Bamboo

Table Of Content

Table of Contents

Search
Search

बुनियादी जानकारी

जैसे आप जानते है बांस एक घासवर्गीय पौधा हैं, अंग्रेजी का 'बम्बू' शब्द भारतीय शब्द 'मंबु' या 'बम्बु' से उत्पन्न हुआ है। बाँस बहुत तेजी से बढ सकते है। कुछ प्रजातियों में तो यह एक दिन में 1 मीटर तक बढ जाता है। बाँस का सबसे उपयोगी भाग तना है। तनों की लंबाई 30 से 150 फुट तक एवं चौड़ाई 1/4 इंच से लेकर एक फुट तक होती है। बांस का उपयोग बल्ली, सीढ़ी, टोकरी,चटाई, बांस से बनी बोतल, फर्नीचर, खिलौने, कृषि यंत्र बनाने सहित अन्य साज-सज्जा का समान बनने के लिए किया जाता है। इसके अलावा कागज बनाने में इसका उपयोग होता है। अब तो घरों को आधुनिक लुक देने में भी बांस का प्रयोग किया जाने लगा है। इसके अलावा कहीं-कहीं इसकी खाने योग्य प्रजातियों से अचार भी बनाया जाता है। यह भारत मे सभी स्थानों मे पाए जाते है उडि़सा, कर्नाटक, तामिलनाडु, महाराट्र, केरल, मणिपुर, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार तथा उतरी पश्चिमी राज्यों मे पाए जाते हैं।

बीज विशिष्टता

किस्मों का चयन- बांस की लगभग 136 प्रजातियां होती हैं, जिसमें अलग-अलग काम के लिए कई बांस की किस्मों का उपयोग किया जाता है, इसमें लगभग 10 किस्म का उपयोग सबसे ज्यादा होता है। आपको यह देखकर प्रजाति का चुनाव करना होगा कि आप किस काम के लिए बांस की खेती करना चाहते हैं। अगर फर्नीचर के लिए बांस की खेती कर रहे हैं, तो इससे संबंधित प्रजाति का चुनाव करें।

बुवाई का समय

बांस की खेती के लिए पौधों की रोपाई का समय जुलाई महीने में होती है तीन महीने में ही बांस का पौधा प्रगति शुरू कर देता है । समय समय पर बांस के पौधे की काट छांट करनी चाहिए । बांस का पौधा तीन-चार साल में तैयार हो जाता है बांस के पौधे की कटाई छटाई अक्टूबर से दिसंबर तक की जा सकती है ।

दुरी

बांस का पौधा 3 से 4 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है।

बुवाई का तरीका

बीजों के माध्यम से नर्सरी तैयार करना तथा प्रकंदो द्वारा बुवाई की जाती हैं।

बीज की मात्रा

किसान एक हेक्टेयर में जरूरत और प्रजाति के हिसाब से लगभग 1500 से 2500 पौधे लगा सकते हैं।

भूमि की तैयारी एवं मृदा स्वास्थ्य

अनुकूल जलवायु - बांस के पौधे विभिन्न प्रकार की जलवायु में उगाया जा सकता हैं। इसकी खेती को शुष्क जलवायु उपयुक्त होती हैं।
भूमि का चयन -बांस की खेती के लिए अच्छे जलनिकासी वाली बलुई मिट्टी उपयुक्त होती हैं, वैसे तो बांस की खेती कई प्रकार की मिट्टी में की जा सकती हैं।
खेत की तैयारी - बांस की खेती के लिए रोपाई से पहले खेत को अच्छी तरह जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा और समतल कर देना चाहिए। उचित जलनिकास की व्यवस्था करनी चाहिए और खेत को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए। उसके पश्चात खेत में आवश्यकतानुसार उचित आकार के गड्ढो की खुदाई करना चाहिए।

फसल स्प्रे और उर्वरक विशिष्टता

खाद एवं रासायनिक उर्वरक - बांस के पौधे को बढ़वार के लिए विशेष पोषक तत्वों की आवश्यकता नहीं होती हैं। फिर भी उचित बढ़वार हेतु वर्मीकम्पोस्ट या गोबर की खाद खेत तैयारी के समय मिट्टी में मिला सकते हैं।

निराई एवं सिंचाई

खरपतवार नियंत्रण - खरपतवार की रोकथाम के लिए समय समय पर आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करें।
सिंचाई - पौधों की जल्दी बढ़वार के लिए सिंचाई आवश्यक होती हैं। पौधों की रोपाई के तुरंत बाद पानी की आवश्यकता होती हैं। भूमि में नमी के अभाव में इनकी वृद्धि पर विपरीत प्रभाव पड़ता हैं।

कटाई एवं भंडारण

अंतर्वर्गीय फसल - बांस का पौधा तीन-चार मीटर की दूरी पर लगाया जाता है। इसलिए इसके बीच की जगह पर अन्य फसल की खेती की जा सकती है। इससे किसान को अतिरिक्त आदमनी होगी। इसकी पत्तियों को चारे के रूप में पशुओं के लिए उपयोग में लाया जा सकता है।
फसल की कटाई - बांस की खेती 3 से 4 साल में तैयार हो जाती है। इसके चौथे साल में कटाई शुरू कर देनी चाहिए।
बांस की खेती के लिए सब्सिडी - बांस की खेती के लिए सरकार की ओर से सरकारी नर्सरी से फ्री में पौधा उपलब्ध कराया जाएगा। तीन साल में औसतन 240 रुपए प्रति प्लांट की लागत आएगी। इसमें से 120 रुपए प्रति प्लांट सरकार की ओर से दिए जाएंगे। नार्थ ईस्ट को छोडक़र अन्य क्षेत्रों में इसकी खेती के लिए 50 फीसदी सरकार और 50 फीसदी किसान लगाएगा। 50 फीसदी सरकारी शेयर में 60 फीसदी केंद्र और 40 फीसदी राज्य की हिस्सेदारी होगी। नार्थ ईस्ट में 60 फीसदी सरकार और 40 फीसदी किसान लगाएगा। 60 फीसदी सरकारी पैसे में 90 फीसदी केंद्र और 10 फीसदी राज्य सरकार का शेयर होगा।
बांस की खेती से फायदा -यदि आप एक हेक्टेयर में 1500 से 2500 पौधे लगाते हैं और इन पौधों के बीच अन्य फसल की उगाते हैं तो आपको 4 साल बाद करीब 3 लाख रुपए तक की कमाई होने लगेगी। बांस की खेती में खास बात यह है कि इसकी पौध करीब 40 साल तक चलती है इसे बार-बार लगाने की जरूरत नहीं पड़ती। इससे एक बार लगाने पर यह आपको कई सालों तक कमाई दे सकता है। इसके अलावा दूसरी फसलों के साथ खेत की मेड़ पर 4 गुणा 4 मीटर पर यदि आप बांस लगाते हैं तो एक हेक्टेयर में चौथे साल से करीब 30 हजार रुपए की कमाई होने लगेगी।

एक बार लगाएं 40 साल तक कमाएं

बांस की खेती करीब 40 साल तक बांस देती रहती है । सरकार की तरफ से इस फसल के लिए सब्सिडी भी दी जाती है । बांस की खेती के लिए खास मिट्टी की जरूरत नहीं होती जहां घास, वहां बांस हो सकता है किसान चाहे तो खेत की मेढ़ पर भी बांस लगा सकते हैं  इससे खेत का तापमान भी कम बना रहता है । जानवरों से भी खेत की सुरक्षा की जा सकती है । एक बार बांस की खेती पर पैसे लगाएं और पूरी जिंदगी कमाई करते रहें । 

बांस की खेती पर सब्सिडी

बांस की खेती पर किसानों को सरकार प्रति पौधा 120 रुपये की सहायता दी जाती है ।  3 साल में बांस के 1 पौधे की लागत 240 रुपये आती है यानी सरकार बांस की खेती (Bamboo Farming) में सब्सिडी के रूप में किसानों को आधी रकम दे रही है बांस की खेती को बढ़ावा देने के लिए भारत में राष्ट्रीय बांस मिशन (National Bamboo Mission) चलाया जा रहा है  साथ ही बांस की खेती के लिए सरकार की तरफ से 50% आर्थिक मदद भी जाती है । अधिक जानकारी के लिए अपने जिले के नजदीकी कृषि विभाग के कार्यालय में संपर्क कर सकते हैं या राष्ट्रीय बांस मिशन का ऑफिशियल वेबसाइट https://nbm.nic.in/ को भी विजिट कर सकते हैं । एक अनुमान के मुताबिक बांस की खेती के लिए 1 पौधा 240 रुपये का मिलता है, जिस पर सरकार से 120 रुपये प्रति पौधा सब्सिडी मिल जाती है ।

इन राज्यों में करें बांस की खेती

बांस की खेती करने के लिए सबसे पहले ये जान लें कि बांस की खेती के साथ दूसरी कोई फसल नहीं लगाई जा सकती यानी अगले 40 साल तक आपको उस एरिया से सिर्फ बांस का उत्पादन ही मिलेगा इसलिए कितनी जमीन पर बांस के पौधे लगाना चाहते हैं ये निर्धारित कर लें । एक्सपर्ट्स की मानें तो एक हेक्टेयर में बांस की खेती करने के लिए 1500 पौधों की रोपाई कर सकते हैं, जो अगले 3 साल में तैयार हो जाती है हालांकि बांस की हार्वेस्टिंग पूरी तरह से किसान के ऊपर निर्भर करती है । किसान बाजार भाव जानकर या अपनी आवश्यकतानुसार बांस की हार्वेटिंग जल्दी या कुछ सालों बाद भी ले सकते हैं । ये फसल खराब नहीं होती और समय के साथ इसकी क्वालिटी भी मजबूत हो जाती है । भारत में बांस की खेती के लिए मध्य प्रदेश, असम, कर्नाटक, नगालैंड, त्रिपुरा, उड़ीसा, गुजरात, उत्तराखंड व महाराष्ट्र आदि राज्यों में मिट्टी और जलवायु सबसे अनुकूल रहते हैं । 

OFFICIAL WEBSITE

Posts
Slide 1 Heading
Lorem ipsum dolor sit amet consectetur adipiscing elit dolor
Click Here
Slide 2 Heading
Lorem ipsum dolor sit amet consectetur adipiscing elit dolor
Click Here
Slide 3 Heading
Lorem ipsum dolor sit amet consectetur adipiscing elit dolor
Click Here
Previous slide
Next slide
Kisan_admin

orchid flower

Table of Contents परिचय फूलों में आर्किड एक अति सुंदर पुष्प है । इसकी उत्पति अमेरिका, मैक्सिको, भारत, श्रीलंका, फिलिपींस, आस्ट्रेलिया इत्यादि देशों को माना जाता है । यह पुष्प अपने अनोखे रूप रंग, आकार, आकृत्ति एवं समय तक रखने योग्य होने के कारण अन्य पुष्पों से अलग है ।

Read More »
Kisan_admin

khirni plant

Table of Contents प्रकृति की अनमोल देन, खिरनी का पौधा एक रहस्यमयी और उपयोगी पौधा है। इस पौधे के विविध प्रकार और इसके विशेषता बनाते हैं इसे अद्भुत वन्यजीवों के लिए भोजन का स्रोत। हम इस लेख में खिरनी के पौधे की प्रमुख जानकारी, इतिहास, व्यापारिक महत्व और इसके उपयोग

Read More »
Kisan_admin

myrobalan plant

Table of Contents हरड़ का पौधा भारतीय संस्कृति और आयुर्वेद में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस पौधे को कई औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है और यह हमारे स्वास्थ्य के लिए कई तरह से लाभदायक होता है। हरड़ का पौधा सदियों से हमारी चिकित्सा में उपयोग किया जा

Read More »
Kisan_admin

tuberose plant

रजनीगंधा का पौधा   रजनीगंधा, जिसे वैज्ञानिक रूप से ‘Tuberose‘ कहा जाता है, एक सुगंधित फूलों वाला पौधा है जो भारत में बहुत लोकप्रिय है। यह अक्सर पूजा, शादियों और अन्य सांस्कृतिक अवसरों पर उपयोग होता है। रजनीगंधा के फूल सफेद रंग के होते हैं, और जब वे खिलते हैं,

Read More »