- केला
- प्रसिद्ध किस्में और पैदावार
- मिट्टी
- बीज
- ज़मीन की तैयारी
- बिजाई
- सिंचाई
- खाद
- खरपतवार नियंत्रण
- पौधे की देखभाल
- फसल की कटाई
- कटाई के बाद
केला, आम के बाद भारत की महत्तवपूर्ण फल की फसल है। इसके स्वाद, पोषक तत्व और चिकित्सक गुणों के कारण यह लगभग पूरे वर्ष उपलब्ध रहता है यह सभी वर्गों के लोगों का पसंदीदा फल है। यह कार्बोहाइड्रेट और विटामिन, विशेष कर विटामिन बी का उच्च स्त्रोत है। केला दिल की बीमारियों के खतरे को कम करने में सहायक है। इसके अलावा गठिया, उच्च रक्तचाप, अल्सर, गैस्ट्रोएन्टराइटिस और किडनी के विकारों से संबंधित रोगियों के लिए इसकी सिफारिश की जाती है। केले से विभिन्न तरह के उत्पाद जैसे चिप्स, केला प्यूरी, जैम, जैली, जूस आदि बनाये जाते हैं। केले के फाइबर से बैग, बर्तन और वॉली हैंगर जैसे उत्पाद बनाये जाते हैं। रस्सी और अच्छी क्वालिटी के पेपर जैसे उत्पाद केले के व्यर्थ पदार्थ से तैयार किए जा सकते हैं। भारत में केला, उत्पादन में पहले स्थान पर और फलों के क्षेत्र में तीसरे नंबर पर है। भारत के अंदर महाराष्ट्र राज्य में केले की सर्वोच्च उत्पादकता है। केले का उत्पादन करने वाले अन्य राज्य जैसे कर्नाटक, गुजरात, आंध्र प्रदेश और आसाम है।
ग्रैंड नैने : यह किस्म 2008 में जारी की गई है और यह एशिया में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है। यह औसतन 25-30 किलो गुच्छे निकालते हैं।
दूसरे राज्यों की किस्में : लाल केला, सफेद वेलाची, बसराई, रस्थली, बौना कैवेंडिश, रोबस्टा, पूवन, नेंद्रन, अर्धपुरी, न्याली
इसे मिट्टी की विभिन्न किस्मों हल्की से उच्च पोषक तत्वों वाली मिट्टी में उगाया जा सकता है जैसे कि गहरी गाद चिकनी, दोमट और उच्च दोमट मिट्टी केले की खेती के लिए उपयुक्त होती है। केले की खेती के लिए मिट्टी की पी एच 6 से 7.5 होनी चाहिए। केला उगाने के लिए, अच्छे निकास वाली, पर्याप्त उपजाऊ और नमी की क्षमता वाली मिट्टी का चयन करें। उच्च नाइट्रोजन युक्त मिट्टी,पर्याप्त फासफोरस और उच्च स्तर की पोटाश वाली मिट्टी में केले की खेती अच्छी होती है। जल जमाव, कम हवादार और कम पौष्टिक तत्वों वाली मिट्टी में इसकी खेती ना करें। रेतली, नमक वाली, कैल्शियम युक्त और अत्याधिक चिकनी मिट्टी में भी इसकी खेती ना करें।
गर्मियों में, कम से कम 3 से 4 बार जोताई करें। आखिरी जोताई के समय, 10 टन अच्छी तरह से गली हुई रूड़ी की खाद या गाय का गला हुआ गोबर मिट्टी में अच्छी तरह मिलायें। ज़मीन को समतल करने के लिए ब्लेड हैरो या लेज़र लेवलर का प्रयोग करें। वे क्षेत्र जहां निमाटोड की समस्या होती है वहां पर रोपाई से पहले निमाटीसाइड और धूमन, गड्ढों में डालें।
खादें (ग्राम प्रति वृक्ष)
महीने | यूरिया | DAP | MOP |
फरवरी – मार्च | – | 190 | – |
मार्च | 60 | – | 60 |
जून | 60 | – | 60 |
जुलाई | 80 | – | 70 |
अगस्त | 80 | – | 80 |
सितंबर | 80 | – | 80 |
यूरिया 450 ग्राम (नाइट्रोजन 200 ग्राम) और म्यूरेट ऑफ पोटाश 350 ग्राम (म्यूरेट ऑफ पोटाश 210 ग्राम) को 5 भागों में बांटकर डालें।
रोपाई से पहले गहरी जोताई और क्रॉस हैरो से जोताई करके नदीनों को निकाल दें। यदि हमला घास प्रजातियों द्वारा हो तो नदीनों के अंकुरण से पहले ड्यूरॉन 80 प्रतिशत डब्लयु पी 800 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में डालें।
- बीमारियां और रोकथाम
रोपाई के बाद फसल 11-12 महीनों में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है।