- लक्षण
- जीवन चक्र
- इससे होने वाले नुकसान
- इसकी रोकथाम के उपाय
- सावधानियां
किसान भाइयों आपको बता दे की टिड्डी एक परवासी जीव होता है ये एक स्थान से दुसरे स्थान पर जाता रहता है । टिड्डी 6 पैरों वाली कीट हैं जिसकी लंबाई 5 सेमी तक हो सकती है । एक वयस्क टिड्डी के पंख लंबे होते हैं जिससे वे लंबी दूरियाँ तय कर सकती हैं । अकेली होने पर हरे-भूरे रंग की दिखाई देती है जो पेड़ों में छिपने के काम आता है । बड़े होने पर टिड्डी पीले रंग की हो जाती है । इनका पिछला पैर फुदकने के काम आता है । इसकी दो अवस्था होती है सालेतरिन और गैगरिन । सालेतरिन में झुण्ड बनाने की परवर्ती नहीं होती जबकि गैगरिन में झुण्ड बनाने की परवर्ती होती है और ये खाना भी बहुत तेज खाती है जिससे ये नुकसान पहुचती है । एक टिड्डी दल एक दिन में हवा की दिशा में 150-200 KM तक सफ़र कर सकता है । इसका प्रभाव शाम के समय ज्यादा होता है । ये पीले और गुलाबी रंग की होती है ।
टिड्डी मुलायम एवं नम मिट्टी में 10-15 CM गहरी जमीं में अंडे देती है उसी में यह अण्डकोष्ठ को रखने के पश्चात् गड्ढे के ऊपरी सिरे पर अपने जनन छिद्र से एक झागदार द्रव निकालती है जिसके सूखने पर यह सीमेन्ट की तरह जम जाता है इस प्रकार अण्डकोष्ठ सर्दी एवं गर्मी ऋतु तक लगभग 9 माह तक मृदा में ही रहता है ।
वर्षा ऋतु के दौरान नमी के सम्पर्क में आते ही अण्डकोष्ठ के अण्डे फूटने से पंखरहित शिशु मृदा से बाहर निकलने लगते है एवं भोजन की तलाश में फुदकने लगते है भोजन की उपलब्धता पर जब शरीर का आयतन बढ़ने लगता है तो यह अपने शरीर से काइटिन का बना त्वचा रूपी बाह्य ढ़ाचा त्याग कर नये ढांचे को प्राप्त करते है जिसे निर्मोचन कहते है ।
शिशु से वयस्क बनने तक अपनी त्वचा का 5, 6 बार निर्मोचन करते है, द्वितीय निर्मोचन के पश्चात् इनके पंखो का विकास होने लगता है इस प्रकार शिशु से वयस्क बनने में नर 70 व मादा 80 दिन ले लेती है ।
टिड्डी जीवन चक्र के तीन अलग-अलग चरण होते हैं (i) अंडा, (ii)फुदका (निम्फ़ ) (iii) वयस्क ।
टिड्डी का दल फसलों को तेजी से चट कर जाता है। लाखों कीड़े मिलकर पूरे खेत को खराब कर देते हैं। आपको बताते चले कि टिड्डे कुछ पेड़ जैसे कि नीम, अंजीर, शीशम और आक को छोड़कर ज्यादातर वनस्पतियों को नष्ट कर देते हैं । फसलों वाले खेतों के ऊपर टिड्डियों के इस किस्म के हमले आकर्षक तौर पर टिड्डियों के प्लेग के वरतारे की तरफ ले जाते हैं। इसका मतलब है कि इस तरह के बड़े हमलों के कारण पूरे सीज़न में किसानों की तरफ से की गई मेहनत व्यर्थ हो जाती है। जब भी ऐसे हमले होते हैं तो किसान यह सोचने के लिए मज़बूर हो जाते हैं कि गर्मी ऋतु में बोई फसल नष्ट हो जाएगी, जिससे बड़े आर्थिक संकट का सामना करना पड़ेगा।
टिड्डियाँ बड़े स्तर पर भोजन को नष्ट करेंगी। लगभग 1 टन टिड्डियाँ (औसतन छोटा झुंड) 2500 लोगों, 25 ऊठ या 10 हाथियों के बराबर खाने की समर्था रखती हैं ।
टिड्डियाँ फल, तने के छिलके, बीज, पत्ते, फूल और गोभ आदि को खाकर नष्ट कर देती हैं । यह अपने झुंड के साथ पौधों को नष्ट कर देती हैं और ज़्यादा संख्या में पौधे पर बैठकर अपने भार से पौधे को तोड़ भी देती हैं ।
यह खासतौर पर देखा गया है कि छोटी टिड्डियों का झुंड ज्यादातर फलों वाले पौधों की जड़ों को नुकसान पहुंचाती हैं, जिनमें अंगूर, नींबू, खजूर, संतरा और पपीता आदि आते हैं ।
घरेलु उपचार के रूप में पहले तेज आवाज वाले यंत्रो को बजाना चाहिए जैसे ढोल, पिम्पा इत्यादी । दूसरा इसके लिए नजदीकी टिड्डी सुरक्षा दल है (कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय) उनको सूचित करे ।
रासायनिक विधि से लेम्डा सय्लोथिन 5% EC 400 ML/Hect., डेल्टा मिथिन 2.5% EC 625 ML/Hect, क्लोरपाइरीफॉक्स 20 EC 1200 ML/Hect रसायन का छिड़काव किया जाना चाहिये । छिड़काव के लिए ट्रेक्टर स्प्रे मशीन का उपयोग करे ताकि टिड्डी के जो अंडे या अन्य अवशेष है वो आसानी से फसल से उतारे जा सके । टिड्डियों के द्वारा दिये गए अंडों को नष्ट कर देना चाहिये।
कृषि क्षेत्र के आस-पास खाईयाँ (Trenches) खोद कर अपरिपक्व टिड्डियों को जल और केरोसीन के मिश्रण में गिराया जा सकता है । ड्रोन आदि का प्रयोग कर उनके प्रजनन स्थलों पर कीटनाशकों का छिड़काव करना चाहिये ।
- तेज हवा या बारिश के टाइम स्प्रे न करें ।
- आँखों की सुरक्षा करें ।
- स्प्रे के बाद अपना हाथ, पैर और चेहरा अच्छी तरह से धोएं ।
- बच्चों की पहुच से दूर रखें ।