- भूमि
- तापमान
- उचित समय
- भूमि की तेयारी
- उच्चतम वैरायटी
- बीज की मात्रा
- बीज उपचार
- बिजाई का तरीका
- सिंचाई
- उर्वरक
- खरपतवार
- रोग नियंत्रण
- अब फसल पकने का इंतजार करें
- List Item #3
करेले को उगाने के लिए, अच्छी जल निकासी वाली रेतीली से रेतीली दोमट मिट्टी या कार्बनिक पदार्थों से भरपूर मध्यम काली मिट्टी का इस्तेमाल किया जा सकता है । नदी के किनारे की जलोढ़ मिट्टी भी करेले के उत्पादन के लिए अच्छी होती है । करेले के लिए मिट्टी की पीएच सीमा 6.0- 7.0 को इष्टतम माना जाता है । करेले को पोषक तत्वों से भरपूर मिट्टी की ज़रूरत होती है, जिसमें पुरानी खाद या खाद 5.5 से 6.5 के बीच हो ।
करेले की खेती के लिए, इन बातों का भी ध्यान रखना चाहिए :-
जब करेले की वेल 45 दिन से ज़्यादा पुरानी हो जाए, तो प्रति पौधे 15:15:15 (एनपीके) उर्वरक का 1 बड़ा चम्मच दें या प्रत्येक पौधे के आस-पास मिट्टी में मुट्ठी भर वर्मीकम्पोस्ट मिलाएं
करेला एक गर्म मौसम की फ़सल है, जिसे मुख्य रूप से उप-उष्णकटिबंधीय और गर्म-शुष्क क्षेत्रों में उगाया जाता है।
बीज बोने से पहले, मिट्टी में 2:1 अनुपात के साथ अच्छी गुणवत्ता वाली जैविक खाद डालें. जैविक खाद के लिए अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद, खेत की खाद, वर्मी कम्पोस्ट या वर्मीकम्पोस्ट का इस्तेमाल किया जा सकता है ।
बढ़ते मौसम के दौरान और गर्म और उज्ज्वल जलवायु में, हर 1-2 महीने में पौधों को सौम्य जैविक खाद या खाद दें ।
इसके लिए 25-40 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान अच्छा माना जाता है ।
भारत में अधिकांश किसान करेले की फसल का उत्पादन एक वर्ष में दो बार करते हैं। सर्दियों के समय में बोये जाने वाले करेले की किस्मों को जनवरी-फरवरी में बुआई कर मई-जून में इसका उत्पादन प्राप्त कर लेते हैं जबकि गर्मियों के समय में करेले की किस्मों की बुआई जून और जुलाई में करने के पश्चात इसकी उपज दिसंबर तक मिल जाती है ।
करेले की रोपाई से पहले खेत को तैयार करते वक्त 15 से 20 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट का इस्तेमाल भी करना चाहिए इसके अलावा एक एकड़ खेत में 50 किलोग्राम डीएपी, 50 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट, 50 किलोग्राम यूरिया, 50 किलोग्राम पोटाश, 10 किलोग्राम फ्यूराडान, 500 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लेइड गड्ढ़ों में तैयार कर गड्ढ़ों की मिट्टी को तर करने के लिए इस्तेमाल करें।
पूसा विशेष, हिसार सलेक्शन, कोयम्बटूर लौंग, अर्का हरित, सडीयू-1, पूसा संकर-1, पूसा दो मौसमी, पूसा औषधि, पंजाब- 14, पंजाब करेला-1, कल्यानपुर सोना, पूसा हाइब्रिड-1, पूसा हाइब्रिड-2, प्रिया को-1, सोलन हरा, सोलन सफेद ।
करेले की खेती में आपको प्रति एकड़ 500 से 600 ग्राम बीज की जरूरत पड़ेगी ।
करेले के हाईब्रिड बीज पहले से ही उपचारित आते हैं इनको सीधे बुवाई में उपयोग कर सकते हैं । अगर आप हाईब्रिड बीज के अलावा अन्य किस्म के बीज लगाना चाहते है तो इनको बुवाई से पहले 2 ग्राम कार्बोनडाजिम/किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित कर लें ।
करेले के बीजों को 2 से 3 इंच की गहराई पर बोना चाहिए वहीं नाली से नाली की दूरी 2 मीटर, पौधे से पौधे की दूरी 50 सेंटीमीटर तथा नाली की मेढों की ऊंचाई 50 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। खेत में 1/5 भाग में नर पैतृक तथा 4/5 भाग में मादा पैतृक की बुआई अलग अलग खंडो में करनी चाहिए । फसल के लिए मजबूत मचान (चबूतरा) बनाएं और पौधों को उस पर चढ़ाएं जिससे फल खराब नहीं होते हैं ।
करेले के पौधों को सामान्य सिंचाई की आवश्यकता होती है सर्दियों के मौसम में इसके पौधों को 10 से 15 दिन के अंतराल में तथा गर्मियों के मौसम में 5 दिन के अंतराल में सिंचाई की आवश्यकता होती है बारिश का मौसम होने पर जरूरत के अनुसार ही पानी देना चाहिए ।
35 KG नाइट्रोजन की ड्रेसिंग के रूप में बुबाई के 30-40 दिन बाद देना चाहिए । फूल आने के समय इथरेल 250 पी. पी. एम. सांद्रता का उपयोग करने से मादा फूलों की संख्या अपेक्षाकृत बढ़ जाती है और परिणामस्वरूप उपज में भी वृद्धि होती है। 250 पी. पी. एम. का घोल बनाने हेतु (0.5 मी. ली.) इथरेल प्रति लिटर पानी में घोलना चाहिए करेले की फसलों को सहारा देना अत्यंत आवश्यक है ।
फसल को खरपतवारों से मुक्त रखने के लिए 2-3 बार निराई-गुड़ाई करनी पड़ती है । सामान्यत: पहली निराई बुवाई के 30 दिन बाद की जाती है बाद की निराई मासिक अंतराल पर की जाती है। इसके अलावा खरपतवार नियंत्रण के लिए पेन्डीमिथालीन 1 लीटर प्रति हेक्टेयर 600 लीटर पानी में मिलाकर अंकुरण से पहले छिडक़ाब करना चाहिए ।
करेला की फसल जल्द रोगग्रस्त होती है इसकी जड़ों से लेकर बाकी हिस्सों में कीड़े भी लगते हैं । रेड बीटल, माहू रोग और सुंडी रोग से करेला की फसल ज्यादा प्रभावित होती है । इसे वायरसों के प्रकोप से भी बचाना जरूरी है इसीलिए कृषि विशेषज्ञ की सलाह लेकर ही कीटनाशक या रासायनिक खाद का इस्तेमाल करके फसल का उपचार करते रहना चाहिए ।
करेले की फसल को बीज बोने से लेकर पहली फसल आने में लगभग 55-60 दिन लगते हैं आगे की तुड़ाई 2-3 दिनों के अंतराल पर करनी चाहिए क्योंकि करेले के फल बहुत जल्दी पक जाते हैं और लाल हो जाते हैं । सही खाद्य परिपक्वता अवस्था में फलों का चयन व्यक्तिगत प्रकार और किस्मों पर निर्भर करता है आमतौर पर तुड़ाई मुख्य रूप से तब की जाती है जब फल अभी भी कोमल और हरे होते हैं ताकि परिवहन के दौरान फल पीले या पीले नारंगी न हो जाएं । कटाई सुबह के समय करनी चाहिए और फलों को कटाई के बाद छाया में रखना चाहिए ।