Wheat(गेहूं)

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गेहूं सभी प्रकार की कृषि योग्य भूमि में पैदा हो सकती है । गेहूं की फसल के लिए बलुई या चिकनी दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है ।

गेहूं की बिजाई के लिए मुख्यतया 20-25 डिग्री सेल्सियस तापमान होना चाहिए ।

10 नवम्बर से 25 नवम्बर के बीच का समय गेहूँ की बिजाई के लिए बढ़िया माना जाता है ।

नरमा या धान की कटाई के बाद भूमि की बुवाई करके उसमे पानी दे पानी देने के 7-10 दिन बाद (मौसम के अनुसार) भूमि में 80-100 क्विंटल रूढ़ी की खाद डालकर या 50 किलोग्राम सुपर और 40 किलोग्राम पोटाश डालकर दोबारा से बुवाई करे बुवाई के लिए कल्टीवेटर तोई – हेरो इत्यादी का इस्तेमाल करें ।

एचडी-2697, एचडी-2851, एचडी-3086, पीबीडब्ल्यू-343, पीबीडब्ल्यू-550 ।

3 ग्राम थाईरम या एग्रोसन जी.एन. या कैपटन या विटावेक्स प्रति किलो बीज से उपचार किया जा सकता है । अगर उपचारित बीज का उपयोग कर रहे हो तो उन्हें उपचारित न करें ।

गेहूं की बिजाई 2 तरीके से कर सकते है छिटा विधि और कतारों में ।

बिजाई के समय भूमि और पानी के अनुसार बीज का चयन करे । बिजाई के समय 50 से 60 किलोग्राम गेहूं के बीज में 50 KG DAP मिलाकर के बिजाई करें ।

पहली सिंचाई: बिजाई के 25 से 30 दिन के अंदर पहली सिंचाई करें और पहली सिंचाई के साथ 25-30 किलोग्राम प्रति एकड़ यूरिया खाद डालें ।

दूसरी सिंचाई: बिजाई के 50 से 60 दिन के अंदर दूसरी सिंचाई करें और सिंचाई के साथ 20-25 किलोग्राम प्रति एकड़ यूरिया खाद डालें ।

नोट : दूसरी सिंचाई के बाद यह भी चेक करे की गेहूं में कोई खरपतवार तो नहीं है अगर है तो खरपतवारनाशक का छिड़काव करें ।

तीसरी सिंचाई: बिजाई के 80 से 85 दिन के अंदर तीसरी सिंचाई करें ।

चौथी सिंचाई: बिजाई के 100 से 105 दिन के अंदर अथवा जब फसल में दाना बन रहा हो चौथी सिंचाई करें और साथ में 20 किलोग्राम तक प्रति एकड़ यूरिया खाद डाले ।

नोट: चौथी सिंचाई अथवा दाना बनते टाइम ध्यान रखे की फसल में कोई बीमारी जेसे सुंडी – तेला तो नहीं है अगर है तो किटनाशक का छिडकाव करें ।

आखरी सिंचाई: गेहूं में आखिरी सिंचाई आवश्कता अनुसार ही करें अथवा बारिश के मौसम को ध्यान  में रखते हुए करें क्योकि  इन दिनों दाना पकने की अवस्था में होता है तो बारिश की वजह से बुट्टे के गिरने का खतरा रहता है और फसल ख़राब हो सकती है ।

खड़ी फसल में बहुत से रोग लगते हैं जैसे अल्टरनेरिया, गेरुई या रतुआ एवं ब्लाइट का प्रकोप होता है जिससे भारी नुकसान हो जाता है इसमे निम्न प्रकार के रोग और लगते हैं जैसे काली गेरुई, भूरी गेरुई, पीली गेरुई सेंहू, कण्डुआ, स्टाम्प ब्लाच, करनालबंट इसमें मुख्य रूप से झुलसा रोग लगता है पत्तियों पर कुछ पीले भूरे रंग के  धब्बे दिखाई देते हैं ये बाद में किनारे पर कत्थई भूरे रंग के तथा बीच में हल्के भूरे रंग के हो जाते हैं इनकी रोकथाम के लिए मैन्कोजेब 2 किग्रा० प्रति हैक्टर की दर से या प्रापिकोनाजोल 25 % ई सी. की आधा लीटर मात्रा 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए इसमे गेरुई या रतुआ मुख्य रूप से लगता है गेरुई भूरे पीले या काले रंग के, काली गेरुई पत्ती तथा तना दोनों में लगती है इसकी रोकथाम के लिए मैन्कोजेब 2 किग्रा० या जिनेब 25% ई सी. आधा लीटर, 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर छिड़काव करना चाहिए । यदि झुलसा, रतुआ, कर्नालबंट तीनो रोगों की संका हो तो प्रोपिकोनाजोल का छिड़काव करना अति आवश्यक है ।

गेहूँ की फसल में शुरू में दीमक कीट बहुत ही नुकसान पहुंचता है इसकी रोकथाम के लिए दीमक प्रकोपित क्षेत्र में नीम की खली १० कुएन्टल प्रति हैक्टर की दर से खेत की तैयारी के समय प्रयोग करना चाहिए तथा पूर्व में बोई गई फसल के अवशेष को नष्ट करना अति आवश्यक है इसके साथ ही माहू भी गेहूँ की फसल में लगती है ये पत्तियों तथा बालियों का रस चूसते हैं ये पंखहीन तथा पंखयुक्त हरे रंग के होते हैं सैनिक कीट भी लगता है पूर्ण विकसित सुंडी लगभग 40 मि०मी० लम्बी बादामी रंग की होती है। यह पत्तियों को खाकर हानि पहुंचाती है इसके साथ साथ गुलाबी तना बेधक कीट लगता है ये अण्डो से निकलने वाली सुंडी भूरे गुलाबी रंग की लगभग 5 मिली मीटर की लम्बी होती है इसके काटने से फल की वानस्पतिक बढ़वार रुक जाती है इन सभी कीट की रोकथाम के लिए कीटनाशी जैसे क्यूनालफास 25 ई सी. की 1.5-2.0 लीटर मात्रा 700-800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करना चाहिए या सैपरमेथ्रिन 750 मी०ली० या फेंवेलेरेट 1 लीटर 700-800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए । कीटों के साथ साथ चूहे भी लगते हैं, ये खड़ी फसल में नुकसान पहुँचाते हैं चूहों के लिए जिंक फास्फाइट या बेरियम कार्बोनेट के बने जहरीले चारे का प्रयोग करना चाहिए इसमे जहरीला चारा बनाने के लिए 1 भाग दवा 1 भाग सरसों का तेल तथा 48 भाग दाना मिलाकर बनाया जाता है जो कि खेत में रखकर प्रयोग करते हैं ।

गेंहू की फसल के साथ अनेको खरपतवार जिनमें गोयला, चील, प्याजी, मोरवा, गुल्ली डन्डा व जंगली जई इत्यादि उगते है और पोषक तत्व नमी व स्थान के लिए प्रतिस्पर्धा कर फसल उत्पादन को काफी कम कर देते है अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए उचित खरपतवार नियंत्रण उचित समय पर करना बहुत ही आवश्यक है फसल के बुवाई के एक या दो दिन पश्चात तक पेन्डीमैथालीन खरपतवारनाशी की 2.50 लीटर मात्रा 500 पानी में घोल बनाकर समान रूप से छिड़काव कर देना चाहिये यदि खेत में गुल्ली डंडा व जंगली जई का प्रकोप अधिक हो तो आइसोप्रोटूरोन या मैटाक्सिंरान खरपतवारनाशी की 1 किलोग्राम मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिये इसके उपरान्त फसल जब 30 से 35 दिन की हो जाये तो 2, 4-डी की 750 ग्राम मात्रा को 600 से 700 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिये

फसल के पकने का समय 01 अप्रैल से 12 के लगभग माना जाता है फसल पकने पर पत्तियां सूखने लग जाती है और बाली पिली पड़ जाती है गेहूं की कटाई से पहले बाली हाथ में लेकर मसलकर देखे के बाली पूरी पकी है या नहीं  फसल पकने के बाद अपने सुविधाजनक साधनों से फसल की कटाई और कढ़ाई करे

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