- परिचय
- जलवायु और मृदा
- मिर्च की उन्नत किस्में
- मिर्च की पौध तैयार करना तथा नर्सरी प्रबंधन
- मिर्च के महत्वपूर्ण कीट एवं प्रबंधन तकनीक
- मिर्च के महत्वपूर्ण रोग एवं प्रबंधन तकनीक
मिर्च की खेती के लिये 15 – 35 डिग्री सेल्सियस तापमान तथा गर्म आर्द जलवायु उपयुक्त होती है। तथा फसल अवधि के 130 – 150 दिन के अवधि मे पाला नही पडना चाहिये। काशी अनमोल (उपज 250 क्वि. / हे.), काशी विश्वनाथ (उपज 220 क्वि./ हे.), जवाहर मिर्च – 283 (उपज 80 क्वि. / हे. हरी मिर्च.)
मिर्च उगाने वाले महत्वपूर्ण राज्य आंध्र प्रदेश (समग्र), महाराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा और तमिलनाडु हैं जो भारत का 70 प्रतिशत से अधिक रकबा बनाते हैं।
मिर्च की खेती विविध प्रकार की मिट्टियों मे जिसमे की कार्बनिक पदार्थ पर्याप्त हो एवं जल निकास की उचित सुविधा हो, मे सफलतापूर्वक की जा सकती है। मिर्च की फसल जलभराव वाली स्थिति सहन नही कर पाती है। यद्यपि मिर्च को pH 6.5—8.00 वाली मिट्टी मे भी (वर्टीसोल्स) मे भी उगाया जा सकता है |
मिर्च की खेती के लिये 15 – 35 डिग्री सेल्सियस तापमान तथा गर्म आर्द जलवायु उपयुक्त होती है। तथा फसल अवधि के 130 – 150 दिन के अवधि मे पाला नही पडना चाहिये।
काशी अनमोल (उपज 250 क्वि. / हे.), काशी विश्वनाथ (उपज 220 क्वि./ हे.), जवाहर मिर्च – 283 (उपज 80 क्वि. / हे हरी मिर्च.) जवाहर मिर्च -218 (उपज 18-20 क्वि. / हे सूखी मिर्च.) अर्का सुफल (उपज 250 क्वि. / हे.) तथा संकर किस्म काशी अर्ली (उपज 300-350 क्वि. / हे.), काषी सुर्ख या काशी हरिता (उपज 300 क्वि. / हे.) का चयन करें। पब्लिक सेक्टर की एचपीएच-1900, 2680, उजाला तथा यूएस-611, 720 संकर किस्में की खेती की जा रही है।
मिर्च की पौध तैयार करने के लिए ऐसे स्थान का चुनाव करें जहाँ पर पर्याप्त मात्रा में धूप आती हो तथा बीजो की बुवाई 3 गुणा 1 मीटर आकार की भूमि से 20 सेमी ऊँची उठी क्यारी में करें। मिर्च की पौधशाला की तैयारी के समय 2-3 टोकरी वर्मी कंपोस्ट या पूर्णतया सड़ी गोबर खाद 50 ग्राम फोटेट दवा / क्यारी मिट्टी में मिलाऐं। बुवाई के 1 दिन पूर्व कार्बन्डाजिम दवा 1.5 ग्राम/ली. पानी की दर से क्यारी में टोहा करे। अगले दिन क्यारी में 5 सेमी दूरी पर 0.5-1 सेमी गहरी नालियाँ बनाकर बीज बुवाई करें।
बीज की मात्रा :-
मिर्च की ओ.पी. किस्मों के 500 ग्राम तथा संकर (हायब्रिड) किस्मों के 200-225 ग्राम बीज की मात्रा एक हेक्टेयर क्षेत्र की नर्सरी तैयार करने के लिए पर्याप्त होती है।
रोपाई की तकनीक एवं समय :-
मिर्च की रोपाई वर्षा, शरद, ग्रीष्म तीनों मौसम मे की जा सकती है। परन्तु मिर्च की मुख्य फसल खरीफ (जून-अक्टू.) मे तैयार की जाती है। जिसकी रोपाई जून.-जूलाई मे, शरद ऋतु की फसल की रोपाई सितम्बर-अक्टूबर तथा ग्रीष्म कालीन फसल की रोपाई फर-मार्च में की जाती है।
पोषक तत्व प्रबंधन तकनीक :-
मिर्च की फसल मे उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करे। सामान्यतः एक हेक्टेयर क्षेत्रफल मे 200-250 क्वि गोबर की पूर्णतः सड़ी हुयी खाद या 50 क्वि. वर्मीकंपोस्ट खेत की तैयारी के समय मिलायें। नत्रजन 120-150 किलों, फास्फोरस 60 किलो तथा पोटाश 80 किलो का प्रयोग करे।
कीट | प्रमुख लक्षण | रोकथाम / नियंत्रण के उपाय |
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थ्रिप्स | वैज्ञानिक भाषा मे इसे सिटरोथ्रिटस डोरसेलिस हुड कहते है। छोटी अवस्था मे ही कीट पौधों की पत्तियों एवं अन्य मुलायम भागों से रस चूसते है जिसके कारण पत्तियां उपर की ओर मुड कर नाव के समान हो जाती है। | 1. बुवाई के पूर्व थायोमिथम्जाम 5 ग्राम प्रति किलो बीज दर से बीजोचार करे। 2. नीम बीज अर्क का 4 प्रतिशत का छिडकाव करें। 3. रासायनिक नियंत्रण के अंतर्गत फिप्रोनिल 5 प्रतिशत एस.सी. 1.5 मि. ली. 1 ली. पानी मे मिला कर छिडकाव करें। 4. एसिटामिप्रिड 0.2 ग्रा. 1 ली. या इमिडक्लोप्रिड 0.3 ग्रा. 1 ली. या थायोमिथम्जाम 0.3 ग्र्रा.1 ली. पानी में मिलाकर छिडकाव करें। |
सफ़ेद मक्खी | इस कीट का वैज्ञानिक नाम बेमिसिया तवेकाई है जिसके शिशु एवं वयस्क पत्तियों की निचली सतह पर चिपक कर रस चूसते हैं जिसकी पत्तियां नीचे तरफ मुड़ जाती हैं । | 1. कीट की सतत निगरानी कर तथा संख्या के आधार पर डाईमिथएट की 2 मि.ली. मात्रा 1 पानी मिलकर छिड़काव करें । 2. अधिक प्रकोप की स्थिति में थायमेथाइसम 25 डब्लू जी की 5 ग्राम मात्रा 15 ली. पानी में मिलकर छिड़काव करें । |
माइट | कीट का वैज्ञानिक नाम – हेमीटारयोनेमसलाटस बैंक है। यह बहुत ही छोटे कीट होते है जो पत्तियों की सतह से रस चूसते है जिसम पत्तियां नीचे की ओर मुड जाती है। | 1. नीम की निबोंली के सत का 4 प्रतिशत का छिडकाव करे। 2. डायोकोफाल 2.5 मि.ली. या ओमाइट 3 मि.ली. / ली. पानी मे मिलाकर छिडकाव करें। |
प्रमुख लक्षण | रोकथाम / नियंत्रण के उपाय | |
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डेम्पिंग ऑफ़ आर्द्रगलन | इस रोग का कारण पीथियम एफिजडरमेटम, फाइटोफ्थोरा स्पी. फफूंद जिसम नर्सरी में पौधा भूमि की सतह के पास से गलकर गिर जाता है। | 1. मिर्च की नर्सरी उठी हुयी क्यारी पद्धति से तैयार करे जिसम जल निकास की उचित व्यवस्था हो। 2. बिजोचार कार्बेन्डाजिम 1 ग्रा.दवा 1 किलो बिज से करें। |
एन्थे्रक्लोज | कोलेटोट्राइकम कैप्सीकी नामक फफूंद से होने वाला अतिव्यापक एवं महत्वपूर्ण रोग है। विकसित पौधों पर शाखाओं का कोमल शीर्ष भाग ऊपर से नीचे की ओर सूखना प्रारम्भ होता है। | 1. फसल चक्र अपनाएं तथा स्वस्थ व प्रमाणित बीज बोये बुवाई पूर्व बिजोंचार अवश्य करें। 2. रोग का प्रारंभिक अवस्था मे ही लाइटक्स 50, अइथेन 45, के 0. 25 प्रतिशत धोल का 7 दिन अंतराल पर अवश्यकता अनूसार छिडकाव करें। |
जीवाणु जम्लानी (बैक्टीरियलविल्ट) | इस रोग का कारण स्यूडोमोनस सोलेनेसियेरम नमक जीवाणु है | शिमला मिर्च, टमाटर तथा बैगन में इसका अधिक प्रकोप होता है | | पौध रोपण पूर्व बोरडेक्स मिश्रण के 1 घोल या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम दवा 1 ली. पानी में घोलकर मृदा उपचार अवश्य करें या टोह करें ट्राइकोडर्मा विरिडी या हरजीयनम 4 ग्राम और मेटलेक्सिल 6 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें |
पर्ण कुंचन | यह रोग विषाणु के कारण होता है जो कि तंबाकूपर्ण कुंचन विषाणु से होता है। रोग के कारण पौधें की पत्तियां छोटी होकर मुड जाती है तथा पौधा बोना हो जाता है यह रोग सफेद मक्खी कीट के कारण एक दूसरे पौधे पर फैलता है | 1. नर्सरी मे रोगी पौधौं को समय-समय पर हटाते रहे। तथा स्वस्थ पौधौं का ही रोपण करे। 2. रसचूसक कीटो के नियंत्रण हेतू अनुशंसित दवाओं का प्रयोग करे । |