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किसानों से एमएसपी पर फसल खरीदने की 5 बड़ी वजह :-
1. सरकार की खरीद से फसल के दाम बढते है :- जब सरकार न्यूनतम मूल्य तय कर फसलो को खरिदने लगती है तो बाजार में फसल के दाम बढ़ जाते हैं यही कारण है कि सरकार किसानों से एमएसपी पर फसल सही मूल्य पर खरीदती है |
2. फसल के लिए कोल्ड स्टोरेज का अभाव :- खाद्य और कृषि संगठन (FAO) की रिपोर्ट के अनुसार 2021 मे देश में कुल फसल उत्पादन 311 MMT है जबकि कुल भंडारण क्षमता 145 MMT है यानि 166 MMT फसल को रखने के लिए जगह नहीं है | अगर किसानों की फसल सरकार नहीं खरीदती है कोल्ड स्टोरेज की कमी से फसल ख़राब होगी या किसानों को कम दाम पर फसल बेचनी पड़ेगी |
3. फसल की उपज पर मौसम की पावंदी :-
बाजार में किसी भी चीज की कीमत मांग और पूर्ति पर निर्भर करती है अब मानलीजिए कोई भी कंपनी गाडी बनाती है यदि वाहन की मांग बढ़ जाती है तो वाहन का उत्पादन और कीमत बढ़ाई या घटाई जाती है लेकिन किसानों को नहीं |फसल हमेशा एक तय चक्र में होती है इसे ऐसे समझें कि गेहूं की फसल की बुआई रबी के मौसम में यानी अक्टूबर से नवंबर तक ये फसल मार्च से अप्रैल तक तयार हो जाती है | ऐसे में फसल एकदम से बाजार में लेकर जाता है तो ज्यादा मात्रा होने से फसल की कीमत कम हो जाती है| इस समय कम कीमत पर खरीदार और निजी कंपनियां फसल खरीद करके स्टॉक कर लेती हैं इस तरह किमत नियंत्रण करना किसान के हाथ में नहीं रहता और सरकार के दखल की जरूरत पड़ती है|
4. किसानो के पास पुंजी का अभाव :-
भारतीय किसानों के प्रत्येक परिवार की औसत मासिक आय लगभग 10 हजार रुपये है |अधिकांश किसानों के पास एक फसल बुआई के बाद पैसे नहीं होते यही मुख्य कारण है कि फसल काटने के बाद अगली फसल बुआई से पहले फसल बेचना मजबूरी है
5. आय बढ़ाने के लिए किसानों को सब्सिडी :-
अमेरिका किसानों को आय बढ़ाने के लिए हर साल 42 लाख रुपये से ज्यादा की सब्सिडी देता है भारतीय किसानों को सालाना दी जाती है सिर्फ 15 हजार रुपये सब्सिडी| जब बाजार में फसल की कीमत कम हो जाती है तो सरकार कृषि अनुदान पर फसल खरीदती है ताकि किसानों की आय बढ़े
जी हां, कृषि वैज्ञानिक देवेन्द्र शर्मा का कहना है की अगर किसी देश में MSP लागु ना हो फिर व्यवसायी बाजार के हिसाब से कीमत तय करते हैं उन्हें इसे कोई लेना देना नहीं, फसल उत्पादन में किसान कितना खर्च करते हैं |
वह केवल बेहतर गुणवत्ता वाली फसल देखता है, कि उनको कम कीमत में कैसे मिलेगी तो इस प्रकार जब किसी भी राज्य में सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य में किसानो से फसल खरीदता है फिर राज्य के व्यवसायी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदारी करते हैं इस प्रकार किसानों को फसल का सही मूल्य मिलता है|
एमएसपी कृषि उत्पादन का न्यूनतम मूल्य है, जो किसानो को फसल पर मिलता है भले ही बाजार में फसल के दाम कम हो |इसके पीछे तर्क ये है कि उस फसल की कीमत में उतार चढ़ाव का असर किसानो पर ना हो उन्हें न्यूनतम मूल्य मिलता रहे|
सरकार हर फसल सत्र से पहले CACP यानि (कृषि लागत और प्रक्रिया की सिफ़ारिश पर MSP तय करती है ये एक तरह से किमतों में गिरावट पर किसानो को बचाने वाली बीमा पॉलिसी की तरह काम करती है
देश के किसानों को MSP की ज़रूरत की वजह…
1950 और 1960 के दशक की बात है उस समय किसानों को चिंता थी किसी फसल का बंपर प्रोडक्शन हो जाता था तो उन्हें सही कीमत नहीं मिल पाती थी इस वजह से किसान आंदोलन करने लगे |लगत तक नहीं निकल पाती थी ऐसे में भोजन प्रबंधन एक बड़ा संकट बन गया था किसानो के आंदोलन पर सरकार का नियंत्रण नहीं था|
1964 L K Jha के नेतृत्व में खाद्यान्न मूल्य समिति (food grains committee) बनाई गई| झा समिति की रिपोर्ट पर 1965 में भारतीय खाद्य निगम(FCI) सथपना हुई कृषि प्रक्रिया आयोग यानि(APC) बना|
दोनों संस्थाओं का काम, देश में खाद्य सुरक्षा को लेकर कानून बनाना में मदद करना था| FCI वह एजेंसी है जो एमएसपी पर फसल खरीद करता है पर अपने गोदाम में स्टोर करत है| PDS (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) के जरीये जनता तक फसल को रिययती दर पर पहुंचाती है|
PDS के तहत पूरे देश में लगभग 5 लाख उचित्त वैल्यू की दुकानें हैं जहां से रियायती दर पर फसल वितरित की जाती है
फसल | लागत (₹/क्विंटल) | सरकार ने MSP घोषित की (₹/क्विंटल) | स्वामीनाथन आयोग के हिसाब से MSP |
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गेहूँ | 1652 | 2275 | 2478 |
जो | 1614 | 1850 | 2421 |
चना | 4547 | 5440 | 6820.5 |
मसूर | 4890 | 6425 | 7335 |
सरसो | 4068 | 5650 | 6102 |
सूरजमुखी | 5414 | 5800 | 8121 |
किसान 2004 के स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिश और मुताबिक फ़सलों की कीमत चाहते हैं
(मात्रा-लाख टन में)
वर्ष | गेहूँ | चावल | कुल |
---|---|---|---|
2013 | 423.97 | 315.08 | 739.05 |
2014 | 398.01 | 276.60 | 674.61 |
2015 | 386.80 | 216.71 | 603.51 |
2016 | 301.81 | 246.69 | 548.50 |
2017 | 322.75 | 264.68 | 587.43 |
2018 | 418.01 | 275.57 | 693.58 |
2019 | 458.31 | 354.63 | 812.94 |
2020 | 549.91 | 394.31 | 944.22 |
2021 | 603.56 | 491.10 | 1094.6 |
2022 | 285.10 | 472.18 | 757.28 |
जुलाई 2023 | 301.45 | 409.59 | 711.04 |
1.पर्यावरण के लिहाज से :- अभी देश में जिन फसलो पर एमएसपी मिलती है, किसान सिर्फ वही फसल उपजाते हैं अगर सारी फसल पर एमएसपी लागू हो तो जिन राज्यों में पानी कम है जैसा राजस्थान वाह किसान तिलहन और दलहन वाली कम पानी वाली फसल लगाएंगे और पानी के जलसतर भी ऊंचा होगा |
2.भारत आत्मनिर्भर होगा और अनाज की आयत घटेगा :- 2022-23 के मार्केटिंग(विपणन) सत्र (नवंबर-अक्टूबर) के दोरान देश में तिलहन का आयत तेजी से बढकर 164.66 लाख टन हो गया |इस तरह भारत ने अब तक का सबसे ज्यादा तिलहन आयत किया अगर देशभर में एमएसपी लागू हुआ तो किसान दलहन और तिलहन की उपज करेंगे इससे ये फसले दूसरे देश से आयत नहीं करनी पड़ेगी|
राज्य | ख़रीफ़ फ़सलों की MSP (करोड़ रुपये में) |
---|---|
पंजाब | 39537.56 |
हरियाणा | 12937.64 |
छत्तीसगढ | 1995.04 |
तेलंगाना | 1778.57 |
तमिलनाडु | 1190.69 |
राज्य | ख़रीफ़ फ़सलों की MSP (करोड़ रुपये में) |
---|---|
महाराष्ट्र | 6.4 |
गुजरात | 24.81 |
केरल | 34.26 |
जम्मू-कश्मीर | 38.28 |
हिमाचल प्रदेश | 45.86 |
Source : DFPD,2023-24 नवंबर 2023 तक का आँकड़ा
(असम, दिल्ली, मध्य प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, ओडिशा, पुडुचेरी, राजस्थान, पश्चिम बंगाल
का डेटा नहीं)
प्रोफेसर अरुण कुमार के मुताबिक MSP लागु होने से देश में मुख्यरूप से आम आदमी को दो तरह से फ़ायदा होगा…
1.अर्थव्यवस्था को रफ़्तार मिलेगी : देश की 50% से ज्यादा आबादी खेती पर निर्भर है| अगर एमएसपी लागू हुआ तो किसानो की आय बढेगी उनके खरीदने की क्षमता बढेगी | महँगाई ज़रूर बढ़ेगी लेकिन सरकार के पास सब्सिडी में खर्च होने वाला 2 लाख करोड़ रुपये तक बचेगा सरकार इस पैसे को बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च कर सकती है|
2.भूखमारी और कुपोषण भी घटेगा : MSP लागू होता है तो देश के ज्यादातर खेती से जुड़े लोगों की आय बढ़ेगी इससे वो फल, साग-सब्जी पर पेसा खर्च कर पाएंगे इससे कुपोषण घटेगा | सरकार को खाद्य सुरक्षा योजना के लिए सिर्फ 25 मिलियन टन फसल चाहिए इस तरह फसल के सरप्लस की समस्या कम हो जाएगी |
प्रोफेसर अरुण कुमार के मुताबिक MSP लागु करणे से बचने की दो मुख्य वजह है | पहली वजह ये है कि सरकार किसानों पर 2 लाख रुपये तक खर्च करने वाली इस योजना को लागू करने से डर रही है सरकार को लगता है कि इससे बोझ बढ़ेगा, लेकिन ऐसा नहीं है|
इसके अलावा एक बड़ी वज़ह ये है कि देश में लेबर कॉस्ट यानी मजदुरी कम रखने के लिए खाने की चीज की कीमत कम रखना जरूरी है | अगर सरकार MSP लागू करती है तो खाने पीने की सामान की कीमत बढेगी| इससे श्रम लागत बढ़ेगी घरो में काम करने वाले ड्राइवर, मजदूरों की मज़दूरी बढ़ेगी ,सरकार ऐसा नहीं चाहती है|
फसल का नाम | एमएसपी 2023-24 (पहले/रुपये/क्विंटल) | एमएसपी 2024-25 (अब/रुपये/क्विंटल) |
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गेहूँ | 2125 रुपये | 2275 रुपये |
जौ | 1735 रुपये | 1850 रुपये |
चना | 5335 रुपये | 5440 रुपये |
मसूर | 6000 रुपये | 6425 रुपये |
रेपसीड एवं सरसों | 5450 रुपये | 5650 रुपये |
कुसुम | 5650 रुपये | 5800 रुपये |
केंद्र सरकार के तरफ से केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि सरकार ने किसानों को लागत का 50 प्रतिशत से अधिक का मुनाफे के साथ समर्थन मूल्य जारी किए हैं। अखिल भारतीय औसत उत्पादन लागत पर अपेक्षित लाभ गेहूं के लिए 102 प्रतिशत, रेपसीड और सरसों के लिए 98 प्रतिशत, मसूर के लिए 89 प्रतिशत, चने के लिए 60 प्रतिशत, जौ के लिए 60 प्रतिशत और कुसुम के लिए 52 प्रतिशत है। रबी फसलों की इस बढ़ी हुई एमएसपी से किसानों के लिए लाभकारी मूल्य सुनिश्चित होगा और फसल विविधिकरण को प्रोत्साहन मिलेगा।
सरकार फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य उसकी लागत के अनुसार तय करती है। केंद्र सरकार ने सभी फसलों की औसत लागत को समर्थन मूल्य में जोड़ा है। जिसमें किराए के मानव श्रम, बैल श्रम / मशीन श्रम, भूमि में पट्टे के लिए भुगतान किया गया किराया, बीज, उर्वरक, खाद, सिंचाई शुल्क जैसे सामग्री इनपुट के उपयोग पर किए गए खर्च, उपकरणों एवं कृषि संबंधी भवनों पर मूल्यह्रास, कार्यशील पूंजी पर ब्याज, पंप सेट आदि के संचालन के लिए डीजल/बिजली, विविध खर्च और पारिवारिक श्रम का आरोपित मूल्य को शामिल किया गया है।
बता दें कि सरकार खाद्य सुरक्षा बढ़ाने, किसानों की आय में वृद्धि करने और आयात पर निर्भरता कम करने के लिए तिलहन, दलहन और श्रीअन्न/मोटे अनाजों की उपज बढ़ाने के क्रम में फसल विविधीकरण को बढ़ावा दे रही है। सरकार के अनुसार विपणन सीजन 2024-25 के लिए रबी फसलों के एमएसपी में वृद्धि की है, ताकि उत्पादकों को उनकी उपज के लिए लाभकारी मूल्य सुनिश्चित किया जा सके।
राज्य सरकार ने गन्ने का मूल्य 372 रुपये से बढ़ाकर 386 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है, जो देश में सबसे अधिक है. इसके साथ ही सरकार ने गन्ना किसानों के भविष्य का ख्याल रखते हुए आगामी वर्ष के लिए 400 रुपये प्रति क्विंटल मूल्य देने की भी घोषणा की है.
राज्य सरकार ने मेरी फसल मेरा ब्योरा पोर्टल के तहत पिछले 7 सीजन में 12 लाख किसानों के खातों में 85,000 करोड़ रुपये भेजे हैं. साथ ही प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत 29.45 लाख किसानों ने 7656 करोड़ रुपये के बीमा का दावा किया है.
यह सुनिश्चित करने के लिए कि किसानों को अपनी फसल बेचने में असुविधा न हो, राज्य सरकार 7,000 करोड़ रुपये की लागत से गन्नौर, सोनीपत में एक अंतरराष्ट्रीय स्तर की बागवानी बाजार का निर्माण कर रही है।
इसी तरह, राज्य सरकार पिंजौर में 150 करोड़ रुपये की लागत से सेब, फल और सब्जी मंडी का निर्माण कर रही है। इसके साथ ही सरकार ने नई और अतिरिक्त मंडियों के विकास पर 1074 करोड़ रुपये खर्च किए हैं.
1,74,464 एकड़ में धान की खेती की जगह वैकल्पिक फसलों की खेती की जा रही है. इसके तहत राज्य सरकार ने किसानों को 7000 रुपये प्रति एकड़ की दर से 118 करोड़ रुपये की सहायता दी है. साथ ही सरकार ने भावांतर भरपाई योजना के तहत बाजरा किसानों के खाते में 836 करोड़ रुपये भेजे हैं.
प्राकृतिक खेती योजना के तहत 11,043 किसानों को पंजीकृत किया गया है। इन्हें प्रशिक्षण देने के लिए गुरुकुल कुरूक्षेत्र, हमेती (जींद), मंगियाना (सिरसा) और घरौंडा में प्राकृतिक खेती प्रशिक्षण केंद्र शुरू किए गए हैं।
राज्य सरकार ने अटल किसान मजदूर कैंटीन योजना के माध्यम से 10 रुपये प्रति प्लेट पर भोजन उपलब्ध कराने के लिए 25 मंडियों में कैंटीन शुरू की है। प्रदेश की 108 मंडियों को राष्ट्रीय कृषि बाजार पोर्टल (ई-नाम) से जोड़ा गया है। साथ ही, पंचकुला, सेक्टर-20 और गुरुग्राम में किसान बाजार शुरू किए गए हैं।
सरकार फसल प्रबंधन पर होने वाले खर्च को पूरा करने के लिए किसान को प्रति एकड़ 1000 रुपये की सब्सिडी दे रही है।
मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने शुक्रवार को कहा कि हरियाणा न्यूनतम समर्थन मूल्य ( एमएसपी ) पर 14 फसलें खरीदने वाला देश का पहला राज्य है। गेहूं और धान के साथ-साथ सरकार 367 मंडियों के माध्यम से तिलहन, बाजरा, मूंग और अन्य खाद्यान्नों की भी खरीद कर रही है। हरियाणा में फिलहाल गेहूं, सरसों, जौ, चना, धान, मक्का, बाजरा, कपास, सूरजमुखी, मूंग, मूंगफली, अरहर, उड़द और तिल की खरीद एमएसपी पर हो रही है।
फसल अवशेष प्रबंधन परियोजना (₹ 1,000/- प्रति एकड़)
Table of Contents योजना अवधि: 20 सितंबर 2024 से 30 नवंबर योजना के उद्देश्य: राज्य सरकार ने 2024-2025 के लिए फसल अपशिष्ट प्रबंधन योजना शुरू की है। इस योजना का उद्देश्य किसानों को धान की पराली को मौके पर और मौके पर ही प्रबंधित करने के लिए प्रोत्साहित करना है।
Pink Boll Worm (गुलाबी सुंडी)
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