- नये पौधे मातरी पौधे से अलग बनते है । इन भूस्तारी पौधों को मातरी पौधे से अलग कर नये पौधे तैयार कियें जाते हैं । उत्तक सम्वर्धन द्वारा : इस विधि में टिसू कल्चर द्वारा विभिन्न हिस्से से उत्तक निकालकर मातरी पौधे के समान तथा रोगमुक्त नये पौधे तैयार किये जाते हैं ।

देन्द्रोबियम आर्किड की खेती
झारखण्ड राज्य की राजधानी राँची के निकट नामकुम में देन्द्रोबियम आर्किड के व्यावसायिक कृषि हेतु पहली बार देन्द्रोबियम पौधशाला की स्थापना की गई है । इस फार्म में 3000 वर्ग मीटर में शेड नेट तथा शीत रूम का निर्माण किया गया है । देश के विभिन्न जगहों एवं विदेशों से भी तरह – तरह के देन्द्रोबियम के पौधे मँगाकर उनका प्रावधान किया जा सकेगा । इस नर्सरी में राज्य के किसानों, पदाधिकारी, स्वंय संस्थाओं के प्रतिनिधि को प्रशिक्षित किया जा सकेगा जिससे राज्य में इसकी खेती को बढ़ावा मिलेगा ।

पौध रोपण
इसे गमला, टोकरी, पेड़ जू छाल, लकड़ी की टोकरी, नारियल के छिलके में लगाया जाता है । नये पौधों को वसंत के अंत गर्मी के शुरू में लगाने से पौधों में अच्छी वृद्धि देखी गई है । गमले में पानी के निकास के लिए नीचे एवं बगल में छेद कर दें। गमले का आकार भी पौधे के वृद्धि के अनुरूप होना चाहिए ।
गमले टोकरी के लिए ईंटों के टुकड़े, चारकोल, टाईल्स के टुकड़े, कोकोनट हस्क, फर्न इत्यादि दें। इन्हीं मिट्टी में भी लगाया जा सकता है बशर्ते उसमें मिट्टियाँ इसी तरह भरा जाय । गमले को भरने के बाद आर्किड के पौधे को रख दें तथा पानी से सिंचाई कर दें । एक हेक्टेयर में 1.0लाख से 1.5 लाख पौधे लगाये जा सकते हैं ।

खाद उर्वरक
आर्किड के लिए कई पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है । नत्रजन ज्यादा होने से वृद्धि ज्यादा होती है पर पुष्प अच्छे नहीं आते । बाजार में आर्किड के लिए अलग से बने बनाए खाद उपलब्ध है जिसके 0.1 – 0.2 प्रतिशत का छिड़काव सप्ताह में 2-5 बार किया जाता है फूलों की कटाई के 3 दिन पहले छिड़काव बंद कर दें जैविक खाद के रूप में गोबर, गोमूत्र, बादाम की खल्ली एवं नीम की खल्ली को पानी में घोलकर 4-5 दिन के बाद (1:10) घोल का छिड़काव सप्ताह में एक बार करना चाहिए ।

देखभाल
पॉली हाउस में लगने दे बाद मे समुचित देख-भाल आवश्यक है । लगाये गये पौधों के लिए सहारे की जरूरत होती है । गमले या कभी - कभी लगाये गए स्थान पर पानी का निकास आवश्यक है । खरपतवार को भी समय-समय पर निकाल देना आवश्यक है । संरक्षित खेती में अल्ट्रा वायलेट एग्रो शेडनेट में लगाने से वृद्धि अच्छी होती है । शेडनेट कई रंगों में मिलता है, पर हरा या काला शेडनेट अच्छा है ।

सिंचाई
पौधों में सिंचाई छिड़काव विधि से करना चाहिए । गर्मिंयों में सिंचाई सुबह – शाम तथा जाड़े में एक बार करें । आर्किड में कम पानी की आवश्यकता होती है । कम पानी देने से रोग नहीं लगते ।

आर्द्रता एवं तापक्रम
वातावरण में आर्द्रता 75-80 प्रतिशत होने से पुष्पन और वृद्धि दोनों ठीक रहते हैं । उसी तरह दिन का तापक्रम 20-28० सेल्सियस तथा रात का तापक्रम 18-21० सेल्सियस होने से पौधे एवं फूल खिलने में अच्छा रहता है ।

पुष्पन
आर्किड के पौधे दिन तटस्थ होते हैं । यह दिनों की लम्बाई से प्रभावित नहीं होते है इसके पौधे परिपक्व होने पर किसी भी मौसम या समय में फूल देने के कारण पूरे साल बाजार में उपलब्ध होते है ।

रोग एवं नियंत्रण
पर्णदाग: यह फूफून्द के कारण होता है । इससे प्रभावित पत्तियों पर भूरे धब्बे पड़ते है । इसकी रोकथाम के लिए डायथेन एम्-45 (2-3 ग्राम/लिटर) या वेमिस्टन (2 ग्राम/ लिटर) पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें ।
वायरस : यह रोग कीट द्वारा फैलता है । कीट से सुरक्षा हेतु मेटासिस्टाक्स दवा को 2 मि. ली./ लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें ।
ब्लैक रौट : पौधे काले पड़ जाते हैं, पत्तियाँ झड़ने लगती है नियंत्रण के लिए रिडोमिल 2 ग्राम/ लीटर दवा का प्रयोग करें ।
सॉफ्ट रौट : पत्तियों के अग्र भाग में पानी जैसा चिपचिपा तथा हरे रंग का दाग दिखाई देता है नियंत्रण के लिए स्ट्रेफ़टोसैकिलं दवा को 3 ग्राम / लीटर पानी में देकर छिड़काव करें ।
थ्रिप्स : यह भी पत्तीयों का रस चूसता है तथा फूलों को नुकसान पहूँचाता है । उपरोक्त दवा का उपयोग इस कीट के लिए भी करें । प्रत्येक छिड़काव में स्टीकर ( स्टिकाल ) का उपयोग अवश्य करें ।
निमाटोड : फूरड़ोन 3 जी 0.5-1.0 ग्राम पौधों की जड़ों में देना चाहिए ।
आर्किड के फूल ज्यादा दिनों तक ताजे रूप में रहते हैं । यदि परागण न हो तो ये 1-1.5 माह अथवा इससे भी अधिक दिनों तक ठीक बने रहते हैं । परागण के पश्चात फल में बीज अधिक मात्रा में बनते हैं जो अत्यंत छोटे होते हैं । प्राय: एक फल में कई हजार बीज होते है और हल्के होने के कारण सुगमता से वायु द्वारा प्रसारण हो जाता है ।
आर्किड के जड़ों में कवक रहता है जो पौधे को नुकसान नहीं करता है इनका महत्व फूलों की सुन्दरता एवं सजधज से है ।