Recent Posts
Parsnip
Table Of Content घर पर गमले में पार्सनिप कैसे उगाएं पार्सनिप के बारे में मुख्य जानकारी पार्सनिप का पौधा कब लगाना चाहिए पार्सनिप के पौधे लगाने के लिए गमला पार्सनिप के पौधे लगाने के लिए आवश्यक मिट्टी घर पर पार्सनिप कैसे लगाएं गमले में पार्सनिप के बीज लगाने की विधि
Butternut Squash
Table Of Content गमले में बटरनट स्क्वैश कैसे उगाएं बटरनट स्क्वैश का पौधा उगाने से सम्बंधित जानकारी बटरनट स्क्वैश के बीज कब लगाएं गार्डन में बटरनट स्क्वैश का पौधा लगाने के लिए आवश्यक सामग्री घर पर बटरनट स्क्वैश के बीज लगाने के लिए ग्रो बैग बटरनट स्क्वैश का पौधा लगाने
Arugula
Table Of Content क्या है अरुगुला ? अरुगुला उत्पादन के लिए सर्वश्रेष्ठ मृदा अरुगुला सलाद की अलग-अलग किस्म कैसे करें बीज उपचार और बुवाई कौनसे उर्वरकों का करें इस्तेमाल कैसे करें उपयुक्त सिंचाई अरुगुला सलाद में लगने वाली बीमारियां और उनका उपचार Search पिछले कुछ वर्षों से भारतीय कृषि क्षेत्र
Banana
Table Of Content केला प्रसिद्ध किस्में और पैदावार मिट्टी बीज ज़मीन की तैयारी बिजाई सिंचाई खाद खरपतवार नियंत्रण पौधे की देखभाल फसल की कटाई कटाई के बाद Search केला केला, आम के बाद भारत की महत्तवपूर्ण फल की फसल है। इसके स्वाद, पोषक तत्व और चिकित्सक गुणों के कारण यह
Fennel
Table Of Content जानें, सौंफ की उन्नत खेती का तरीका और रखें इन बातों का ध्यान सौंफ की उन्नत किस्में और उसकी विशेषताएं सौंफ की खेती में ध्यान रखने वाली महत्वपूर्ण बातें खेत की तैयारी बुवाई का तरीका खाद एवं उर्वरक की मात्रा सिंचाई व निराई – गुड़ाई कब करें
Bamboo
Table Of Content Table of Contents Search बुनियादी जानकारी जैसे आप जानते है बांस एक घासवर्गीय पौधा हैं, अंग्रेजी का ‘बम्बू’ शब्द भारतीय शब्द ‘मंबु’ या ‘बम्बु’ से उत्पन्न हुआ है। बाँस बहुत तेजी से बढ सकते है। कुछ प्रजातियों में तो यह एक दिन में 1 मीटर तक बढ
Search
भूमि का चुनाव और तैयार करना
अदरक हिमाचल प्रदेश की एक महत्वपूर्ण मसालेदार नगदी फसल है। इसकी काश्त के लिए 5-6.5 पी.एच. रेंज और एक प्रतिशत से अधिक जैविक कार्बन वाली रेतीली अथवा भंगुर मृदा काफी उपयुक्त है। यदि जैविक कार्बन की मात्रा एक प्रतिशत से कम है, 25-30 टन/हेक्टेयर कार्बनिक खाद एफ.वाई.एम. का प्रयोग करें और खाद को भलीभांति मिलाने के लिए खेत की 2-3 बार जुताई करें।
प्रमाणित जैविक खेतों को प्रतिबंधित सामग्रियों के प्रवाह से रोकने के लिए प्रमाणित जैविक खेतों और अजैविक खेतों के बीच लगभग 5-10 मीटर की दूरी की पर्याप्त सुरक्षा पट्टी दी जाए। भूमि को तैयार करते समय कम से कम जुताई की जाए।
सामान्यतः क्यारियों के बीच 10 मीटर की चौड़ाई, 15 सै0मी0 की ऊंचाई और 3-6 मीटर की लंबाई वाली 30 सैं0मी0 चौड़ी क्यारियां बनाई जाती हैं। क्यारियों के लिए सूर्य की रोशनी पीड़कों और बीमारीजनक जीवों के गुणन को रोकने में लाभकारी है।
बुआई का समय-
हिमगिरी : स्थानीय क्लोन धर्जा लोकल से क्लोन चयन द्वारा विकसित किस्म अधिक पैदावार देने वाली तथा गट्ठी सड़न रोग से कम ग्रसित (8-10 प्रतिशत), क्षेत्र-1 तथा 2 के लिए अनुमोदित किस्म।
रोपण
रोपण के लिए 18-22 क्विंटल/हेक्टेयर (150-180 कि.ग्रा./बीघा) की बीज दर सर्वोत्तम मानी जाती है। प्रत्येक गट्ठी का वजन 20-30 ग्राम तथा उन पर 1-2 आंखों का होना आवश्यक है। बीज के लिए स्वस्थ गांठों का चयन करें और 3-4 सै.मी. की गहराई पर बिजाई करें। अदरक के रोपण में पंक्तियों के बीच 25-30 सें.मी. और पौधों के बीच 15-20 सें.मी. का अंतराल दिया जाना चाहिए। मक्की की फसल का प्रयोग अदरक में छाया देने के लिए किया जाता है। इसके लिए अदरक की हर तीसरी कतार के बाद मक्की की एक कतार लगाएं। भूमि में सुधार लाने, तापमान बनाये रखने, भूमि का कटाव रोकने तथा उपयुक्त नमी बनाये रखने हेतु क्यारियों को हरी या सूखी पत्तियों या गोबर की खाद से ढककर रखा जाता है। एक हैक्टेयर जमीन में 50 क्विंटल सूखे पत्ते या 125 क्विंटल हरे पत्तों की 3-5 सें.मी. मोटी मल्च की तह बना दें। यदि पहली मल्च सड़ जाये तो 40 दिन के बाद दूसरी बार मल्च की तह लगायें।
मृदा प्रबंधन
रोपण के समय अच्छी तरह सड़ा हुआ मवेशियों का गोबर अथवा कम्पोस्ट 25 - 30 टन/हेक्टेयर के हिसाब से प्रयोग किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, 2 टन/हेक्टेयर के हिसाब से नीम की खली के प्रयोग का परामर्श दिया जाता है। घासपात की पलवार जरूरी है क्योंकि इससे अंकुरण में बढ़ोत्तरी होती है। छनन और जैविक तत्वों में वृद्धि होती है। सूक्ष्मजीवी गतिविधि और पोषण तत्वों की उपलब्धता में बढ़ोत्तरी के लिए मल्मिंच के बाद गाय के गोबर के घोल अथवा पानी में मिलाई गई खाद को क्यारियों के ऊपर छिड़का जा सकता है।
सिंचाई और पानी की आवश्यकता
अप्रैल-मई माह में उगाई जाने वाली फसल को शुरूआत में 7 दिनों के अंतराल पर मृदा की किस्म के आधार पर 2-4 बार पानी लगाए जाने की जरूरत होती है। इसके बाद फसल को मानसून की बारिश से पानी मिलता है और सितंबर के अंत तक यह मानसून अच्छी तरह आ जाता है। इसके परिणामस्वरूप, फसल को अक्तूबर के मध्य से लेकर और दिसंबर के अंत में 15 दिन के अंतराल पर पानी दिए जाने की आवश्यकता होती है। अदरक की खेती में अंकुरण, प्रकंदन का प्रारंभ और प्रकंदन का विकास सिंचाई के लिए महत्वपूर्ण अवस्थाएं हैं। पौधों के बेहतर टिकाव के लिए सर्वश्रेष्ठ जलनिकास के लिए रूके हुए पानी के बहाव के लिए क्यारियों के बीच उचित बहाव मार्ग का परामर्श दिया जाता है।
परंपरागत विधियां और रखरपतवार का प्रबंधन
खरपतवार को नियंत्रित करने और उच्च उत्पादकता के लिए फसल आवर्तन, हरी खाद और पंक्तियों के बीच में किसी अन्य फसल की बुआई सर्वोत्तम रास्ता है। अदरक में मिर्च, बैंगन, अरबी, हल्दी, तिल और विभिन्न फलीदार फसलों के साथ मिश्रित खेती की जाती है। अदरक की फसल में सामान्यत: दो-तीन बार खरपतवार हटाया जाता है। पहली बार खरपतवार दूसरी मल्चिंग से पूर्व किया जाना चाहिए, जो 45-60 दिनों के अंतराल पर दोहराई जाती है। खुदाई करते समय इसके लिए ही संभव सावधानी बरती जानी चाहिए कि प्रकदन को क्षति, नुकसान न पहुंचे अथवा वह बाहर न दिखाई दे।
फसल की सुरक्षा
(अ) कीट प्रबंधन शुट बोरर |
|
प्रकन्द कीट |
|
सफेद कीट |
|
(ब) रोग प्रबंधन नरम सड़न |
|
पत्तों पर धब्बे | यह रोग जुलाई से अक्तूबर माह के दौरान पत्तों पर देखा गया है। पत्तों पर अंडाकार से अनियमित जल में तिरोतित धब्बे उभर आते हैं। पत्ते कागजनुमा बन जाते हैं और रंग-बिरंगे छिद्र उभर आते हैं। पत्तों की सतह पर काले बिंदुओं जैसे आकार बन जाते है।
|
जीवाणु जनित कुम्लाहट | यह रोग दक्षिण-पश्चिमी मानसून के दौरान होता है, जब फसल तरूणावस्था में होती है। जल तिरोतित धब्बे छद्म तने कॉलर क्षेत्र में उभरते हैं और ऊपर-नीचे की ओर फैलते हैं, बाद में पत्ते की और आगे बढ़ता है। प्रभावित छद्म तना और प्रकंद को जब हल्के से दबाया जाता है तो इसकी संवहनी शिराओं और दुग्धनुमा द्रव्य निकलता है।
|
गट्ठी सड़न रोग | इस रोग से प्रभावित पौधों के पत्ते पीले पड़ जाते हैं तथा उन पौधों के डंठल जमीन की सतह से नरम पड़ने के पश्चात जमीन पर गिर जाते हैं। इस प्रकार रोगी पौधों की गांठे नरम तथा पिलपिली पड़ जाती हैं। अंदर की रेशेदार उत्तिकाओं को छोड़कर अन्य सभी उत्तिकाएं गलकर सड़ जाती हैं तथा रोगी पौधे सूखकर जमीन पर गिर जाते हैं। प्रायः सूत्रकृमि या कीड़े गांठों में छेद करते हैं जहां से फफूद आसानी से प्रवेश करके गांठों में सड़न रोग उत्पन्न करता है। इस रोग का फैलाव रोगी गांठों द्वारा होता है। फफूद का स्थान बीज के छिलके के नीचे होता है तथा यह रोग मिट्टी से अदरक के पौधे तक कम मात्रा में फैलता है।
रोकथाम :
|
जड़ ग्रन्थि सूत्रकृमि | सूत्रकृमि अदरक व इसकी जड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं। इसलिए अदरक पर इनसे सीधे होने वाले नुकसान के अतिरिक्त यह अन्य सूक्ष्मजीवियों को फसल में प्रवेश करने तथा इनके बढ़ने में भी दो प्रकार से सहायता करते हैं :
(क) जड़ों को खाने व इनके अंदर प्रवेश करते समय यह जो घाव अदरक व उसकी जड़ों पर छोड़ते हैं उनमें से फफूद आसानी से अदरक के अंदर पहुंच जाती है।
(ख) सूत्रकृमि अदरक के जिस उत्तक को खाता है, उसको मुलायम बना देता है और फफूद आसानी से बढ़ता हुआ फैलता है और सड़न रोग एक भयंकर रूप ले लेता है, जिससे अदरक की पैदावार 50 प्रतिशत तक कम हो जाती है।
रोकथाम
|
कटाई | ताजे अदरकों के लिए फसल की कटाई पूरी तरह परिपक्व होने से पूर्व ही कर ली जानी चाहिए। जब प्रकंद नरम हो, तीखापन और रेशे की मात्रा कम हो जो सामान्यतः रोपण के बाद पांचवें माह होता है। अदरक के संरक्षण के लिए इसकी कटाई 5-7 माह के बाद की जानी चाहिए, जब पूर्ण परिपक्व सूख मसाले और तेल के लिए कटाई का सर्वोत्तम समय होता है अर्थात् रोपण के बाद 8-9 माह के बीच पत्तों का रंग पीला होना शुरू होता है। रोपण सामग्री के लिए प्रयुक्त किए जाने वाले प्रकंदों की कटाई पत्तों के पूरी तरह सूख जाने पर की जानी चाहिए। |
भंडारण | भण्डारण के लिए रोगमुक्त मोटी तथा फूली हुई गठ्ठियों का चयन करें। स्वस्थ बीज तुड़ाई के समय मातृ गांठों से चुनें। बीज का अदरक भंडारण करने से पहले खत्तियों को गाय के गोबर + गौमूत्र से उपचारित करें तथा अदरक के बीज को ट्राईकोडर्मा व बीजामृत से उपचारित करें। उपचारित बीज को इन गड्ढों/वत्तियों में डालें तथा ऊपर से लकड़ी के तरव्ते से ढकें। हवा के उचित आवागमन के लिए तरस्ते में छेद करें और बाकी भाग को गोबर से लेप दें। अदरक का भंडारण गड्ढों में किया जाता है जो पूरी तरह सूखे पत्तों/बुरूदे की 30 सें.मी. मोटी परत से ढकी होनी चाहिए और प्रकंदों की प्रत्येक परत 30 सें.मी. से ढकी होनी चाहिए। बारिश, पानी व सीधी धूप से सुरक्षा करने के लिए इन गड्ढों को फूस से बनी छत के नीचे खोदा जाना चाहिए। गड्ढों की दीवारों को गाय के गोबर के घोल से लीपा जा सकता है। ताजे अदरक का भंडारण 10-12 डिग्री सैल्सियस तापमान और 90 प्रतिशत आर्द्रता पर शीतल कक्ष में किया जाना चाहिए। पॉलीथिन बैग में 2 प्रतिशत वायू आवागमन (वेंटीलेशन) में भंडारण से निर्जलीकरण और विकृत विकास की रोकथाम होती है। |
उत्पादकता | औसत उत्पादकता 10-15 टन/है0 (8-12 क्विंटल/बीघा) तक होती है तथापि शुष्क अदरक की उपज 20-22 प्रतिशत तक होती है। |
अदरक से सौंठ तथा सफेद सौंठ बनाने की विधि | सौंठ बनाने के लिए कंदों को बिजाई के 7-8 महीने बाद निकालें, जब पत्ते पीले पड़कर जमीन पर गिरना शुरू कर दें। कंदों को अच्छी तरह पानी से धोएं ताकि मिट्टी तथा जड़े कन्दों से साफ हो जाएं। इसके उपरान्त बांस या लकड़ी के चाकु बनाकर कंदों के छिलकों को निकाल दें तथा इस बात का ध्यान रखें कि छिलका गहरा न निकले। छिलका निकालने के लिए लोहे के चाक का प्रयोग न करें। अदरक के कदों का छिलका निकालने के लिए ड्रम का प्रयोग भी किया जाता है। छिलका निकालने के बाद कंदों को 8-10 प्रतिशत नमी तक धूप में सुखाएं। |
सफेद सौंठ बनाना | उपरोक्त विधि द्वारा सुखाए गए अदरक को चूने के पानी (10-20 ग्राम चूना /लीटर पानी) में 4-6 घंटे तक डुबोएं तथा निकालने के उपरांत धूप में सुखाएं। इस विधि को 2-3 बार तक दोहराएं ताकि सौंठ का रंग सफेद हो जाए। |