African swine fever

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अफ्रीकन स्वाइन फीवर ( (African swine fever) बेहद संक्रामक और घातक बीमारी है। ये बीमारी आमतौर पर बुजुर्गों और बच्चों को शिकार बनाती है। एच1एन1 इन्फ्लूएंजा वायरस (H1NI influenza Virus) के फैलने की बड़ी वजह तेजी से बदलता हुआ मौसम ही होता है। केंद्र सरकार ने बताया था बिहार और कुछ पूर्वोत्तर राज्यों में ‘अफ्रीकन स्वाइन फीवर’ के मामले सामने आए हैं। पशुपालन विभाग ने कहा कि इस बीमारी को फैलने से रोकने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं।

पशुपालन विभाग का कहना है कि स्वाइन फ्लू एक व्यक्ति से दूसरे में आसानी से फैल जाता है। ये आम फ्लू या सर्दी-जुकाम की तरह ही होती है। वहीं इसके लक्षण की बात करें तो आमतौर पर सर्दी-जुकाम की तरह ही हैं लेकिन इसमें सांस फूलती है, शरीर दर्द के साथ कमजोरी महसूस होती है। खांसने, छींकने या सांस से फैलती है। जब कोई स्वाइन फ्लू मरीज दूसरे व्यक्ति के संपर्क में आता है, तो उसे भी ये बीमारी होने की आशंका रहती है। ये हमारे श्वसन तंत्र से जुड़ी संक्रामक बीमारी है।

अफ्रीकन स्वाइन फीवर (African swine fever) के केस भारत में पहली बार मई 2020 में असम और अरुणाचल प्रदेश में सामने आए थे। यह रोग एशिया, कैरिबियन, यूरोप और प्रशांत क्षेत्र के कई देशों में पहुंच चुका है, जिससे घरेलू और जंगली दोनों सूअर प्रभावित होते हैं। विश्व स्तर पर, 2005 से, कुल 73 देशों में एएसएफ की सूचना मिली है। अफ्रीकन स्वाइन फीवर दुनिया भर में फैल रहा है, जिससे सुअर के स्वास्थ्य और कल्याण को ख़तरा है।

बरसात में पशुओं में कई तरह के संक्रमित रोग लगते हैं, जिससे पशु पालकों को काफी हानि होती है। अभी कई राज्यों के गो-वंशीय पशुओं में जहां लम्पी स्किन रोग फैला है जिसके कारण कई पशुओं की मृत्यु हो चुकी है वहीं अब सूकरों में अफ्रीकन स्वाइन फीवर की पुष्टि हो चुकी है। अफ्रीकन स्वाइन फीवर का वर्तमान में कोई उपचार नहीं है। साथ ही सूकरों को इस बीमारी से बचाव के लिए कोई टीकाद्रव्य भी नहीं है। अत: इस बीमारी से बचाव एवं बीमारी को फैलने से रोकना ही एकमात्र उपाय है। अफ्रीकन स्वाइन फीवर, सूकरों में होने वाली वायरस जनित बीमारी है। यह सूकरों से अन्य पशुओं (गाय, भैंस, बकरी) में नहीं फैलती है। साथ ही यह सूकरों से मनुष्यों में भी नहीं फैलता है।

संचालनालय (directorate) पशुपालन एवं डेयरी द्वारा अफ्रीकन स्वाइन फीवर से बचाव के लिए सभी संभाग एवं जिला अधिकारियों को बीमारी की स्थिति में नेशनल एक्शन प्लान फॉर कंट्रोल, कन्टेनमेन्ट और इरेडिकेशन ऑफ अफ्रीकन स्वाइन फीवर के अनुसार कार्यवाही करने के निर्देश जारी किए गए है, जिनमें बीमारी की स्थिति में प्रसार को रोकने के निम्न सुझाव दिये गये हैं:-

बीमार जानवर को स्वस्थ पशु से अलग रखा जाये। संक्रमित पशु के भोजन, बिसरा और अवशेष का जैव सुरक्षा मानदण्डों के साथ निपटान किया जाये। संक्रमित मृत पशु को जैव सुरक्षा मानदण्ड के साथ पशु चिकित्सा सलाह के अनुसार ही निपटान करना है। सीरो सबैलेन्स, सीरो मानिटरिंग और जैव सुरक्षा उपायों को सख्ती से लागू किया जाये। इस बीमारी के वाहक soft ticks के निपटान एवं नियंत्रण के लिए समुचित उपाय किए जायें। सूकर प्रजाति एवं सूकर फार्म से जुड़े वाहनों के आवागमन, खरीद-फरोक्त पर पूर्णतः प्रतिबंध लगाया जाये।

स्वाइन फ्लू और स्वाइन फीवर को अक्सर लोग एक ही समझ लेते हैं। जबकि, एक आरएनए (RNA) से होता है और दूसरा डीएनए (DNA) से होता है।

भारत में पिछले कुछ दिनों में स्वाइन फ्लू और स्वाइन फीवर, दोनों के मामलों में बढ़ोतरी देखी गई है। जहां, महाराष्ट्र में स्वाइन फ्लू (Swine Flu) के मामले देखे गए हैं तो वहीं, केरल और उत्तर प्रदेश में स्वाइन फीवर (Swine Fever) के मामले सामने आए हैं। बात अगर सिर्फ महाराष्ट्र की करें तो, महाराष्ट्र में अब तक 150 के करीब स्वाइन फ्लू के मामले सामने आए हैं और जिनमें से 7 लोगों की मौत भी हो चुकी है। अब तक, मुंबई में अकेले इन्फ्लुएंजा ए एच1एन1 (Influenza A H1N1) के 43 मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें किसी की मौत नहीं हुई है। पुणे, पालघर और नासिक में संक्रमण के क्रमश 23 मामले दर्ज किए गए हैं।

स्वास्थ्य बुलेटिन के अनुसार, 1 जनवरी से 22 जुलाई की अवधि के दौरान, नागपुर निगम और कोल्हापुर जिले से 14-14 मामले सामने आए हैं, जबकि ठाणे निगम में सात लोगों ने और कल्याण, डोंबिवली नगर निगम (केडीएमसी) में दो अन्य लोगों ने संक्रमण पकड़ा है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, फ्लू के बहुत गंभीर परिणाम नहीं होते हैं, लेकिन जिन लोगों की स्थितियां गंभीर होती हैं, उन्हें सावधान रहने की जरूरत है। इसलिए महाराष्ट्र को अलर्ट करने की जरूरत है। उधर केरल के वायनाड जिले में अफ्रीकन स्वाइन फीवर (African swine fever) का मामला सामने आया है। ये फीवर इतनी तेजी से फैल रहा है कि रविवार को सुअरों को मारने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।पर बहुत से लोग स्वाइन फ्लू (Swine Flu) और स्वाइन फीवर (African swine fever) का अंतर पता नहीं होता है। ऐसे में आज हम आपको बताएंगे कि स्वाइन फ्लू और स्वाइन फीवर का अंतर (Swine flu vs African swine fever) क्या है।

स्वाइन फ्लू H1N1 वायरस स्ट्रेन के कारण होता है, जो सूअरों में शुरू हुआ था। स्वाइन फ्लू को पहली बार 1919 की महामारी में पहचाना गया था और यह अभी भी मौसमी फ्लू वायरस के रूप में फैलता है ये आरएनए वायरस (RNA Virus) के कारण होता है। ये कई अलग-अलग स्तनधारियों, पक्षियों और मनुष्यों को प्रभावित करता है

स्वाइन फ्लू लक्षण (Swine flu symptoms) में व्यक्ति वही फ्लू वाले लक्षण महसूस हो सकते हैं। जैसे कि

– बुखार

-खांसी

-गले में खराश

-ठंड लगना

-कमजोरी और शरीर में दर्द शामिल हैं।

इसके अलावा ध्यान देने वाली बात ये है कि ये बच्चों, गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों में गंभीर संक्रमण का खतरा पैदा करता है।

-स्वाइन फ्लू हवा में तेजी से फैलता है। ये वायुजनित श्वसन बूंदों द्वारा फैलता है।

-दूषित सतह को छूने से।

-लार खास कर कि जूठन से और चुंबन से।

-त्वचा से त्वचा के संपर्क द्वारा जैसे कि हाथ मिलाने या गले लगाने से।

स्वाइन फ्लू में इलाज के लिए विशिष्ट उपचार में आराम, दर्द निवारक दवाएं और तरल पदार्थ दिए जाते हैं। कुछ मामलों में एंटीवायरल दवाओं की जरुरत पड़ सकती है।

अफ्रीकन स्वाइन फीवर (ASF) और क्लासिकल स्वाइन फीवर (CSF) सूअरों के अत्यधिक संक्रामक वायरल रोग हैं। ये चिकित्सकीय रूप से समान हैं। वैसे क्लासिकल स्वाइन फीवर, जिसे अक्सर ‘हॉग हैजा’ के रूप में जाना जाता है, फ्लैविविरिडे परिवार के पेस्टीवायरस जीनस के एक वायरस के कारण होता है, और यह उस वायरस से निकटता से संबंधित है जो मवेशियों में गोजातीय वायरल डायरिया (म्यूकोसल रोग) और बालों में रहने वाले किटाणुओं के रोग का कारण बनता है। स्वाइन फ्लू से स्वाइन फीवर इसलिए भी अगल है क्योंकि ये -आरएनए वायरस (RNA Virus) के कारण फैलता है। -कई अलग-अलग स्तनधारियों, पक्षियों और मनुष्यों को प्रभावित करता है -अफ्रीकी स्वाइन फीवर (एएसएफ) केवल घरेलू सूअरों और कुछ जंगली सुअर नस्लों में होता है।

स्वाइन फीवर (सीएसएफ) स्वाइन का एक अत्यधिक संक्रामक और अक्सर घातक वायरल रोग है। इसमें व्यक्ति को

– बुखार

-ब्लीडिंग

-सुस्ती

-पीले रंग का दस्त

-उल्टी

-कानों में दर्द होता है।

-पेट के निचले हिस्से और पैरों की त्वचा का बैंगनी रंग का हो जाता है।

साथ ही कुछ गंभीर मामलो में ये तंत्रिका संबंधी समस्याओं का कारण बनता है और इससे गर्भपात जैसी स्थितियां भी देखी जा सकती हैं।

अफ्रीकी स्वाइन फीवर संक्रमित सूअरों, मल या शरीर के तरल पदार्थ के सीधे संपर्क में आने से फैलता है। इसके अलावा ये वाहन या ऐसे लोग जो फार्मों में सूअरों के बीच काम करते हैं उनसे फैलता है। इसके अलावा संक्रमित सुअर का मांस खाने से भी ये फैलता है। गौरतलब है कि इसके लिए कुछ खास ट्रीटमेंट नहीं है। लक्षणों के लिए दवाइयों का इस्तेमाल होता है। बस इसके प्रसार की प्रारंभिक पहचान करके इसे नियंत्रण किया जा सकता है। तो, आप ये समझ सकते हैं कि स्वाइन फ्लू और स्वाइन फीवर का अंतर क्या है। एक डीएमए से होता है तो, दूसरा आरएनए से होता है। साथ ही दोनों के लक्षणों में हल्का सा अंतर है और बहुत से लक्षण एक दूसरे मिलते हैं। लिया गया लेख
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