- भूमि
- तापमान
- उचित समय
- भूमि की तेयारी
- उच्चतम वैरायटी
- बीज की मात्रा
- बीज उपचार
- बिजाई का तरीका
- सिंचाई
- उर्वरक
- खरपतवार
- रोग नियंत्रण
- अब फसल पकने का इंतजार करें
मूंगफली की खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है फिर भी इसकी अच्छी तैयारी हेतु जल निकास वाली कैल्शियम एवं जैव पदार्थो से युक्त बलुई दोमट मृदा उत्तम होती है। मृदा का पीएच मान 6.0 से 8.0 उपयुक्त रहता है। मई के महीने में खेत की एक जुताई मिट्टी पलटनें वाले हल से करके 2-3 बार हैरो चलावें जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जावें इसके बाद पाटा चलाकर खेत को समतल करें जिससे नमी संचित रहें ।
इसके लिए 15-35 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान अच्छा माना जाता है ।
सामान्य रूप से 15 जून से 15 जुलाई के मध्य मूंगफली की बुवाई की जा सकती है ।
मूंगफली की खेती में भुरभुरी मिट्टी की आवश्यकता होती है । इसके लिए खेत की सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हलो से गहरी जुताई कर दी जाती है जुताई के बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है, इससे खेत की मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में धूप लग जाती है इसके बाद खेत में 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को डालकर मिट्टी में अच्छे से मिला दिया जाता है खाद को मिट्टी में मिलाने के पश्चात् पानी लगाकर पलेव कर दे । इसके बाद जब खेत की मिट्टी ऊपर से सूखी दिखाई देने लगती है तब रोटावेटर लगाकर खेत की अच्छे से जुताई कर दी जाती है इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है । मिट्टी के भुरभुरा हो जाने के बाद खेत में पाटा लगाकर भूमि को समतल कर दिया जाता है ।
मूंगफली के खेत में यदि आप प्राकृतिक खाद की जगह रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहते है तो उसके लिए आपको आखरी जुताई से पूर्व एन.पी.के. की 60KG की मात्रा खेत में दी जाती है । इसके अतिरिक्त एक हेक्टेयर के खेत में 250 KG जिप्सम का फैलाव भी करना होता है । मूंगफली के खेत में नीम की खली बहुत उपयोगी होती है इससे पैदावार अच्छी प्राप्त होती है इसलिए आखरी जुताई के समय एक हेक्टेयर के खेत में 400 KG नीम की खली का छिड़काव भी करना होता है ।
यदि आपको मूंगफली की अच्छी पैदावार लेनी है तो अच्छी किस्म के बीज उपयोग करें इसके लिए आपकों बता दें कि मूंगफली की अच्छी उन्नत किस्में आर.जी. 425, 120-130, एमए 10 125-130, एम-548 120-126, टीजी 37ए 120-130, जी 201 110-120 प्रमुख हैं। इनके अलावा अन्य किस्में एके 12, -24, जी जी 20, सी 501, जी जी 7, आरजी 425, आरजे 382 आदि हैं ।
कम फैलने वाली किस्मों के लिये बीज की मात्रा 75-80 कि.ग्राम. प्रति हेक्टर एवं फैलने वाली किस्मों के लिये 60-70 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर उपयोग में लेना चाहिए ।
बीज को बोने से पहले 3 ग्राम थाइरम या 2 ग्राम मेन्कोजेब या कार्बेण्डिजिम दवा प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित कर लेना चाहिए । इससे बीजों का अंकुरण अच्छा होता है तथा प्रारम्भिक अवस्था में लगने वाले विभिन्न प्रकार के रोगों से बचाया जा सकता है । दीमक और सफेद लट से बचाव के लिये क्लोरोपायरिफास (20 ई.सी.) का 12.50 मि.ली. प्रति किलो बीज का उपचार बुवाई से पहले कर लेना चाहिए ।
मूंगफली को कतार में बोना चाहिए । गुच्छे वाली/कम फैलने वाली किस्मों के लिये कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. तथा फैलने वाली किस्मों के लिये 45 से.मी.रखें पौधों से पौधों की दूरी 15 से. मी. रखनी चाहिए। बुवाई हल के पीछे, हाथ से या सीडड्रिल द्वारा की जा सकती है। भूमि की किस्म एवं नमी की मात्रा के अनुसार बीज जमीन में 5-6 से.मी. की गहराई पर बोना चाहिए ।
मूंगफली की फसल खरीफ की फसल है, जिस वजह से इसके पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है क्योकि खरीफ की फसल बारिश के मौसम के समीप ही की जाती है यदि बारिश समय पर नहीं होती है, तो इसके पौधों को जरूरत के अनुसार पानी देना चाहिए । बारिश के मौसम के पश्चात् 20 दिन के अंतराल में पौधों को पानी की आवश्यकता होती है । जब मूंगफली के पौधों में फूल और फलिया बनने लगे उस दौरान खेत में नमी की मात्रा बनाये रखने की आवश्यकता होती है इससे पैदावार अच्छी प्राप्त होती है । मूंगफली की फसल में 4 वृद्धि अवस्थाऐं क्रमशः प्रारंभिक वानस्पतिक वृद्धि अवस्था, फूल बनना, अधिकीलन (पैगिंग) व फली बनने की अवस्था सिंचाई के प्रति अति संवेदनशील है। खेत में अवश्यकता से अधिक जल को तुरंत बाहर निकाल देना चाहिए अन्यथा वृद्धि व उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है ।
खड़ी फसल में शत प्रतिशत जल विलेय उर्वरक – पोटैशियम सल्फेट (एसओपी) के साथ यूरिया फास्फेट (17-44-0) या एन.पी.के. (18-18-18) @ 10 ग्राम /लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें इसके साथ इफको सागरिका की 250 मिलीलीटर/एकड़ मात्रा को जल घुलनशील उर्वरक के साथ या अकेले स्प्रे कर सकते हैं। सागरिका का पहला छिड़काव बुवाई के 45 दिन बाद, दूसरा फूल आने के समय एवं तीसरा फूल आने के 10 दिन बाद करें। इससे दाने वजनदार हो जाते हैं, साथ ही गुणवत्ता एवं उत्पादन में वृद्धि होती है।
मूंगफली की अच्छी पैदावार लेने के लिये कम से कम एक निराई-गुड़ाई अवश्य करें इससे जड़ों का फैलाव अच्छा होता है, साथ ही भूमि में वायु संचार भी बढ़ता है और मिट्टी चढ़ाने का कार्य स्वतः हो जाता है, जिससे उत्पादन बढ़ता है। यह कार्य कोल्पा या हस्तचलित व्हील से करना चाहिए । रसायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण हेतु पेण्डीमिथेलीन 38.7 प्रतिशत 750 ग्रा. सक्रिय तत्व प्रति हेक्टर की दर से बुवाई के 3 दिन के अंदर प्रयोग कर सकते है या खडी फसल में इमेजाथापर 100 मि.ली. सक्रिय तत्व को 400-500 लीटर पानी में घोल बनाकर बोनी के 15-20 दिन बाद प्रयोग कर सकते हैं साथ ही एक निराई-गुड़ाई बुवाई के 30-35 दिन बाद अवश्य करें जो तंतु (पेगिंग) प्रक्रिया में लाभकारी होती है ।
मूंगफली में प्रमुख रूप से पर्ण चित्ती, टिक्का, लीफ माइनर, कॉलर, तना गलन और रोजेट रोग का मुख्य प्रकोप होता है। पर्ण चित्ती रोग का प्रकोप दिखाई देने पर डाइथेन एम-45 की उचित मात्रा का छिड़काव 10 दिन के अंतराल में दो से तीन बार करें। टिक्का के लक्षण दिखते ही इसकी रोकथाम के लिए डायथेन एम-45 का 2 ग्रा./लीटर पानी में घोल बनाकर पौधों पर 10 से 12 दिन के अंतराल में दो से तीन बार छिड़काव करना चाहिए । रोजेट वायरस जनित रोग हैं, इसके फैलाव को रोकने के लिए फसल पर इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली./लीटर पानी के मान से घोल बनाकर 10 से 12 दिन के अंतराल में दो से तीन बार छिड़काव करना चाहिए इसके अलावा सफेद लट, बिहार रोमिल इल्ली, मूंगफली का माहू व दीमक प्रमुख है । सफेद लट की समस्या वाले क्षेत्रों में बुवाई के पूर्व फोरेट 10 जी या कार्बोयुरान 3 जी 20-25 कि.ग्रा/हैक्टर की दर से खेत में डालें । दीमक के प्रकोप को रोकने के लिये क्लोरोपायरीफॉस दवा की 3 लीटर मात्रा को प्रति हैक्टर दर से प्रयोग करें। रस चूसक कीटों (माहू, थ्रिप्स व सफेद मक्खी) के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली./प्रति लीटर या डायमिथोएट 30 ई.सी. का 2 मि.ली./ली. के मान से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रयोग करें। पत्ती सुरंगक कीट के नियंत्रण हेतु क्यूनॉलफॉस 25 ई.सी. का 1 लीटर/हैक्टर का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए ।
मूंगफली की फसल बुवाई के 120 से 130 दिन पश्चात खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके पौधों की पत्तियों का रंग पीला पड़ने लगे और इसके पौधे पूर्ण रूप से पके हुए दिखाई देने लगे तब खेत में हल्की सिंचाई कर खुदाई कर लें । आज कल बाजार में इसकी फसल की खुदाई के लिए मशीन भी उपलब्ध हैं जिसके उपयोग से समय और पैसे की बचत हो जाती है। मूंगफली की खुदाई के बाद इसके पौधों से फलियाँ को अलग कर तेज धुप मे सुखा ले जिससे इसमें नमी पूरी तरह से खत्म हो जाये ध्यान रहें भंडारण के पूर्व पके हुए दानों में नमीं की मात्रा 8 से 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए ।