Celery

Table of Contents

Kisan_admin

myrobalan plant

Table of Contents हरड़ का पौधा भारतीय संस्कृति और आयुर्वेद में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस पौधे को कई औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है और यह हमारे स्वास्थ्य के लिए कई तरह से लाभदायक होता है। हरड़ का पौधा सदियों से हमारी चिकित्सा में उपयोग किया जा

Read More »
Kisan_admin

tuberose plant

रजनीगंधा का पौधा   रजनीगंधा, जिसे वैज्ञानिक रूप से ‘Tuberose‘ कहा जाता है, एक सुगंधित फूलों वाला पौधा है जो भारत में बहुत लोकप्रिय है। यह अक्सर पूजा, शादियों और अन्य सांस्कृतिक अवसरों पर उपयोग होता है। रजनीगंधा के फूल सफेद रंग के होते हैं, और जब वे खिलते हैं,

Read More »
Kisan_admin

aloe vera cultivation

एलोवेरा की बाजार में बढ़ती मांग को देखते हुए इसकी खेती मुनाफे का सौदा साबित हो रही है। हर्बल और कास्मेटिक्स में इसकी मांग निरंतर बढ़ती ही जा रही है। इन प्रोडक्टसों में अधिकांशत: एलोवेरा का उपयोग किया जा रहा है। सौंदर्य प्रसाधन के सामान में इसका सर्वाधिक उपयोग होता

Read More »
Kisan_admin

A lotus plant

Search कमल, भारत का राष्ट्रीय फूल, अपनी सुंदरता और पवित्रता के लिए प्रसिद्ध है। जब आप इस सुंदर फूल को पानी में खिलते हुए देखते हैं, तो आपको समझ में आता है कि इसे क्यों इतना महत्व दिया जाता है। कमल के पौधे की खास बात यह है कि यह कीचड़

Read More »
Kisan_admin

Brahmakamal cultivation

Posts Search ब्रह्मकमल की खेती ब्रह्मकमल जैसा कि नाम से पता चलता है कि ब्रह्मकमल का संबंध सृष्टि के रचनाकार ब्रह्मा से है। वेदों और अन्य हिंदू धार्मिक ग्रंथों में ब्रह्मकमल का वर्णन मिलता है। इसके अनुसार इस पुष्प का संबंध ब्रह्मा से बताया गया है। ऐसा माना जाता है

Read More »
Kisan_admin

sitafal

RECENT POST RECENT POST शरीफा (सीताफल) शरद ऋतु में मिलने वाला एक प्रकार का फल है, जिसे आमतौर पर शरीफा (सीताफल), शुगर एप्पल या कस्टर्ड एप्पल के नाम से भी जाना जाता हैं। हालांकि पहले यह माना जाता था कि यह भारत का मूल फल है, लेकिन यह पेड़ बहुत पहले

Read More »

सैलेरी का वनस्पातिक नाम एपिऐसी ग्रेविओलेन्स है और इसको कार्नोलीके नाम से भी जाना जाता है| इसके द्वारा तैयार होने वाली दवाइयों के कारण भी जाना जाता है| सैलेरी का प्रयोग जोड़ों के दर्द, सिर दर्द, घबराहट, गठिया, भर काम करने, खून साफ करने आदि के लिए किया जाता है| इसमें विटामिन सी, विटामिन के, विटामिन बी 6, फोलेट और पोटाशियम भारी मात्रा में पाया जाता है| यह जड़ी बूटी वाली किस्म का पौधा है, जिसकी डंडी की औसतन ऊंचाई 10-14 इंच होती है और फूलों का रंग सफ़ेद होता हैं| इसके तने हल्के हरे रंग के होते है और इसके साथ 7-18 सै.मी लम्बे पत्ते होते है| पत्तों से हरे सफ़ेद रंग के फूल पैदा होते है, जो फल पैदा करते है और बाद में यहीं फल बीज में बदल जाते है, जिनकी लम्बाई 1-2 मि.मी होती है और रंग हरा-भूरा होता है| इससे मुरब्बा, सलाद और सूप तैयार किय जाता है| यह ज्यादातर मेडिटेरेनियन क्षेत्रों में, दक्ष्णि एशिया इलाकों में, यूरोप और उत्तरी अमेरिका के दलदली क्षेत्रों में और भारत के कुछ क्षेत्रों में पायी जाती है| पश्चमी उत्तर प्रदेश में लाडवा और सहारनपुर जिलें, हरियाणा और पंजाब के अमृतसर, गुरदासपुर और जालंधर जिलें मुख्य सैलेरी उगाने वाले क्षेत्र है |

जलवायु

Season

Temperature

12-30°C
Season

Rainfall

100cm
 
Season

Sowing Temperature

25-30°C
 
Season

Harvesting Temperature

12 – 18°C
 

यह किस्म बहुत बढ़िया निकास वाली मिट्टी जैसे कि रेतली दोमट से चिकनी, काली मिट्टी और लाल मिट्टी में उगाई जा सकती है| यह जैविक तत्वों वाली दोमट मिट्टी में बढ़िया पैदावार देती है| इसको पानी सोखने वाली, खारी और नमकीन मिट्टी में ना उगाएं| इसकी खेती के लिए मिट्टी को 5.6 से भी ज्यादा पह की जरूरत होती है|

punjab celery 1 : यह पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी के द्वारा तैयार की गयी पहली किस्म है| इसके बीज भूरे रंग के होते है| फूलों वाली किस्म पनीरी लगाने से 140-150 दिनों बाद तैयार हो जाती है| इसकी औसतन पैदावार बीजों के रूप में 4.46 कुएन्टल प्रति एकड़ होती है| इसमें कुल तेल की मात्रा 20.1% होती है|

RRL-85-1 : यह क्षेत्रीय खोज लबोरटरी, जम्मू के द्वारा तैयार की गयी है| यह 2-3% पीला परिवर्तनशील तेल पैदा करती है|

Standard bearer : यह किस्म IARI, नयीं दिल्ली द्वारा तैयार की गयी है| यह सलाद के लिए प्रयोग की जाती है|

Wright grove giant : यह किस्म भी IARI, नयीं दिल्ली द्वारा तैयार की गयी है| यह सलाद के लिए प्रयोग की जाती है|

Fordhook Emperor : यह देरी से पकने वाली किस्म है और इसके शुरुआत में पत्ते छोटे, सख्त और घने सफ़ेद रंग के होते है|

Giant Pascal : यह सर्दियो में बढ़िया पैदा होती है| इसका कद 5-6 सै.मी. होता है|

सैलेरी की खेती के लिए, भुरभुरी और समतल मिट्टी की जरूरत होती है| मिट्टी को अच्छे स्तर पर लाने के लिए 4-5 बार हल के साथ जोताई करें और जोताई के बाद सुहागा फेरे| सैलेरी की पनीरी तैयार किये गए नरसरी बैडों पर लगाई जाती है|

बिजाई का समय
जैसे कि यह हाड़ी की फसल है, तो आधे-सितंबर से आधे-अक्टूबर तक तैयार कर देनी चाहियें|

फासला

पनीरी को 45×25 सै.मी. के फासलें पर लगाएं|

बीज की गहराई
बीज को 2-4 सै.मी. की गहराई पर बोयें|

बिजाई का ढंग
पनीरी बिजने से 60-70 दिनों के बाद मुख्य खेत में बीज दी जाती है|

बीज की मात्रा
खुले परागन वाली किस्मों के लिए 400 ग्राम प्रति एकड़ में प्रयोग करें

बिजाई से पहले कैल्शियम अमोनिया और सिंगल सुपर-फास्फेट के 150 ग्राम मिश्रण को बैडों पर लगाएं| 8×1.25 मीटर लम्बे और जरूरत के अनुसार चौड़े बैडों पर बीजों को बोयें| बिजाई के बाद बैडों को रूडी की खाद के साथ ढक दें और मिट्टी में अच्छी तरह से मिला दें| बिजाई से तुरंत बाद फुवारे (स्प्रिंकलर) के साथ सिंचाई करनी जरूरी है|

बिजाई से 12-15 दिन बाद बीज अंकुरण होने शुरू हो जाते है| अंकुरण शुरू होने के समय, अंकुरण से पहले पखवाड़े कैल्शियम अमोनिया नाइट्रेट हर एक बैड पर डालें| पौधे के बढ़िया आकार के लिए महीने के फासले पर हर एक बैड पर कैल्शियम अमोनिया नाइट्रेट 100 ग्राम हर एक बैड पर डालें|

बिजाई वाले पौधे रोपाई के लिए 60-70 दिनों में तैयार हो जाते है| पनीरी निकलने से पहले बैडों को हल्का पानी लगा दें, ताकि पौधों को आसानी से निकाला जा सकें| रोपाई आम रूप से आधे-नवम्बर से आधे-दिसंबर तक की जाती है|

खादें(किलोग्राम प्रति एकड़)

UREASSPMURIATE OF POTASH
9035#

 

तत्व(किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGENPHOSPHORUSPOTASH
4016#

 

 ज़मीन की तैयारी के समय, रूडी की खाद या कम्पोस्ट खाद 15 रेहड़ी प्रति एकड़ में डालें और मिट्टी में अच्छी तरह से मिला दें| नाइट्रोजन 40 किलो(यूरिया 90 किलो) और फास्फोरस 16 किलो(सिंगल सुपर फास्फेट 35 किलो) प्रति एकड़ में डालें|रोपाई करते समय नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस की पूरी मात्रा में डालें| रोपाई से 45 दिन बाद नाइट्रोजन की एक-चौथाई मात्रा डालें और बाकि की बची हुई नाइट्रोजन 75 दिनों के बाद डालें|

खेत को नदीन रहत करने के लिए हाथों और कस्सी से हल्की गोड़ाई करें| अगर नदीनों पर काबू नहीं किया जाएँ तो यह पैदावार को काम कर देते है| नदीन की प्रभावशाली रोकथाम के लिए, लिओरॉन 6 किलो प्रति एकड़ डालें| नदीनों की रोकथाम के लिए मल्चिंग भी एक बढ़िया तरीका है| इसके स्वाद को बढ़ाने के लिए संवेनदशीलता को बनाई रखने के लिए इसमें पीलापन होना जरूरी है|

सैलेरी को बढ़िया विकास के लिए बहुत ज्यादा मात्रा में पानी की जरूरत होती है| थोड़े-थोड़े समय के बाद हल्की सिंचाई करते रहें| नाइट्रोजन डालने से पहले थोड़े-थोड़े समय के बाद हल्की सिंचाई की जरूरत होती है|

  • बीमारिया और रोकथाम
  • सैलेरी का चितकबरा रोग: यह चेपे रोग के द्वारा कई ओर पौधों तक फैलता है| इसके लक्षण नाड़ियो में पीलापन, धब्बे पड़ना, पत्ते मुड़ना और पौधों का विकास रुकना आदि है |
    उपचार: उभरे हुए नदीनों को हटा दें और खेत में 1-3 महीने तक सैलेरी ना लगाएं| इसके साथ बीमारी का खतरा कम हो जाता है|
  • उखेड़ा रोग: यह एक फंगस वाली बीमारी है, जोकि राइजोक्टोनिया सोलनाईऔर पैथीयम प्रजाति के कारण होती है| इसका लक्षण बीजों का गलना है, इसके साथ अंकुरण होने की दर भी कम हो जाती है या अंकुरण धीरे से होता है|

    उपचार: यदि इसका हमला दिखे तो कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 400 ग्राम या एम 45 को 150 लीटर पानी में मिलाकर जड़ों के नज़दीक डालें।

  • पत्तों के निचली ओर धब्बे: यह एक फंगस वाली बीमारी है, जोकि परनोस्पोरा अम्बेलीफार्म के कारण होती है| इसके लक्षण पत्तों पर धब्बे(जो पौधों के विकास के साथ गहरे होते रहते है), पत्तों के ऊपर पीले धब्बे और पत्तों के नीचे की तरफ फूले हुए सफेद धब्बे बन जाते है|

    उपचार: यदि इसका हमला दिखे तो ज़िनेब 75 डब्लयु पी 400 ग्राम या एम 45, 400 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
  • अगेता का झुलसा रोग(सर्कोस्पोरा लीफ स्पॉट, सर्कोस्पोरा ब्लाइट):यह सर्कोस्पोरा ऐपी. के कारण होती है| इसके लक्षण है जैसे की पत्तों के दोनों तरफ छोटे पिले धब्बे आदि|

    उपचार: यदि इसका हमला दिखे तो ज़िनेब 75 डब्लयु पी 400 ग्राम या एम 45, 400 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

  • कीट और रोकथाम
  • पत्ते की सुंडी: यह पत्तों पर हमला करती है और पत्ते सड़े हुए दिखाई देते है|
    उपचार: इसकी रोकथाम के लिए कीटनाशक स्प्रे करें|
  • गाजर की भुन्डी: यह ताज़े पत्तों पर हमला करती है और इसमें सुरंग बना देती है|
    उपचार: इसके रोकथाम के लिए उचित कीटनाशन की स्प्रे करें|
  • चेपा: यह पत्तों का रस चूसता है, जिसकी साथ पौधे के विकास में रुकावट आती है|
    उपचार: इसकी रोकथाम के लिए 15 दिनों के फासले पर मैलाथिऑन 50 ई सी 400 मि.मी. प्रति एकड़ की स्प्रे करें|

कटाई आम रूप पर बिजाई से 4-5 महीने के बाद की जाती है| कटाई पौधे और बीज के लिए की जाती है| पौधे ज़मीन से थोड़ा ऊपर तेज़ छुरी की सहायता के साथ काटे जाते है| बीजों की प्राप्ति आम रूप पर बीजों का रंग हल्के भूरे से सुनहरी होने तक की जाती है| फसल तैयार होने के तुरंत बाद कटाई कर लें, क्योंकि कटाई होने में देरी होने के साथ बीज की पैदावार में नुकसान होता है|

कटाई के बाद, इसको जरूरत के अनुसार अलग-अलग छांट लिया जाता है| फिर सैलेरी को सैलर, कोल्ड स्टोर आदि में स्टोर कर लिया जाता है, ताकि इसको लम्बे समय तक संभाला जा सकें|
लिया गया लेख