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अलसी (Linseed): एक महत्वपूर्ण और लाभदायक तिलहन फसल
अलसी (Linseed) की खेती के आधुनिक और प्रभावी तरीके
उन्नत बीजों का चयन
सटीक बुवाई तकनीक
संतुलित उर्वरक प्रबंधन
ड्रिप सिंचाई और जल प्रबंधन
रोग और कीट नियंत्रण
कटाई और यंत्रीकरण
कटाई का समय फसल की गुणवत्ता पर असर डालता है। अलसी की फसल जब पूरी तरह से पक जाए और पौधों की पत्तियाँ झड़ने लगे, तब इसे काटना चाहिए। पारंपरिक तरीकों की तुलना में यांत्रिक उपकरणों का उपयोग जैसे कम्बाइन हार्वेस्टर से कटाई करना अधिक प्रभावी होता है। यह न केवल समय की बचत करता है, बल्कि श्रम की भी बचत करता है। कम्बाइन हार्वेस्टर के उपयोग से बीजों को सीधे तोड़कर कम नमी वाले स्थानों पर सुरक्षित किया जा सकता है, जिससे बीजों में कोई हानि नहीं होती। कटाई के तुरंत बाद बीजों को अच्छी तरह से सुखाना और उचित तरीके से संग्रहित करना जरूरी है, ताकि नमी से कोई नुकसान न हो और बीज लंबे समय तक सुरक्षित रहें।
अलसी (Linseed) की खेती के प्रमुख फायदे
आर्थिक लाभ
मिट्टी की उर्वरता बढ़ाना
स्वास्थ्य लाभ
हरियाणा सरकार की अलसी खेती को बढ़ावा देने की पहल
हरियाणा सरकार अलसी (Linseed) की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए कई योजनाएं चला रही है। मेरी फसल, मेरा ब्योरा (fasal.haryana.gov.in) पोर्टल के माध्यम से किसान बीज, उर्वरक और सब्सिडी का लाभ उठा सकते हैं। तिलहन विकास कार्यक्रम के तहत उन्नत बीज और प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है, जबकि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में वृद्धि से किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य मिलता है (pib.gov.in). इसके अलावा, किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) योजना के तहत सस्ती ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध कराया जाता है। इन पहलों का उद्देश्य अलसी की खेती को आधुनिक, लाभकारी और टिकाऊ बनाना है।