- भूमि
- तापमान
- उचित समय
- भूमि की तेयारी
- उच्चतम वैरायटी
- बीज उपचार
- बिजाई का तरीका
- बिजाई
- सिंचाई
- कपास की चुनाई
कपास की फसल के लिए लाल या काली दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है ।
कपास की बिजाई के लिए मुख्यतया 25-38 डिग्री सेल्सियस तापमान होना चाहिए ।
1 अप्रैल से 15 मई के बीच का समय बिजाई के लिए बढ़िया माना जाता है ।
गेहूं की कटाई के बाद भूमि की जूताई करके उसमे पानी दे । पानी देने के 4-5 दिन (मौसम के अनुसार) भूमि में 80-100 क्विंटल रूढ़ी की खाद डालकर या 70 Kg सुपर और 10 Kg पोटाश (5-7 Kg सल्फर) डालकर दोबारा से बुवाई करे बुवाई के लिए कल्टीवेटर– तोई – हेरो इत्यादी का इस्तेमाल करें ।
आरसीएच-776, आरसीएच-773, आरसीएच-134, श्रीराम-6588 (भूमि और क्षेत्र के हिसाब से वैरायटी का चयन करें) ।
बीज जनित रोग से बचने के लिये बीज को 10 लीटर पानी में एक ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन या ढाई ग्राम एग्रीमाइसिन के घोल में 8 से 10 घंटे तक भिगोकर सुखा लीजिये इसके बाद बोने के काम में लेवें । जहां पर जड़ गलन रोग का प्रकोप होता है, ट्राइकोड़मा हारजेनियम या सूडोमोनास फ्लूरोसेन्स जीव नियंत्रक से 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें या रासायनिक फफूंदनाशी जैसे कार्बोक्सिन 70 डब्ल्यू पी, 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज या कार्बेन्डेजिम 50 डब्ल्यू पी से 2 ग्राम या थाईरम 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें ।
बीजों से रेशे हटाने के लिएं जहां संभव हो 10 किलोग्राम बीज के लिए एक लीटर व्यापारिक गंधक का तेजाब पर्याप्त होता है । मिट्टी या प्लास्टिक के बर्तन में बीज डालकर तेजाब डालिए तथा एक दो मिनट तक लकड़ी से हिलाइए । बीज काला पड़ते ही तुरंत बीज को बहते हुए पानी में धो डालिए एवं ऊपर तैरते हुए बीज को अलग कर दीजिए । गंधक के तेजाब से बीज के उपचार से अंकुरण अच्छा होगा । यह उपचार कर लेने पर बीज को प्रधूमन की आवश्यकता नहीं रहेगी ।
रेशे रहित एक किलोग्राम नरमे के बीज को 5 ग्राम इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यू एस या 4 ग्राम थायोमिथोक्साम 70 डब्ल्यू एस से उपचारित कर पत्ती रस चूसक हानिकारक कीट और पत्ती मरोड़ वायरस को कम किया जा सकता है ।
असिंचित स्थितियों में कपास की बुवाई के लिये प्रति किलोग्राम बीज को 10 ग्राम एजेक्टोबेक्टर कल्चर से उपचारित कर बोने से पैदावार में वृद्धि होती है ।
कपास की बिजाई कतारों में की जाती है । इसमे पोधे से पोधे की दुरी 2 फीट और कतार से कतार की दुरी 2 से 2.5 फीट होनी चाहिए ।
बिजाई के समय भूमि और पानी के अनुसार बीज का चयन करे । बिजाई के समय 500 से 900 G कपास के बीज की बिजाई करें । अगर फसल के उगने के बाद कोई कीट पत्ते काट रहे है तो हल्के कीटनाशक का छिड़काव करें । बिजाई के 35-40 दिन में एक बार खरपतवार निकल दे ।
पहली सिंचाई: बिजाई के 45 से 60 दिन के अंदर पहली सिंचाई करें और पहली सिंचाई के साथ 40-50 Kg प्रति एकड़ यूरिया खाद डालें । सिंचाई के बाद 25 Kg प्रति एकड़ के हिसाब से DAP की बिजाई करें ।
दूसरी सिंचाई: बिजाई के 70 से 80 दिन के अंदर दूसरी सिंचाई करें और सिंचाई के साथ 20-25 किलोग्राम प्रति एकड़ यूरिया खाद डालें । सिचाई के बाद फसल पर NPK 19-19-19 का छिड़काव करें ।
तीसरी सिंचाई: बिजाई के 100 से 110 दिन के अंदर तीसरी सिंचाई करें जब फसल में फूल और टिंडे बनने लग जाये । सिंचाई के बाद NPK 0-52-34 और Boron का छिड़काव करें जिससे टिंडे का विकास अच्छे से हो सके । इसके बीच अगर फसल में कोई बीमारी है उसके हिसाब से आवश्यक कीटनाशक का छिड़काव करें ।
चौथी सिंचाई: बिजाई के 150 से 160 दिन के अंदर अथवा जब फसल में जरुरत हो चौथी सिंचाई करें क्योकि इन दिनों बारिश का मौसम होता है ।
नोट : चौथी सिंचाई अथवा दाना बनते टाइम ध्यान रखे की फसल में कोई बीमारी जेसे सुंडी – तेला तो नहीं है अगर है तो कीटनाशक का छिड़काव करें ।
लगभग 160 दिनों में शुरु हो जाती है । चुनाई के समय अधखिले और ऑस वाले फूलों की चुनाई न करे क्योकि गीलेपन के वजह से फसल की गुणवत्ता में कमी आती है । चुनाई में किसी प्रकार का कोई डंठल और पत्तियां नहीं आनी चाहिए ।
फसल की चुनाई दो या तीन बार में की जाती है तो पहली चुनाई के बाद फसल में पानी अवश्य दे । चुनाई के बाद फसल को सुखाकर ही भण्डारण करे क्योकि गीलेपन से कपास में पीलापन आ जाता है । अब चुनाई के बाद लकड़ियों को उखाड़ कर भूमि को अगली फसल के लिए खाली करें ।