Jimikand or Suran or Elephant yam

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जिमीकंद को एक औषधीय फसल के रूप में उगाया जाता है, किन्तु इसका इस्तेमाल हमारे घरो में सब्जियों के रूप में भी होता है।  इसे ओल और सूरन के नाम से भी जाना जाता है । जिमीकंद की तासीर अधिक गर्म होती है, जिस वजह से इसका सेवन करने से खुलजी की शिकायत सुनने को मिलती है किन्तु वर्तमान समय में जिमीकंद की कुछ ऐसी उन्नत किस्मे आ गई है जिन्हे खाने से किसी तरह की खुजली नहीं होती है । इसके फल कंद के रूप में भूमि के अंदर ही विकास करते है ।

जिमीकंद के फलो में कैल्शियम, खनिज, फास्फोरस, कार्बोहाइड्रेट जैसे कई प्रमुख तत्व पाए जाते है जिस वजह से इसे खाने के अलावा आयुर्वेदिक दवाओं में भी इस्तेमाल किया जाता है । जिमीकंद को बवासीर, दमा, उबकाई, फेफड़ो की सूजन, पेचिस और पेट दर्द जैसी कई बीमारियों से राहत पाने के लिए उपयोग में लाया जाता है । आज के समय में जिमीकंद को व्यापारिक रूप में अधिक उगाया जा रहा है । यदि आप भी जिमीकंद की खेती कर अच्छा लाभ कमाना चाहते है, तो यहाँ आपको जिमीकंद की खेती कैसे होती है (Elephant Foot Yam Farming in Hindi) सूरन की खेती को करने की जानकारी से अवगत कराया गया है ।

जिमीकंद की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी को उचित माना जाता है इस तरह की मिट्टी में इसके पौधे अच्छे से विकास करते है किन्तु जल-भराव वाली भूमि में इसकी खेती को नहीं करना चाहिए क्योकि जलभराव की स्थिति में इसके पौधे अच्छे से विकास नहीं कर पाते है । इसकी खेती में 6-7 P.H. मान वाली भूमि की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त जिमीकंद के पौधे उष्ण और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में अच्छे से वृद्धि करते है किन्तु इसकी फसल को बारिश के मौसम में नहीं उगाना चाहिए ।

इसके पौधे गर्मी और सर्दी के मौसम में अच्छे से विकास करते है तथा इसके पौधों के बीज के अच्छे अंकुरण के लिए 20 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है । इसके बाद पौधा जैसे-जैसे विकास करता है वैसे-वैसे इसे सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है । यह अधिकतम 35 डिग्री के तापमान को सहन कर सकता है ।

  1. गजेन्द्र किस्म के पौधे :-

    इस किस्म को कृषि विज्ञान केंद्र संबलपुर द्वारा तैयार किया गया है । इसके पौधों में कम गर्मी वाले फल लगते है जिन्हे खाने से शरीर में खुजली नहीं होती है । पौधों की इस किस्म को बारिश के मौसम में नहीं उगाया जाता है । इसमें एक पौधे में केवल एक ही फल निकलता है तथा फल के अंदर हल्का नारंगी रंग का गूदा पाया जाता है । यह प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 80 टन की पैदावार देता है ।

  2. एम – 15 किस्म का पौधा :-

    पौधे की इस किस्म को श्री पद्मा के नाम से भी जानते है । इसके फलो की तासीर कम गर्मी वाली होती है जिससे इसे खाने से खुजली जैसी शिकायत नहीं होती है । इसमें भी एक पौधे में एक ही फल प्राप्त होता है । एक हेक्टेयर के खेत में यह 70 से 80 टन की पैदावार देता है । यह दक्षिण भारत में अधिक उगाई जाने वाली फसल है।

  3. संतरागाछी किस्म के पौधे :-

    इस किस्म के एक पौधे में कई फल पाए जाते है । इन फलो की तासीर हलकी गर्म होती है, जिससे इन्हे खाने पर हलकी खुजली जैसी समस्या देखने को मिल सकती है । इसकी फसल 5 से 6 महीने में पैदावार देना आरम्भ कर देती है । यह प्रति हेक्टेयर में 50 टन की सामान्य पैदावार देने वाली किस्म है ।

  4. संतरा गाची किस्म के पौधे :-

    इस किस्म के पौधों को भारत के पूर्वी राज्यों में अधिक उगाया जाता है । इसके एक पौधे में कई छोटे कंद प्राप्त हो जाते है । इस किस्म के सूरन का स्वाद खाने में हल्का कड़वा मालूम होता है जिस वजह से इसे खाने में गले में थोड़ी तीक्ष्णता हो सकती है । इस किस्म के पौधे प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 50 से 75 टन की पैदावार देते है ।

यदि आप जिमीकंद की अच्छी पैदावार प्राप्त करना चाहते है तो उसके लिए आपको जिमीकंद के बीजो को खेत में लगाने से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लेना चाहिए इसके लिए खेत की अच्छे से गहरी जुताई कर कुछ दिनों के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दे ताकि खेत की मिट्टी में अच्छे से धूप लग सके । इसके बाद खेत में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पुरानी गोबर की खाद को डाल कर फिर से अच्छे से जुताई कर गोबर को मिट्टी में मिला देना चाहिए ।

इसके बाद खेत में अंतिम जुताई के समय पोटाश 50 KG, 40 KG यूरिया और 150 KG डी.ए.पी. की मात्रा अच्छे से मिलाकर खेत में छिड़ककर फिर से दो तीन तिरछी जुताई कर देनी चाहिए जिससे खाद अच्छी तरह से मिट्टी में मिल जाये । इसके बाद खेत में पानी लगा कर पलेव कर देना चाहिए । कुछ दिनों के पश्चात जब खेत की मिट्टी सूखी दिखाई देनी लगे तब कल्टीवेटर लगा कर जुताई करवा दे । इसके बाद बीज रोपाई के लिए नालियों को बना कर तैयार कर लेना चाहिए ।

जिमीकंद के बीजो को खेत में लगाने से पूर्व उन्हें अच्छे से उपचारित कर लेना चाहिए । बीजो के उपचारण के लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लीन या इमीसान की उचित मात्रा का घोल बना कर उसमे आधे घंटे के लिए इन बीजो को डूबा देना चाहिए । चूंकि सूरन के बीज इसके फलो से ही तैयार होते है । इसलिए इसके पूरी तरह से पके हुए फलो को कई भागो में काटा जाता है उसके बाद बीजो को उपचारित कर खेत में लगाया जाता है । इसके एक बीज का वजन तक़रीबन 250 से 500 GM के मध्य होता है जिस वजह से प्रति हेक्टेयर खेत में 50 क्विंटल बीज की आवश्यकता होती है ।

जिमीकंद के बीजो को तैयार की गई नालियों में लगा देना चाहिए । इसके अतिरिक्त कुछ किसान भाई इसके बीजो की रोपाई गड्डो को तैयार कर उसमे लगाते है । सूरन की फसल को अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है इसलिए बीजो की रोपाई के बाद तुरंत सिंचाई कर देनी चाहिए तथा बीजो के अनुकरण तक खेत में नमी को बरक़रार रखने के लिए सप्ताह में दो बार सिंचाई करनी चाहिए । सर्दियों के मौसम में इसके पौधों को 15-20 दिन सिंचाई की आवश्यकता होती है, वही बारिश के मौसम में जरूरत पड़ने पर ही इसके पौधों की सिंचाई करनी चाहिए ।

जिमीकंद के खेत में सामान्य खरपतवार नियंत्रण की आवश्यकता होती है । इसके लिए बीजो की रोपाई से तक़रीबन 15 दिन बाद प्राकृतिक तरीके से निराई-गुड़ाई कर खरपतवार पर नियंत्रण करना चाहिए । जिमीकंद के पौधों को लगभग तीन से चार नीलाई गुड़ाई की आवश्यकता होती है । जिन्हे समय-समय पर खरपतवार दिखाई देने पर कर देना चाहिए ।

  1. जिमीकंद भृंग किस्म के रोग :-

    इस किस्म का रोग पौधों की पत्तियों और शाखाओ में देखने को मिलता है । यह एक तरह का कीट रोग होता है  जिसमे हल्के भूरे रंग की सुंडी होती है  यह सुंडी ही पौधों की पत्तियों और शाखाओ को खा कर नष्ट कर देती है जिससे पौधा ख़राब होकर गिर जाता है जिससे पैदावार अधिक प्रभावित होती है  पौधों को इस रोग से बचाने के लिए नीम के काढ़े को माइक्रो झाइम के साथ मिश्रित कर छिड़काव करना चाहिए ।

  2. झुलसा रोग :-

    इस किस्म के रोग जीवाणु जनित होते है  यह सितम्बर के माह में पौधों की पत्तियों पर आक्रमण करता है जिससे पौधे की पत्तिया हल्के भूरे रंग की दिखाई देने लगती है । इस रोग के अधिक प्रभावित होने पर पत्तिया भूरे रंग की होकर गिरने लगती है, जिससे पौधा वृद्धि करना बंद कर देता है  इंडोफिल या बाविस्टीन की उचित मात्रा का छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है 

  3. तना गलन रोग :-

    इस तरह का रोग अक्सर जल-भराव की स्थिति में देखने को मिलता है  इस तरह के रोग से बचाव के लिए खेत में जल-भराव की स्थिति न पैदा होने दे  यह जड़ गलन रोग पौधे के तने को जमीन के पास से गला कर नष्ट कर देता है  कैप्टान दवा का उचित में मात्रा में पौधों की जड़ो में छिड़काव कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है 

  4. तम्बाकू की सुंडी रोग :-

    यह एक कीट जनित रोग होता है, तम्बाकू सुंडी का लार्वा सुंडी के रूप में आक्रमण करता है  इसका लार्वा हल्के भूरे रंग का होता है,जो पौधों की पत्तिया खाकर उसे नष्ट कर देता है  यह रोग जून और जुलाई के माह में अधिक आक्रमण करता है  पौधों पर लगने वाले इस रोग से बचाव करने के लिए मेन्कोजेब या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड की उचित मात्रा का छिड़काव किया जाता है 

जिमीकंद के पौधे 6 से 8 महीने में पैदावार देने के लिए तैयार हो जाती है जब इसके पौधों की पत्तिया सूखकर गिरने लगे तब इसके फलो को खुदाई कर निकल लेना चाहिए इसके बाद उन्हें साफ पानी से धो देना चाहिए धोये हुए फलो को छायादार जगह में अच्छे से सूखा लेना चाहिए इसके बाद इन्हे बाजारों में लेकर जाकर बेच देना चाहिए

जिमीकंद के एक हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 70 से 80 टन की पैदावार प्राप्त हो जाती है जिमीकंद का बाजार भाव 2000 रूपए प्रति क्विंटल के आसपास होता है जिस हिसाब से किसान भाई इसकी एक बार की फसल से लगभग 4 लाख तक की कमाई कर सकते है

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