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Table of Contents Posts Search शफतल को भुकल के रूप में भी जाना जाता है। यह उच्च पोषक तत्वों वाली चारे की फसल है। यह सभी पशुओं द्वारा पसंद की जाती है। यह पछेती मौसम में उगाई जाने वाली फसल है। इसे जई के साथ मिलाकर या राई घास के
PM Kisan FPO Yojana
देश में किसानों की स्थिति सुधारने के लिए सरकार द्वारा विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं। आज हम आपको ऐसी ही एक योजना से संबंधित जानकारी प्रदान करने जा रहे हैं जिसका नाम पीएम किसान एफपीओ योजना है। इस लेख को पढ़कर आपको पीएम किसान FPO योजना से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी
Haryana Crop Diversification Scheme
Table of Contents हरियाणा सरकार ने अपने राज्य में फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने और किसानों की आय में बढ़ोतरी करने के लिए फसल विविधीकरण योजना को शुरू किया था। Haryana Crop Diversification Scheme के तहत धान की खेती को छोड़ने वाले किसानों को ₹7000 प्रति एकड़ की प्रोत्साहन राशि प्रदान की
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Table of Contents सनई सनई एक तेजी से उगने वाली फलीदार फसल है जो रेशे और हरी खाद के लिए उगाई जाती है। जब इसे मिट्टी में मिलाया जाता है तो यह खारेपन और खनिजों के नुकसान को रोकता है और मिट्टी में नमी बनाई रखता है। यह भारत में
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Table of Contents Recent Posts मैस्टा मैस्टा वार्षिक उगने वाली कपास और पटसन के बाद एक महत्वपूर्ण व्यापारिक फसल है| इस फसल का मूल स्थान एफ्रो-ऐशीआयी (Afro-Asian) देश है| इसका तना और छिलका रेशा बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है| हिबिसकस कैनाबिनस और हिबिसकस सबदारिफा नाम की दो प्रजातियों
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Table of Contents Recent Posts जंतर यह हरी खाद के तौर पर ज्यादातर प्रयोग होने वाली फसल है। यह हर मौसम में बोयी जा सकती है जब मिट्टी में आवश्यक नमी हो। यह सिर्फ ज़मीन की हालत ही नहीं सुधारती बल्कि नाइट्रोजन की कमी को भी पूरा करती है। जलवायु
मैस्टा
मैस्टा वार्षिक उगने वाली कपास और पटसन के बाद एक महत्वपूर्ण व्यापारिक फसल है| इस फसल का मूल स्थान एफ्रो-ऐशीआयी (Afro-Asian) देश है| इसका तना और छिलका रेशा बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है| हिबिसकस कैनाबिनस और हिबिसकस सबदारिफा नाम की दो प्रजातियों को आमतौर पर मैस्टा कहा जाता है| हिबिसकस सबदारिफा सूखे मौसम को सहने योग्य किस्म है और हिबिसकस कैनाबिनस 50-90 मि.मी. बारिश वाले क्षेत्रों में उगाई जा सकती है,क्योंकि यह जल्दी पकने वाली फसल है| यह फसल उगाने वाले मुख्य राज्य महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, बिहार, उड़ीसा,मेघालय,कर्नाटक और त्रिपुरा आदि है|
जलवायु
Temperature
Rainfall
Sowing Temperature
Harvesting Temperature
मिट्टी
मैस्टा की फसल अलग-अलग तरह की मिट्टी में उगाई जा सकती है| बढ़िया चिकनी मिट्टी में यह बढ़िया पैदावार देती है| तेज़ाबी और जल जमाव वाली ज़मीन मैस्टा की खेती के लिए उचित नहीं है| इसके लिए मिट्टी का pH 4.5-7.8 होना चाहिए|
प्रसिद्ध किस्में और पैदावार
Hibbiscus cannabinus: HC 583 (पश्चिमी बंगाल में उगाने योग्य किस्में)
दूसरे राज्यों की किस्मे Hibiscus Cannabinus MT 150 (Nirmal): यह किस्म सारे मैस्टा उत्पादक राज्यों के लिए सहायक है| इसकी गुणवत्ता बहुत बढ़िया होती है और इस किस्म को मुख्य रूप से अख़बार बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है| इसकी औसतन पैदावार 13 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|
JRM3 (Sneha): यह पूरे देश में उगाने योग्य किस्म है| यह कीटों और बीमारीयों की रोधक किस्म है| इसकी औसतन पैदावार 10.5-15 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|
JRM5 (Shrestha): इसकी औसतन पैदावार 12 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|
Hibiscus Sabdariffa AMV 7: यह किस्म 130-135 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है| यह नमी की कमी को सहने योग्य, कीटों और बीमारीयों की रोधक किस्म है| इसकी औसतन पैदावार 10.5-13 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|
ज़मीन की तैयारी
मानसून आने से पहले खेत की अच्छी तरह से जोताई करके मिट्टी को भुरभुरा कर लें| जोताई के बाद मिट्टी को नदीनों और अन्य बचे-खुचे पदार्थो से मुक्त करें| फिर ज़मीन को अच्छी तरह से समतल करें|खेत की तैयारी के समय मिट्टी में 2-4 टन गली-सड़ी रूड़ी की खाद डालें|
बिजाई
बिजाई का समय मैस्टा की बिजाई के लिए मई-जून महीने का समय उचित माना जाता है| फासला बढ़िया विकास और पैदावार के लिए फसल में 30×10 सैं.मी. का फासला रखने की सिफारिश की जाती है| बीज की गहराई बीजों की बिजाई 2.5-3 सैं.मी. गहराई पर करें| बिजाई का ढंग इसकी बिजाई आमतौर पर बुरकाव विधि द्वारा की जाती है पर पंक्तियों में बिजाई करना भी लाभदायक सिद्ध होता है|
बीज
बीज का उपचार बिजाई से पहले मैनकोजेब 3 ग्राम प्रति किलो से बीज का उपचार करें| बीज की मात्रा हिबिसकस सबदारिफा के लिए 6 किलो प्रति एकड़ और हिबिसकस कैनाबिनस के लिए 5 किलो प्रति एकड़ बीज का प्रयोग करें|
खाद
UREA | SSP | MOP |
36 | 50 | 14 |
NITROGEN | PHOSPHORUS | POTASH |
16 | 8 | 8 |
खरपतवार नियंत्रण
खेत को साफ और नदीन-मुक्त करने के लिए गोड़ाई करें और पौधों को विरला करें| पहली गोड़ाई बिजाई से 21 दिन बाद और दूसरी गोड़ाई बिजाई से 35 दिन बाद करें और साथ-साथ कमज़ोर पौधों को बाहर निकाल दें| नदीनों को रायासनिक ढंग से रोकने के लिए बिजाई से 2-3 दिन पहले फ्लूक्लोरालिन 800 मि.ली. प्रति एकड़ डालें या बिउटाक्लोर 1200 मि.ली. प्रति एकड़ या पेंडीमैथालीन 1-1.25 लीटर प्रति एकड़ को बिजाई के तुरंत बाद डालें|
सिंचाई
सिंचित फसल होने के कारण इसे ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है| अगर जरूरत हो तो मौसम और मिट्टी की किस्म के अनुसार सिंचाई करें|
पौधे की देखभाल
-
कीट और रोकथाम
- चेपा: अगर खेत में इसका नुकसान दिखाई दे तो डाईमैथोएट 2 मि.ली. या ऐमिडाक्लोप्रिड 0.25 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें या थाइओमैथोकसम 0.2 ग्राम या ऐसेटामिप्रिड 0.2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें|
- हरी सुंडी: अगर इसका नुकसान दिखाई दे तो थाइओडीकार्ब 1 ग्राम या इंडोकसाकार्ब 1 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें|
- मिली बग: जब नुकसान कम हो तो इसकी प्रभावशाली रोकथाम के लिए नीम का तेल 5 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें| अगर नुकसान ज्यादा हो तो प्रोफैनोफॉस 2 मि.ली. या ट्राईज़ोफोस 2 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें|
- तेला: इसकी रोकथाम के लिए ऐमिडाक्लोप्रिड 0.25 मि.ली. या थाइओमैथोकसम 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें|
- बीमारीयां और रोकथाम जड़ और तना गलन: खेत में अच्छे निकास का प्रबंध करें और पानी को खड़ा न होने दें| बिजाई से पहले प्रति किलो बीजों का 3 ग्राम मैंकोजेब के साथ उपचार करें| अगर इसका हमला दिखी दें तो रिडोमिल 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें|
- पत्तों का झुलस रोग: यदि इसका हमला दिखाई दे तो, 3 ग्राम मैंकोजेब या कॉपर आक्सीक्लोराइड 3 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें| जरूरत पड़ने पर 7 दिनों के फासले पर दोबारा स्प्रे करें|
- नाड़ियों का पीला चितकबरा रोग: यह रोह सफेद मक्खी से फैलता है| सफेद मक्खी के हमले की जांच करें| बिजाई से 50 दिन बाद थाइओमैथोकसम 0.1 ग्राम या ऐमिडाक्लोप्रिड 0.25 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें|
फसल की कटाई
फसल की कटाई समय पर करें, क्योंकि कटाई जल्दी करने से रेशे की पैदावार कम हो जाती है और देरी से कटाई करने पर रेशे की गुणवत्ता खराब हो जाती है| 50% फूलों के खिलने पर कटाई का उचित समय होता है| कटाई के समय फसल को ज़मीन के नज़दीक से काटें|
कटाई के बाद
कटाई के बाद फसल को तने के आकार के अनुसार छांट लें| फिर तने को बांध कर खेत में पत्ते झड़ने के लिए रख दें|
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