Beetroot

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क्रिमसन ग्लोब किस्म :-

चुकंदर के पौधों में खरपतवार नियंत्रण

चुकंदर के बीजो की रोपाई के लिए ठंडी जलवायु उचित मानी जाती है, इसके लिए इसके बीजो की रोपाई को अक्टूबर और नवम्बर के माह में करना चाहिए| बीजो की रोपाई में चुकंदर के उन्नत किस्म के बीजो को खरीदना चाहिए, तथा बीजो की रोपाई से पहले उन्हें उपचारित कर ले, जिससे पौधों में लगने वाले रोगो का खतरा कम हो जाता है | एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 8 किलो बीजो की आवश्यकता होती है|

चुकंदर के बीजो की रोपाई को समतल और मेड दोनों ही तरह की भूमि में किया जा सकता है | समतल भूमि में रोपाई के लिए खेत में उचित दूरी रखते हुए क्यारियों को तैयार कर लेना चाहिए, इस क्यारियों में एक फ़ीट की दूरी रखते हुए पंक्तियो में बीजो की रोपाई की जाती है | इसमें प्रत्येक पंक्ति के बीच में एक फ़ीट की दूरी तथा प्रत्येक बीज को 20 से 25 सेंटीमीटर की दूरी में लगाना चाहिए | यदि आप इसके बीजो की रोपाई को मेडो पर करना चाहते है | प्रत्येक मेड के बीज में एक फुट की दूरी तथा प्रत्येक बीज के बीच में 15 सेंटीमीटर दूरी अवश्य रखे|

चुकंदर के पौधों को अच्छे से अंकुरित होने के लिए नमी की आवश्यकता होती है | इसलिए बीजो की रोपाई के तुरन्त बाद इसकी पहली सिंचाई कर देनी चाहिए, तथा बीज अंकुरण के बाद पानी की मात्रा को कम कर देना चाहिए | चुकंदर के पौधों को जलभराव की स्थिति से बचाने के लिए 10 दिनों के अंतराल में सिंचाई करनी चाहिए|

चुकंदर के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण करने के लिए रासायनिक और प्राकृतिक विधि का इस्तेमाल किया जाता है | यदि आप रासायनिक तरीके से खरपतवार पर नियंत्रण करना चाहते है, तो उसके लिए आपको पेंडीमेथिलीन की उचित मात्रा का छिड़काव बीज रोपाई के तुरंत बाद करना चाहिए | इसके बाद खेत में खरपतवार कम मात्रा में दिखाई देते है | यदि आप खेत में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक तरीके से करना चाहते है, तो उसके लिए आपको बीज रोपण के 15 से 20 दिन बाद निराई – गुड़ाई कर देनी चाहिए | इसके बाद समय- समय पर खेत में खरपतवार दिखाई देने पर निराई – गुड़ाई कर देनी चाहिए |

चुकंदर के पौधों में बहुत ही कम रोग देखने को मिलते है | किन्तु कुछ रोग ऐसे है, जो इसके पौधों को प्रभावित करते | जिससे बचाव के लिए बताये गए उपायों का इस्तेमाल करना चाहिए |

  1. लीफ स्पॉट रोग :- इस लीफ स्पॉट रोग का प्रभाव पौधों की पत्तियों पर देखने को मिलता है| इस रोग के लग जाने से आरम्भ में पत्तियों पर भूरे कोणीय धब्बे दिखाई देने लगते है | इस रोग का प्रभाव बढ़ जाने पर पत्तिया सूख कर गिरने लगती है | यह रोग फलो की वृद्धि को प्रभावित करता है, जिससे पत्तिया सूखकर गिरने लगती है |

    चुकंदर के पौधों पर एग्रीमाइसीन की उचित मात्रा का छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है |

  2. कीट आक्रमण रोग :-

    यह कीट रोग चुकंदर के पौधों पर अधिक आक्रमण करता है | इस कीट का लार्वा पौधों की पत्तियों को खाकर उन्हें नष्ट कर देता है, तथा रोग का आक्रमण बढ़ जाने पर पैदावार कम हो जाती है | मैलाथियान या एंडोसल्फान का उचित मात्रा में छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है |

चुकंदर के पौधे तीन से चार महीने में पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है | इसके फल पक जाने पर पौधों की पत्तिया पीले रंग की दिखाई देती है | उस समय इसके फलो की खुदाई कर लेनी चाहिए, फलो की खुदाई से पहले खेत में थोड़ा पानी लगा देना चाहिए, जिससे फलो को जमीन से निकालते समय आसानी हो | फलो की खुदाई कर उन्हें अच्छे से धोकर मिट्टी साफ कर लेनी चाहिए | इसके बाद उन्हें छायादार जगह पर अच्छे से सुखा कर बाजार में बेचने के लिए तैयार कर लेना चाहिए |

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श्री गणेशाय नमः Posts कच्चा आढ़तिया एसोसिएशन, ऐलनाबाद दुकान नंबर, फर्म का नाम एवं दुरभाष निर्देशिका दुकान नंबर फर्म का नाम संपर्क नंबर 1-ए 1-बी रामेश्‍वर दास गौरीशंकर 97424 26642 93154 92149 2-ए सिद्धि विनायक एग्रो प्रोडक्ट 90500 09550 80598 92313 2-बी चम्पालाल चतरभुज 3-ए गौरीशंकर गौरव कुमार 94162 85011

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