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चुकंदर एक ऐसा फल है, जिसका सेवन सब्जी के रूप में पकाकर या बिना पकाये ऐसे भी किया जा सकता है | चुकंदर को मीठी सब्जी भी कह सकते है, क्योकि इसका स्वाद खाने में हल्का मीठा होता है | इसके फल जमीन के अंदर पाए जाते है, तथा चुकंदर के पत्तो को भी सब्जी के रूप में इस्तेमाल करते है | चुकंदर में अनेक प्रकार के पोषक तत्व मौजूद होते है, जो मानव शरीर के लिए काफी लाभदायक होते है |
डॉक्टर भी खून की कमी, अपच, कब्ज, एनीमिया, कैंसर, हृदय रोग, पित्ताशय विकारों, बवासीर और गुर्दे के विकारों को दूर करने के लिए चुकंदर का सेवन करने की सलाह देते है | चुकंदर को सलाद, जूस और सब्जी के रूप में उपयोग करते है| चुकंदर की बहुत अधिक मांग होती है, जिस वजह से किसान भाई चुकंदर की खेती कर अच्छी कमाई कर सकते है | चुकंदर की खेती कैसे होती है (Beetroot) इसके बारे में जानकारी के बाद ही लाभ प्राप्त कर सकते है, इसके अलावा चुकंदर की उन्नत किस्में कौन सी है, इसे जानकर आप अच्छी पैदावार भी कर पाएंगे |
चुकंदर की खेती के लिए उपयुक्त मिटटी :-
चुकंदर की खेती को करने के लिए बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है | इसकी खेती को जलभराव वाली भूमि में नहीं करना चाहिए | जलभराव की स्थिति में फल सड़न जैसी समस्या उत्पन्न हो जाती है| चुकंदर की खेती में भूमि का P.H. मान 6 से 7 के मध्य होना चाहिए |
चुकंदर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और तापमान :-
ठंडे प्रदेशो को चुकंदर की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है, तथा सर्दियों का मौसम इसके पौधों के विकास के लिए काफी अच्छा माना जाता है| चुकंदर की फसल की अधिक बारिश की आवश्यकता नहीं होती है, जिससे अधिक वर्षा इसकी पैदावार को प्रभावित कर सकती है | चुकंदर के पौधों को अंकुरित होने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है, तथा 20 डिग्री तापमान को इसके विकास के लिए उपयुक्त माना जाता है |
क्रिमसन ग्लोब किस्म :-
- एम. एस. एच. – 102 किस्म :–इस किस्म के पौधों को तैयार होने में तीन महीने का समय लगता है| यह चुकंदर की अधिक पैदावार देने वाली किस्म है, जो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 250 क्विंटल का उत्पादन करती है |
- क्रिमसन ग्लोब किस्म :-चुकंदर की यह किस्म कम समय में अधिक पैदावार देने के लिए जानी जाती है | इसके फलो को तैयार होने में 70 से 80 दिन का समय लगता है | इस किस्म के पौधों के फलो का रंग बाहर और अंदर हल्का लाल होता है | यह प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 300 क्विंटल की पैदावार देते है|
इसके अतिरिक्त भी चुकंदर की कई किस्मे पाई जाती है | जिसमे अर्ली वंडर, रोमनस्काया, डेट्रॉइट डार्क रेड, मिश्र की क्रॉस्बी किस्मे शामिल है |
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- चुकंदर की खेती के लिए उपयुक्त मिटटी :- चुकंदर की खेती को करने के लिए बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है | इसकी खेती को जलभराव वाली भूमि में नहीं करना चाहिए | जलभराव की स्थिति में फल सड़न जैसी समस्या उत्पन्न हो जाती है| चुकंदर की खेती में भूमि का P.H. मान 6 से 7 के मध्य होना चाहिए |
- चुकंदर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और तापमान :- ठंडे प्रदेशो को चुकंदर की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है, तथा सर्दियों का मौसम इसके पौधों के विकास के लिए काफी अच्छा माना जाता है| चुकंदर की फसल की अधिक बारिश की आवश्यकता नहीं होती है, जिससे अधिक वर्षा इसकी पैदावार को प्रभावित कर सकती है | चुकंदर के पौधों को अंकुरित होने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है, तथा 20 डिग्री तापमान को इसके विकास के लिए उपयुक्त माना जाता है |
चुकंदर के पौधों में खरपतवार नियंत्रण
चुकंदर के बीजो की रोपाई के लिए ठंडी जलवायु उचित मानी जाती है, इसके लिए इसके बीजो की रोपाई को अक्टूबर और नवम्बर के माह में करना चाहिए| बीजो की रोपाई में चुकंदर के उन्नत किस्म के बीजो को खरीदना चाहिए, तथा बीजो की रोपाई से पहले उन्हें उपचारित कर ले, जिससे पौधों में लगने वाले रोगो का खतरा कम हो जाता है | एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 8 किलो बीजो की आवश्यकता होती है|
चुकंदर के बीजो की रोपाई को समतल और मेड दोनों ही तरह की भूमि में किया जा सकता है | समतल भूमि में रोपाई के लिए खेत में उचित दूरी रखते हुए क्यारियों को तैयार कर लेना चाहिए, इस क्यारियों में एक फ़ीट की दूरी रखते हुए पंक्तियो में बीजो की रोपाई की जाती है | इसमें प्रत्येक पंक्ति के बीच में एक फ़ीट की दूरी तथा प्रत्येक बीज को 20 से 25 सेंटीमीटर की दूरी में लगाना चाहिए | यदि आप इसके बीजो की रोपाई को मेडो पर करना चाहते है | प्रत्येक मेड के बीज में एक फुट की दूरी तथा प्रत्येक बीज के बीच में 15 सेंटीमीटर दूरी अवश्य रखे|
चुकंदर के पौधों को अच्छे से अंकुरित होने के लिए नमी की आवश्यकता होती है | इसलिए बीजो की रोपाई के तुरन्त बाद इसकी पहली सिंचाई कर देनी चाहिए, तथा बीज अंकुरण के बाद पानी की मात्रा को कम कर देना चाहिए | चुकंदर के पौधों को जलभराव की स्थिति से बचाने के लिए 10 दिनों के अंतराल में सिंचाई करनी चाहिए|
चुकंदर के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण करने के लिए रासायनिक और प्राकृतिक विधि का इस्तेमाल किया जाता है | यदि आप रासायनिक तरीके से खरपतवार पर नियंत्रण करना चाहते है, तो उसके लिए आपको पेंडीमेथिलीन की उचित मात्रा का छिड़काव बीज रोपाई के तुरंत बाद करना चाहिए | इसके बाद खेत में खरपतवार कम मात्रा में दिखाई देते है | यदि आप खेत में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक तरीके से करना चाहते है, तो उसके लिए आपको बीज रोपण के 15 से 20 दिन बाद निराई – गुड़ाई कर देनी चाहिए | इसके बाद समय- समय पर खेत में खरपतवार दिखाई देने पर निराई – गुड़ाई कर देनी चाहिए |
चुकंदर के पौधों में बहुत ही कम रोग देखने को मिलते है | किन्तु कुछ रोग ऐसे है, जो इसके पौधों को प्रभावित करते | जिससे बचाव के लिए बताये गए उपायों का इस्तेमाल करना चाहिए |
- लीफ स्पॉट रोग :- इस लीफ स्पॉट रोग का प्रभाव पौधों की पत्तियों पर देखने को मिलता है| इस रोग के लग जाने से आरम्भ में पत्तियों पर भूरे कोणीय धब्बे दिखाई देने लगते है | इस रोग का प्रभाव बढ़ जाने पर पत्तिया सूख कर गिरने लगती है | यह रोग फलो की वृद्धि को प्रभावित करता है, जिससे पत्तिया सूखकर गिरने लगती है |
चुकंदर के पौधों पर एग्रीमाइसीन की उचित मात्रा का छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है |
- कीट आक्रमण रोग :-
यह कीट रोग चुकंदर के पौधों पर अधिक आक्रमण करता है | इस कीट का लार्वा पौधों की पत्तियों को खाकर उन्हें नष्ट कर देता है, तथा रोग का आक्रमण बढ़ जाने पर पैदावार कम हो जाती है | मैलाथियान या एंडोसल्फान का उचित मात्रा में छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है |
चुकंदर के पौधे तीन से चार महीने में पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते है | इसके फल पक जाने पर पौधों की पत्तिया पीले रंग की दिखाई देती है | उस समय इसके फलो की खुदाई कर लेनी चाहिए, फलो की खुदाई से पहले खेत में थोड़ा पानी लगा देना चाहिए, जिससे फलो को जमीन से निकालते समय आसानी हो | फलो की खुदाई कर उन्हें अच्छे से धोकर मिट्टी साफ कर लेनी चाहिए | इसके बाद उन्हें छायादार जगह पर अच्छे से सुखा कर बाजार में बेचने के लिए तैयार कर लेना चाहिए |
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