- भूमि
- तापमान
- बुबाई का उचित समय
- भूमि की तेयारी
- उच्चतम वैरायटी
- बीज की मात्रा
- बीज उपचार
- बिजाई का तरीका
- सिंचाई
- उर्वरक
- खरपतवार
- रोग नियंत्रण
- अब फसल पकने का इंतजार करें
- बीज उत्पादन
खीरे को रेतीली दोमट व भारी मिट्टी में भी उगाया जा सकता है, लेकिन इसकी खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली बलुई एवं दोमट मिट्टी में अच्छी रहती है। खीरे की खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 6-7 के बीच होना चाहिए । इसकी खेती उच्च तापमान में अच्छी होती है ।
इसके लिए 25-35 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान अच्छा माना जाता है ।
खीरे की खेती साल में दो बार की जा सकती है। इसे फरवरी से मार्च और जून से जुलाई तक इसकी बुवाई कर सकते हैं।
खीरा की बुवाई के लिए सबसे पहले खेत की ट्रैक्टर और कल्टीवेटर से अच्छी तरह से जुताई करके मिट्टी भुरभुरा बना लेना चाहिए। खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए। इसके बाद 2-3 बार हैरो या कल्टीवेटर से खेत की जुताई करें इसके बाद सड़े हुए 8-10 टन गोबर की खाद प्रति एकड़ प्रतिकिलो खाद के हिसाब से डालें। खेती की अंतिम जुताई के समय 20 कि.ग्रा नाइट्रोजन, 50 कि.ग्रा फास्फोरस व 50 कि. ग्रा पोटाशयुक्त उर्वरक मिला देते हैं।
स्वर्ण अगेती, स्वर्ण पूर्णिमा, पूसा उदय, पूना खीरा, पंजाब सलेक्शन, पूसा संयोग, पूसा बरखा, खीरा 90, कल्यानपुर हरा खीरा, कल्यानपुर मध्यम और खीरा 75 आदि प्रमुख है ।
बीजों की बुवाई के लिए एक एकड़ में 1 किलो ग्राम बीज पर्याप्त होता है ।
बीजों को मिट्टी से होने वाली फंगस से बचाने के लिए, कार्बेनडाजिम 2 ग्राम या थीरम 2.5 ग्राम से प्रति किलो बीजों की दर से उपचारित करना चाहिए । रासायनिक उपचार के बाद, बीजों को ट्राइकोडरमा विराइड 4 ग्राम या स्यूडोमोनास फलूरोसैंस 10 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें ।
सबसे पहले खेत को तैयार करके 1.5-2 मीटर की दूरी पर लगभग 60-75 से.मी चौड़ी नाली बना लें । इसके बाद नाली के दोनों ओर मेड़ के पास 1-1 मी. के अंतर पर 3-4 बीज की एक स्थान पर बुवाई करते हैं ।
गर्मी के मौसम में इसको बार-बार सिंचाई की जरूरत होती है और बारिश के मौसम में सिंचाई की जरूरत नहीं होती है । इसको कुल 10-12 सिंचाइयों की आवश्यकता होती हैं बिजाई से पहले एक सिंचाई जरूरी होती है, इसके बाद 2-3 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें दूसरी बिजाई के बाद, 4-5 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें ।
पौधों को लगाने के 30 दिन पश्चात् बाद एक एकड़ के खेत में 20 KG नाइट्रोजन की मात्रा का छिड़काव करे तथा उसके 40 दिन बाद फिर से 20 KG नाइट्रोजन का छिड़काव कर दे, इससे पैदावार अच्छी प्राप्त होती है ।
निराई-गुड़ाई से खरपतवार को नियंत्रित किया जा सकता है और रासायनिक रूप से भी नियंत्रित किया जा सकता है इसके लिए आपको ग्लाइफोसेट का प्रयोग कर सकते हैं ध्यान रहे कि ग्लाइफोसेट का प्रयोग केवल खरपतवारों पर करें न कि फसल वाले पौधों पर ।
विषाणु रोग : यह रोग पौधों के पत्तियों से शुरू होती है और इसका प्रभाव फलों पर पड़ता है । पत्तियों पर पीले धब्बों का निशान पड़ जाता है और पत्तियां सिकुडऩे लगती है। फल छोटी और टेड़ी-मेड़ी हो जाती है। इस रोग को नीम का काढ़ा या गौमूत्र में माइक्रो झाइम मिलाकर इसे 250 एमएल प्रति पंप फसलों पर छिडक़ाव करके से दूर किया जा सकता है ।
एन्थ्रेक्नोज : यह रोग मौसम में परिवर्तन के कारण होता है । इस रोग में फलों तथा पत्तियों पर धब्बे हो जाते हैं । इस रोग को नीम का काढ़ा या गौमूत्र में माइक्रो झाइम मिलकाकर इसे 250 एमएल प्रति पंप फसलों पर छिडक़ाव करके दूर किया जा सकता है ।
चूर्णिल असिता : यह रोग ऐरीसाइफी सिकोरेसिएरम नाम से एक फफूंदी के कारण होता है। यह रोग मुख्यत: पत्तियों पर होता है और यह धीरे-धीरे तना, फूल और फलों पर हमला करने लगता है। नीम का काढ़ा या गौमूत्र में माइक्रो झाइम को मिलाकर इसे 250 मिमी प्रति पंप फसलों पर छिडक़ाव करने से इस रोग को दूर किया जा सकता है।
एपिफड : ये बहुत छोटे-छोटे कीट होते हैं । ये कीट पौधे के छोटे हिस्सों पर हमला करते हैं तथा उनसे रस चूसते हैं । इन कीटों की वजह से पत्तियां पीली पडऩे लगती है । इस कीट से बचने के लिए नीम का काढ़ा या गौमूत्र में माइक्रो झाइम को मिलाकर इसे 250 एमएल प्रति पंप फसलों पर छिडक़ाव करना चाहिए ।
रेड पम्पकिन बीटिल : ये लाल रंग तथा 5-8 सेमी लंबे आकार के कीट होते हैं । इस कीट से बचने के लिए नीम का काढ़ा या गौमूत्र में माइक्रोझाइम को मिलाकर इसे 250 एमएम प्रति पंप फसलों पर छिडक़ाव करने की सलाह दी जाती है ।
एपिलैकना बीटिल : ये कीट इन सभी वाइन प्लांट पर हमला करते हैं । ये कीट पौधों के पत्तियों पर आकमण करती है । ये बीटिल पत्तियों को खाकर उन्हें नष्ट कर देती है ।
खीरे की फसल बीज रोपाई के 40 से 45 दिन बाद पैदावार देना आरम्भ कर देती है । जब इसके पौधों में लगे फल आकर्षण दिखाई देने लगे तब उनकी तुड़ाई कर ली जाती है, किस्मो के आधार पर इसके फलो की तुड़ाई एक से दो दिन के अंतराल में कई बार की जाती है । कटाई के लिए तेज़ चाकू या किसी और नुकीली चीज़ का प्रयोग करें । अलग-अलग क़िस्म के आधार पर खीरे की फसल से 4 से 16 टन की पैदावार प्राप्त हो जाती है ।
भूरे रंग के फल बीज उत्पादन के लिए सबसे बढ़िया माने जाते है । बीज निकालने के लिए फलों के गुद्दे को 1-2 दिनों के लिए ताज़े पानी में रखा जाता हैं ताकि बीजों को आसानी से अलग किया जा सके फिर इनको हाथों से रगड़ा जाता है और भारी बीज पानी में नीचे बैठ जाते हैं और इनको कई और कार्यो के लिए रखा जाता हैं ।