भूमि: खरबूजे की खेती के लिए हल्की रेतीली बलुई दोमट मिट्टी को उपयुक्त माना जाता है। इसकी खेती के लिए भूमि उचित जल निकास वाली होनी चाहिए, क्योकि जलभराव की स्थिति में इसके पौधों पर अधिक रोग देखने को मिल जाते है। इसकी खेती में भूमि का पी.एच मान 6 से 7 के मध्य होना चाहिए। जायद के मौसम को खरबूजे की फसल के लिए अच्छा माना जाता है। इस दौरान पौधों को पर्याप्त मात्रा में गर्म और आद्र जलवायु मिल जाती है।
तापमान: बीजों के अंकुरण के लिए 22-25 डिग्री सेटीग्रेड तापमान अच्छा रहता है। पौधों के विकास के लिए 35 से 40 डिग्री तापमान जरूरी होता है।
उचित समय: फ़रवरी मध्य के आसपास का समय खरबूजे की बिजाई के लिए ज्यादा उचित समझा जाता है।
भूमि की तेयारी: इसके लिए खेत की सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई कर दी जाती है | जुताई के बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है, इससे खेत की मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में धूप लग जाती है | तैयार की गयी इन क्यारियों और नालियों में जैविक और रासायनिक खाद का इस्तेमाल किया जाता है। इसके लिए आरम्भ में 200 से 250 क्विंटल पुरानी गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में देना होता है। इसके अतिरिक्त रासायनिक खाद के रूप में 60 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश और 30 किलोग्राम नाइट्रोजन की मात्रा को प्रति हेक्टेयर में तैयार नालियों और क्यारियों में देना होता है। इसके बाद खेत में पानी लगाकर पलेवा कर दिया जाता है, पलेवा करने के कुछ दिन बाद कल्टीवेटर लगाकर खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर दी जाती है। मिट्टी के भुरभुरा हो जाने के बाद खेत में पाटा चलाकर भूमि को समतल कर दिया जाता है। इसके बाद खेत में बीज रोपाई के लिए उचित आकार की क्यारियों या नालियां तैयार की जाती है।
उच्चतम वैरायटी : यदि आपको अच्छी पैदावार लेनी है तो अच्छी किस्म के बीज उपयोग करें। इसके लिए तरबूज की अच्छी उन्नत किस्मों के नाम इस प्रकार हैं – पूसा शरबती (एस-445) , पूसा मधुरस, हरा मधु, आई.वी.एम.एम.3, पंजाब सुनहरी आदि है | इसके अलावा भी खरबूजे की कई उन्नत किस्मों को अधिक उत्पादन देने के लिए उगाया जा रहा है, जो इस प्रकार है:- दुर्गापुरा मधु, एम- 4, स्वर्ण, एम. एच. 10, हिसार मधुर सोना, नरेंद्र खरबूजा 1, एम एच 51, पूसा मधुरस, अर्को जीत, पंजाब हाइब्रिड, पंजाब एम. 3, आर. एन. 50, एम. एच. वाई. 5 और पूसा रसराज आदि।
बीज की मात्रा : एक हेक्टेयर के खेत में तकरीबन एक से डेढ़ किलो बीजों की आवश्यकता होती है |
बीज उपचार : बीज रोपाई से पूर्व उन्हें कैप्टान या थिरम की उचित मात्रा से उपचारित कर लिया जाता है। इससे बीजों को आरम्भ में लगने वाले रोग का खतरा कम हो जाता है। इसके अलावा कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद ट्राइकोडरमा विराइड 4 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। बीजों को छांव में सुखाएं और तुरंत बिजाई कर दें।
बिजाई का तरीका: खरबूजे की बुआई के लिए 2 से 2.5 मीटर की दूरी पर नालियां बनानी चाहिये| बीज की बुआई नाली के किनारे पर करने के लिये 60 से 80 सेंटीमीटर की दूरी पर थाले में 2 से 3 बीज लगाने चाहिये| बीज को 1.5 से 2.0 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिये| थाले में बोये गये बीज 4 से 5 दिनों में अंकुरित हो जाते हैं|
सिंचाई :
सफल अंकुरण के लिए खेत में पर्याप्त नमी का होना अत्यन्त आवश्यक है| थालों में लगाये गये पौधों को नालियों से सिंचाई करते है| शुरुआत में हर सप्ताह पानी देने की आवश्यकता पड़ती है| पौधों की बढ़वार एवं फलों के बढ़ने के समय खेत में नमी की कमी नहीं होनी चाहिए| फलों के पूरी तरह बढ़ जाने के बाद सिंचाई को कम कर देना चाहिए, जिससे फलों में मिठास बढ़ जाती है| खरबूजे की पूरी फसल अवधि में कुल मिलाकर 5 से 6 बार सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है|
सिंचाई जल की उपलब्धता होने पर बूंद-बूंद तकनीकी अपनाकर खरबूजा उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है, साथ ही इस विधि में सिंचाई जल की बचत भी होती है| शुष्क क्षेत्रीय जलवायु में खरबूजे की खेती के लिए सिंचाई की बूंद-बूंद तकनीक सर्वोत्तम रहती है| इस प्रणाली में 4 लीटर प्रति घण्टे के ड्रिपर से 3 से 4 दिन के अन्तराल पर 2 से 3 घण्टे सिंचाई करनी चाहिए|
उर्वरक : 40 कि.ग्रा. नत्रजन प्रति हैक्टर तथा फास्फेट व पोटाश की मात्रा 30-30 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से बिजाई के 25 – 30 दिन में देनी चाहिए । फूल तथा फल बनने की अवस्था में 30 Kg यूरिया प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डाले | इसके अलावा आप प्राकृतिक विधि से तैयार किये गये ग्रोथ बूस्टर भी डाल सकते हो |
खरपतवार :पौधे के विकास के शुरूआती समय के दौरान बैड को नदीनों से मुक्त रखना जरूरी होता है। सही तरह से नदीनों की रोकथाम ना हो तो फल बोने से 15-20 दिनों में पैदावार 30 प्रतिशत तक कम हो जाती है। इस दौरान गोडाई करते रहना चाहिए। नदीन तेजी से बढ़ते हैं। इसलिए 2-3 गोडाई की जरूरत पड़ती है।
रोग नियंत्रण :
पत्ती झुलसा : पौधों पर मैंकोजेब या कार्बेन्डाजिम का छिड़काव
चेपा : पौधे पर थाइमैथोक्सम का छिड़काव
लाल कद्द भृंग : पौधे पर एमामेक्टिन या कार्बेरिल का छिड़काव
सफेद मक्खी : पौधे पर इमिडाक्लोप्रिड या एन्डोसल्फान का छिड़काव
पत्ती सुरंग : पौधों पर एबामेक्टिन का छिड़काव
चूर्णिल आसिता : हेक्साकोनाजोल या माईक्लोबूटानिल का छिड़काव
सुंडी : पौधे पर क्लोरोपाइरीफास का छिड़काव
फल विगलन : जल भराव रोकथाम कर
अब फसल पकने का इंतजार करें – तरबूज के पौधे बीज रोपाई के 85 से 90 दिन पश्चात् तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है | जब इसके फलो में लगा डंठल सूखा दिखाई देने लगे, तब उनकी तुड़ाई कर लेनी चाहिए | इसके अतिरिक्त जब फल का रंग हल्का पीला दिखाई देने लगे तो समझ ले कि फल पूरी तरह से पक चुका है | इसके अलावा फल से एक खास तरह की खुशबु आने लगे उस दौरान इसके फलो की तुड़ाई कर ली जाती है| फलो की तुड़ाई के बाद उन्हें किसी ठंडे स्थान पर रखकर संरक्षित कर ले |
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