- जायफल की खेती (Nutmeg Farming)
- जायफल की खेती कैसे होती है -
- जायफल की उन्नत किस्में
- जायफल के खेत की तैयारी
- गड्डो में उर्वरक की मात्रा
- जायफल के पौधों की रोपाई का सही समय और तरीका
- जायफल के पौधों की सिंचाई
- जायफल के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण
- जायफल के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम
- जायफल के फलो की तुड़ाई छटाई, पैदावार और लाभ
- जायफल के फायदे
जायफल की खेती मसाला फसल के रूप में की जाती है | इसका पौधा सदाबहार होता है | जायफल की खेती भारत के साथ-साथ कई देशो में की जाती है, तथा इंडोनेशिया के मोलुकास द्वीप को इसकी उत्पत्ति का स्थान कहा जाता है | इसके अलावा इसे चीन के गुआंगडांग, ताइवान, मलेशिया, ग्रेनाडा, दक्षिणी अमेरिका, युन्नान प्रान्त, श्री लंका और इण्डोनेशिया में अधिक मात्रा में उगाया जाता है | इसके सूखे फलों का इस्तेमाल मसाले, सुगन्धित तेल और औषधियों को बनाने के लिए किया जाता है |
जायफल के पौधों को तैयार होने में 6 से 7 वर्ष का समय लग जाता है, तथा पूर्ण विकसित पौधा 15 से 20 फ़ीट ऊँचा होता है | इसके कच्चे फलों को जैम, कैंडी और अचार को बनाने के लिए इस्तेमाल करते है | वर्तमान समय में जायफल की कई उन्नत क़िस्मों को उगाया जा रहा है | जिसमे फल और फूल गुच्छो में विकास करते है, तथा निकलने वाले फल नाशपाती आकार के होते है |
भारत में जायफल की खेती एरनाकुलम व कोट्टयम, त्रिशोर और तमिलनाडु के तिरुनेलवेल्ली व कन्याकुमारी के कुछ भागो में की जा रही है | किसान भाई कम खर्च में जायफल की खेती कर अच्छा लाभ कमा रहे है | यदि आप भी जायफल की खेती कैसे होती है (Nutmeg Farming in Hindi) और बाजार में जायफल का भाव कितना है? इस जानकारी को प्राप्त करके लाभान्वित होना चाहते है, तो इसके बारे में बताया गया है |
यहाँ आपको जायफल की खेती हेतु उपयुक्त मिट्टी, तापमान और जलवायु (Nutmeg Cultivation Suitable Soil, Climate and Temperature) से सम्बंधित जानकारी इस प्रकार है:-
जायफल की खेती किसी भी उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती है,किन्तु व्यापारिक रूप से अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए बलुई दोमट मिट्टी या लाल लेटेराइट मिट्टी को उपयुक्त माना जाता है | सामान्य P.H. मान वाली भूमि में इसकी खेती आसानी से की जा सकती है | इसके पौधे को उष्णकटिबंधीय जलवायु की आवश्यकता होती है, तथा सर्दी और गर्मियों के मौसम में इसके पौधे अच्छे से विकास करते है |
अधिक समय तक ठंड रहने और गिरने वाला पाला पौधों के लिए हानिकारक होता है | सामान्य वर्षा में पौधों का विकास ठीक तरह से होता है | इसके पौधे 20 से 22 डिग्री तापमान पर अच्छे से अंकुरित होते है, तथा पौध विकास के लिए 25 से 30 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है | जायफल के पौधे न्यूनतम 10 डिग्री तथा अधिकतम 37 डिग्री तापमान को ही सहन कर सकते है |
आई.आई.एस.आर विश्वश्री :-
जायफल की यह क़िस्म भारतीय मसाला फसल अनुसंधान संस्थान, कालीकट के माध्यम से तैयार की गयी है | इसके पौधे को उत्पादन देने में 8 वर्ष का समय लग जाता है, तथा पूर्ण विकसित पौधे से 1000 फलों की मात्रा प्राप्त हो जाती है | यह क़िस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सूखे छिलके सहित 3100 KG का उत्पादन दे देती है | इसमें पौधों से जायफल और जावित्री दोनों का ही उत्पादन प्राप्त हो जाता है | जिसमे जायफल 70 प्रतिशत और जावित्री की मात्रा 30 प्रतिशत तक होती है |
केरलाश्री :-
यह क़िस्म भारतीय मसाला फसल अनुसंधान संस्थान, कालीकट के माध्यम से तैयार की गयी है | इस क़िस्म को तमिलनाडु और केरल में उगाया जाता है | इसके पौधे बीज रोपाई के 6 वर्ष बाद उत्पादन देना आरम्भ करते है तथा 4 वर्ष पश्चात् पौधों पर फूल निकलने लगते है | पौध रोपाई के तक़रीबन 25 वर्ष पश्चात् यह पूरी तरह से वृक्ष का रूप ले लेता है | जिसका सालाना प्रति हेक्टेयर उत्पादन 3200 KG के आसपास होता है |
जायफल का पौधा एक बार लगने के बाद कई वर्षो तक पैदावार देने के लिए तैयार हो जाता है | इसलिए इसके खेत को आरम्भ में भी अच्छे से तैयार कर लिया जाता है | खेत को तैयार करने के लिए सबसे पहले खेत की मिट्टी पलटने वाले हलो से गहरी जुताई कर दी जाती है | इससे खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाते है, जिसके बाद उन्हें खेत से निकाल कर खेत की सफाई कर दी जाती है | जुताई के पश्चात खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है ताकि खेत की मिट्टी में सूर्य की धूप ठीक तरह से लग जाये और मिट्टी में मौजूद हानिकारक तत्व नष्ट हो जाये |
इसके बाद खेत में पानी लगाकर पलेव कर दिया जाता है | पलेव के बाद जब मिट्टी ऊपर से सूख जाती है, तो कल्टीवेटर से दो से तीन तिरछी जुताई कर दी जाती है उसके बाद रोटावेटर लगाकर खेत की मिट्टी को भुरभुरा कर दिया जाता है भुरभुरी मिट्टी में पाटा लगाकर खेत को समतल कर देते है |
जायफल के पौधों को लगाने के लिए तैयार किये गए गड्डो को उचित मात्रा में उवर्रक देना होता है ताकि पौधों का विकास ठीक तरह से हो सके इसके लिए गड्डो को तैयार करते समय 10 से 12 KG जैविक खाद को 200 GM एन. पी. के. की मात्रा के साथ मिट्टी में अच्छे से मिलाकर प्रत्येक गड्डे में भर देते है यह मात्रा पौधों को तीन वर्ष तक लगातार देनी होती है | पौध विकास के साथ उवर्रक की मात्रा को बढ़ा दिया जाता है |
जायफल के पौधों की रोपाई बीज और कलम दोनों ही तरीके से की जाती है | इसके लिए नर्सरी में पौधों को तैयार कर लिया जाता है| किसान भाई चाहे तो किसी सरकारी रजिस्टर्ड नर्सरी से भी पौध खरीद सकते है | पौधों की रोपाई खेत में तैयार गड्डो में एक छोटा सा गड्डा बनाकर की जाती है | इन गड्डो को रोपाई से पूर्व उन्हें गोमूत्र या बाविस्टीन की उचित मात्रा से उपचारित कर लिया जाता है | इससे पौधों को आरम्भ में लगने वाले रोगों का खतरा कम होता जाता है | गड्डो में लगाए गए पौधों को 2 CM की गहराई में लगाना होता है |
जायफल के पौधों की रोपाई के लिए बारिश के मौसम को सबसे उपयुक्त माना जाता है इसके लिए जून से अगस्त माह के मध्य में पौधों की रोपाई कर सकते है| यह मौसम पौधों के विकास के लिए सबसे अच्छा होता है यदि किसान भाई चाहे तो पौधों को मार्च माह के अंत तक भी लगा सकते है किन्तु मार्च में लगाए गए पौधों को अधिक देख रेख की आवश्यकता होती है|
जायफल के पौधों को आरम्भ में अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है | गर्मियों के मौसम में इसके पौधों को 15 से 17 दिन के अंतराल में पानी देना होता है, तथा सर्दियों के मौसम में 25 से 30 दिन के अंतराल में पौधों की सिंचाई कर दे | वर्षाऋतु के मौसम में इसके पौधों को पानी की जरूरत न के बराबर होती है यदि वर्षा समय पर नहीं होती है तो पौधों को पानी दे सकते है | जायफल के पौधों को एक वर्ष में केवल 5 से 7 सिंचाई की ही जरूरत होती है |
जायफल की फसल में खरपतवार पर नियंत्रण पाने के लिए प्राकृतिक विधि का इस्तेमाल किया जाता है | इसकी फसल में पहली गुड़ाई पौध रोपाई के 25 से 30 दिन पश्चात् की जाती है | इसके पौधों को एक वर्ष में केवल 7 से 8 गुड़ाई की ही आवश्यकता होती है | पूर्ण विकसित पौधों को केवल दो से तीन गुड़ाई की जरूरत होती है इसके अलावा जब भी खेत में खरपतवार दिखाई दे तो उन्हें गुड़ाई कर निकाल दे |
जायफल के पौधों पर कई तरह के रोगो का आक्रमण देखने को मिल जाता है यदि इन रोगो की उचित समय पर देख रेख नहीं की जाती है, तो यह पौधों को हानि पहुंचाने के साथ-साथ पैदावार को भी कम कर देते है |
क्रं सं. | रोग | रोग का प्रकार | उपचार |
1. | डाई बैक | कवक जनित रोग | पौधों पर कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा का छिड़काव करे| |
2. | काला शल्क | कीट जनित रोग | पौधों पर मोनोक्रोटोफास या कनोला तेल की उचित मात्रा का छिड़काव करे| |
3. | सफेद अंगमारी | मैरासमिअस पलकीरिमा कवक जनित रोग | बोर्डों मिश्रण की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर करे| |
4. | परिरक्षक शल्क | कीट जनित रोग | नीम के तेल या मोनोक्रोटोफास की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर करे| |
5. | होर्स हेयर ब्लाइट | कवक जनित रोग | बोर्डों मिश्रण या कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर करे| |
6. | शाट होल | कोलिटोट्राइकम गिलाईस्पोरोइडिस कवक जनित रोग | 1 प्रतिशत बोर्डिंग मिश्रण का छिड़काव पौधों पर करे| |
7. | सफेद शल्क | कीट जनित रोग | मोनोक्रोटोफास का छिड़काव पौधों पर करे| |
जायफल के पौधे रोपाई के तक़रीबन 6 से 8 वर्ष पश्चात उत्पादन देना आरम्भ कर देते है यदि आप पूर्ण रूप से तैयार पौधों से पैदावार प्राप्त करना चाहते है तो उसके लिए आपको 18 से 20 वर्ष तक इंतजार करना होता है जब इसके पौधों पर फूल निकलना आरम्भ कर देते है, तो लगभग 9 महीने पश्चात् फल पककर तैयार हो जाते है |
इस दौरान जब फल पीले रंग के हो जाये और फलो की बाहरी सतह फटने लगे तब फलो को तोड़ लेना चाहिए | जायफल के फलो को जून से अगस्त माह तक प्राप्त किया जा सकता है | फलो की तुड़ाई कर जायफल से जावित्री को अलग कर लिया जाता है आरम्भ में जावित्री लाल रंग की होती है, जो सूखने के पश्चात् पीला रंग ले लेती है |
जायफल के पौधा विकास के साथ – साथ पैदावार भी बढ़ा देता है इसके पूर्ण विकसित वृक्ष से एक वर्ष में एक पेड़ से तक़रीबन 500 KG सूखा जायफल प्राप्त हो जाता है| जायफल का बाज़ारी भाव 500 रूपए प्रति किलो होता है, जिससे किसान भाई जायफल के एक हेक्टेयर के खेत से एक बार में दो से ढाई लाख की कमाई कर अधिक लाभ कमा सकते है |
- चेहरे के लिए :- जायफल की थोड़ी सी मात्रा को घिसकर दूध में मिलाकर चेहरे पर लगाने से मुहासे, दाग, धब्बो से छुटकारा मिल जाता है, और चेहरे में प्राकृतिक निखार देखने को मिलता है |
- UTI (Urinary Tract Infection) से जुड़ी समस्याओ के लिए :- दूध में मिलाकर जायफल का सेवन करने से मूत्र पथ के संक्रमण की समस्याओ में लाभ प्राप्त होता है| इसके लिए आपको जायफल को घिसकर दूध में मिलाकर रात में सोने से पहले पीना होता है |
- गठिया रोग उपचार :- जायफल में एंटी-इंफ्लेमेटरी की पर्याप्त मात्रा पायी जाती है | जिस वजह से यह जोड़ो और मांसपेशियों में होने वाले दर्द और सूजन को कम करता है | गठिया रोग में भी जायफल अधिक लाभकारी है |
- मुँह की दुर्गन्ध :- यदि आप मुँह से आने वाली दुर्गन्ध से छुटकारा पाना चाहते है, तो आपको जायफल का सेवन करना चाहिए | जायफल में मौजूद एंटी-बैक्टीरियल गुण मुँह से आने वाली बदबू को ख़त्म कर देता है | इसके लिए आपको रात में सोने से पहले जायफल के पाउडर को गुनगुने दूध में मिलाकर पीना होता है |
- नींद आने में लाभकारी :- यदि आपको रात में अनिद्रा जैसी समस्या होती है, जिससे आपको सोने में दिक्कत होती है | इस तरह के रोग के उपचार में भी जायफल का सेवन दूध के साथ कर सकते है | इससे आपको अच्छी नींद आती है | यदि पुरुष इसका सेवन रोज करते है, तो उनकी यौन शक्ति में भी वृद्धि होती है |