- भूमि
- तापमान
- उचित समय
- भूमि की तेयारी
- उच्चतम वैरायटी
- बीज उपचार
- बिजाई का तरीका
- बिजाई
- सिंचाई
- मुख्य रोग
- अब फसल पकने का इंतजार करें
मूंग की खेती के लिए दोमट एवं बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है l भूमि में उचित जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए ।
मूंग की बिजाई के लिए मुख्यतया 35-42 डिग्री सेल्सियस तापमान होना चाहिए ।
10 जुलाई से 30 जुलाई के बीच का समय बिजाई के लिए बढ़िया माना जाता है ।
मूंग के लिए 20 किलो नाइट्रोजन तथा 40 किलो फास्फोरस प्रति हैक्टेयर की आवश्कता होती है । नाइट्रोजन एवं फॉसफोरस की मात्रा 87 किलो ग्राम डी.ए.पी. एवं 10 किलो ग्राम यूरिया के द्वारा बुवाई के समय देनी चाहिए l मूंग की खेती हेतु खेत में दो तीन वर्षों में कम से कम एक बार 5 से 10 टन गोबर या कम्पोस्ट खाद देनी चाहिए । बुवाई के लिए कल्टीवेटर – तोई – हेरो इत्यादी का इस्तेमाल करें ।
आरएमजी-62, आरएमजी-268, जीएम-4, गंगा-8 ।
बीजों को 2.5 ग्राम थायरम एवं 1.0 ग्राम कार्बेन्डाजिम या 4-5 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें । फफूंदनाशी से बीजोपचार के पश्चात् बीज को राइजोबियम एवं पीएसबी कल्चर से उपचारित करें । अगर उपचारित बीज का उपयोग कर रहे हो तो उन्हें उपचारित न करें ।
मूंग की बिजाई 2 तरीके से कर सकते है छिटा विधि और कतारों में । कतारों में बिजाई के लिए मूंग को 25-30 सेमी कतार से कतार तथा 5-7 सेमी पौधे से पौधे की दूरी पर बुआई करें एवं बीज को 3-5 सेमी गहराई पर बोना चाहिये जिससे अच्छा अंकुरण प्राप्त हो सके ।
बिजाई के समय भूमि और पानी के अनुसार बीज का चयन करे । बिजाई के समय 25 से 30 किलोग्राम की बिजाई करें ।
पहली सिंचाई: बिजाई के 25 से 30 दिन के अंदर पहली सिंचाई करें और पहली सिंचाई के साथ 10-20 किलोग्राम प्रति एकड़ यूरिया खाद डालें ।
नोट : पहली सिंचाई के बाद यह भी चेक करे की मूंग में कोई खरपतवार तो नहीं है अगर है तो हस्तचालित यंत्रो से निराई करें या खरपतवारनाशक का छिड़काब करें ।
दूसरी सिंचाई: बिजाई के 45 से 60 दिन के अंदर दूसरी सिंचाई करें ।
तीसरी सिंचाई और चौथी सिंचाई जरुरत के हिसाब से करें ।
पत्ता छेदक , दीमक , कातरा , रस चुसक इत्यादी । रोग नियंत्रण के लिए प्रोफेनोफॉस की 1 लीटर या क्लोरेन्ट्रानिलिट्रोल की 500 मिली या स्पाइनोसैड की 125 ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से दो बार छिड़काव करें ।
फसल के पकने का समय 65-80 दिन के लगभग माना जाता है । फसल पकने पर फलियाँ सूखने लग जाती है और काली पड़ जाती है । उस दौरान इसके पौधों की कटाई कर लेनी चाहिए । पौधों की कटाई के बाद उन्हें एकत्रित कर धूप में अच्छे से सूखा लेना चाहिए । इसके बाद सूखी हुई फलियों को मशीन की सहायता से निकाल लिया जाता है ।