फूलगोभी(Cauliflower)

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फूलगोभी की खेती दोमट मिट्टी पर अच्छे से की जाती है हालांकि उच्च नमी धारण क्षमता वाली मिट्टी को प्राथमिकता दी जाती है, क्योंकि पानी की कमी से पौधे के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । बरसात के मौसम में तेजी से सूखने वाली मिट्टी को प्राथमिकता दी जाती है ताकि कटाई का कार्य आसानी से किया जा सके वहीं यह उच्च अम्लता के प्रति संवेदनशील होती है । इसकी खेती से अधिकतम उत्पादन के लिए मिट्टी की पीएच 5.5 से 6.0  होना चाहिए ।

इसके अच्छे उत्पादन के लिए 15 से 25 डिग्री सेल्सियस तक तापमान होना चाहिए ।

 फूल गोभी की खेती आप बरसात के बाद सितंबर से अक्टूबर तक कर सकते हैं । फूलगोभी की अगेती खेती के लिए आप नर्सरी की तैयारी सितंबर में कर लें पिछेती खेती के लिए आप नवंबर तक कर सकते हैं ।

फूलगोभी कि अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए खेत में पर्याप्त मात्रा में जीवांश का होना अत्यंत आवश्यक है। खेत में 20-25 टन सड़ी हुई गोबर कि खाद या कम्पोस्ट रोपाई के 3-4 सप्ताह पूर्व अच्छी तरह मिला देना चाहिए । इसके अतिरिक्त 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस एवं 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर कि दर से देना चाहिए । नाइट्रोजन कि एक तिहाई मात्रा एवं फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा अंतिम जुताई या प्रतिरोपण से पहले खेत में अच्छी तरह मिला देना चाहिए ।

 फ़ूलगोभी की कई किस्में होती हैं, जिनमें से कुछ ये हैं :-

अगेती किस्में :- र्ली कुंआरी, पूसा कतिकी, पूसा दीपाली, समर किंग, पावस, इम्प्रूब्ड जापानी, पूसा कार्तिक, पूसा अर्ली सेन्थेटिक, पटना अगेती, सेलेक्सन 327, और सेलेक्सन 328 ।

मध्यम किस्में :- पंत सुभ्रा,पूसा सुभ्रा, पूसा सिन्थेटिक, पूसा स्नोबाल, के.-1, पूसा अगहनी, सैगनी, हिसार नं.-1 ।

पिछेती किस्में :- पूसा स्नोबाल-1, पूसा स्नोबाल-2, स्नोबाल-16 ।

हरे सिर वाली किस्में :- अल्वरडा, ग्रीन गॉडेस, और वोर्डा  ।

रोमनस्को किस्में :- मिनारेट और वेरोनिका ।

बैंगनी किस्में :- ग्रैफ़िटी और पर्पल केप ।

रोगों से बचाव के लिए बीज और पौधशाला की मिट्टी को कवकनाशी या थीरम आदि से उपचारित कर लेना चाहिए। बीज और पौधशाला को ट्राइकोडर्मा से भी उपचारित किया जा सकता है। 

 

 नर्सरी बेड को एक मीटर चौड़ा और पंद्रह सेंटीमीटर ऊंचा बनाएं । बीजों को पंक्तियों के बीच 8-10 सेमी और बीजों के बीच 5-2 सेमी की दूरी पर 1.5-2 सेमी की गहराई पर बोया जाना चाहिए । बीज की बुवाई रोपाई के बीच 8 से 10 सेंटीमीटर और पंक्तियों में 5-2 सेंटीमीटर की दूरी पर करनी चाहिए । बीजों को मिट्टी और एफवाईएम के मिश्रण से ढक देना चाहिए । अगेते मौसम की किस्मों के लिए 500 ग्राम, जबकि पिछेते और मुख्य मौसम की किस्मों के लिए 250 ग्राम बीज की प्रति एकड़ में आवश्यकता होती है ।

नर्सरी में बीजों को बोयें और आवश्यकतानुसार खादें और सिंचाई दें। बिजाई के 25-30 दिन बाद पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं । रोपाई के लिए 3-4 सप्ताह पुराने पौधों का प्रयोग करें । अगेती किस्मों के लिए 45×45 से.मी. और पिछेती किस्मों के लिए 45×30 से.मी. का फासला होना चाहिए । बीजों को 1-2 सैं.मी. की गहराई पर बोयें ।

पहली बार बीजों के अंकुरित होने तक शुरुआती चरण के दौरान और दूसरी बार गोभी का फूल बनने के दौरान फूलगोभी की सिंचाई करना सबसे ज्यादा ज़रूरी होता है । ज्यादातर उत्पादक हर दूसरे दिन पौधों को पानी देकर अपने पौधों की सिंचाई करते हैं । शुरुआती चरणों के दौरान वे थोड़ी मात्रा में पानी देते हैं और पौधे के विकास के साथ समय-समय पर यह मात्रा बढ़ाते हैं । गर्मियों के दौरान, हर दिन एक बार पानी देने की ज़रूरत पड़ सकती है । फूलगोभी की व्यावसायिक खेती में ड्रिप सिंचाई प्रणाली का सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाता है ।

उपर बताई गयी शेष आधी नाइट्रोजन की मात्रा दो बराबर भागों में बांटकर खड़ी फसल में 30 और 45 दिन बाद उपरिवेशन के रूप में देना चाहिए । अच्छी पैदावार लेने के लिए और अधिक फूलों के लिए 5-7 ग्राम घुलनशील खादें (19:19:19) प्रति लि. का प्रयोग करें। रोपाई के 40 दिनों के बाद 4-5 ग्राम 12:16:0, नाइट्रोजन और फासफोरस, 2.5-3 ग्राम लघु तत्व और 1 ग्राम बोरोन प्रति लि. का छिड़काव करें। फूल की अच्छी गुणवत्ता के लिए 8-10 ग्राम घुलनशील खादें प्रति लि. पानी में मिलाएं। बीजने के 30-35 दिनों के बाद मैगनीश्यिम की कमी को पूरा करने के लिए 5 ग्राम मैगनीश्यिम सल्फेट प्रति लि. प्रयोग करें। कैल्शियम की कमी को पूरा करने के लिए कैल्शियम नाइट्रेट 5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर 30-35 दिनों के बाद डालें। कभी कभी बेरंग तने देखे जा सकते हैं फूल भी भूरे रंग के हो जाते हैं और पत्ते मुड़ने लग जाते हैं यह बोरोन की कमी के कारण होता है। इसके लिए बोरैक्स 250-400 ग्राम प्रति एकड़ में डालें ।

फूलगोभी में फूल तैयार होने तक दो-तीन निकाई-गुड़ाई से खरपतवार का नियंत्रण हो जाती है, परन्तु व्यवसाय के रूप में खेती के लिए खरपतवारनाशी दवा स्टाम्प 3.0 लीटर को 1000 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर का छिड़काव रोपण के पहले काफी लाभदायक होता है।

फूलगोभी में मुख्य रूप से गलन रोग, काला विगलन, पर्णचित्ती, अंगमारी, पत्ती का धब्बा रोग तथा मृदु रोमिल आसिता रोग लगते हैं व फफूंदी के कारण होता है। यह रोग पौधा से फूल बनने तक कभी भी लग सकती है। पत्तियों कि निचली सतह पर जहां फफूंदी दिखती हैं उन्ही के उपर पत्तियों के ऊपरी सतह पर भूरे धब्बे बनते हैं जोकि रोग के तीव्र हो जाने पर आपस में मिलकर बड़े धब्बे बन जाते हैं। काला गलन नामक रोग भी काफी नुकसानदायक होता है रोग का प्रारंभिक लक्षण “V” आकार में पीलापन लिए होता है रोग का लक्षण पत्ती के किसी किनारे या केन्द्रीय भाग से शुरू हो सकता है यह बैक्टीरिया के कारण होता है। इससे बचाव के लिए रोपाई के समय बिचड़े को स्ट्रेप्टोमाइसीन या प्लेन्टोमाइसीन के घोल से उपचारित कर ही खेत में लगाना चाहिए । (दवा कि मात्रा-आधा ग्राम दवा + 1 लीटर पानी) बाकी सभी रोगों से बचाव के लिए फफूंदीनाशक दवा इंडोफिल एम.-45 का 2 ग्राम या ब्लाइटाक्स का 3 ग्राम 1 लीटर पानी कि दर से घोल बनाकर आवश्यकतानुसार छिड़काव करना चाहिए ।

ज्यादातर फूलगोभी रोपाई के 60-150 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है हालाँकि फसल का समय मुख्य रूप से उनकी किस्म साथ ही साथ उनकी पर्यावरणीय परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है। किस्म के आधार पर फूलगोभी का फूल उपयुक्त आकार का होने के बाद हम फूलगोभी की कटाई कर सकते हैं सिर सघन होना चाहिए और एक समान रंग का होना चाहिए। फसल की कटाई शाम के समय कैंची या चाकू से की जाती है नहीं तो, धूप की वजह से फूल जल सकता है और इसकी पत्तियां मुरझा सकती हैं । उत्पादक फूल की गाँठ के चारों ओर 3-4 आंतरिक पत्तियों के साथ फूलगोभी काटता है कटाई में देरी की वजह से गोभी की गुणवत्ता काफी कम हो सकती है क्योंकि तब इसका फूल पीला और ढीला होने का जोखिम होता है ।

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