- भूमि
- तापमान
- उचित समय
- भूमि की तेयारी
- उच्चतम वैरायटी
- बीज की मात्रा
- बीज उपचार
- बिजाई का तरीका
- सिंचाई
- उर्वरक
- खरपतवार
- रोग नियंत्रण
- अब फसल पकने का इंतजार करें
राजमा की खेती सभी प्रकार की मिटटी में की जा सकती है लेकिन बलुई मिटटी या बलुई दोमट मिट्टी इस फसल के लिए अच्छी मानी जाती है । इस फसल के लिए मिटटी का पी एच मान 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए ।
राजमा की अच्छी पैदावार के लिए 10 से 27 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान की आवश्यकता पड़ती है ।
खरीफ में 20 जून से 20 जुलाई के बीच और रबी में 15 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच ।
मिट्टी के भुरभुरा होने तक खेत की दो – तीन बार जोताई करें उसके बाद सुहागे की सहायता से ज़मीन को समतल करें। बुवाई के समय फसल बुवाई से पहले 1 एकड़ खेत में 5 से 6 टन सड़ी गोबर की खाद का इस्तेमाल करे या रासायनिक तोर पर बुवाई के समय 30 किलोग्राम डी ए पी, 30 किलोग्राम मोजैक पोटाश, 5 किलोग्राम सल्फर का इस्तेमाल करे ।
मालवीय-15, मालवीय-137, वीएल-63, अंबर, उत्कर्ष आदि ।
राजमा की 1 एकड़ फसल तैयार करने के लिए 50 से 60 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है ।
राजमा के बीज को बुवाई से पहले उपचारित करे । बीज उपचार करने के लिए 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम को प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से मिलाकर उपचारित करे।
इसकी बुवाई पंक्तियों में की जानी चाहिए। इसमें लाइन से लाइन की दूरी 30 से 40 सेंटीमीटर रखनी चाहिए वहीं पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। इसके बीजों की बुवाई 5 से 6 सेंटीमीटर की गहराई पर करना उचित रहता है । बता दें कि राजमा की बीज थोड़ा हार्ड/ कठोर होता है इसलिए इसको उगने में या अंकुरण में समय लगता है राजमा मिट्टी से बाहर आने के लिए 20 से 25 दिन लग जाते हैं ।
राजमा की खेती में 3 या 4 सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बुवाई के 4 सप्ताह बाद करनी चाहिए। इसके बाद 25 से 30 दिन के अंतराल पर दो सिंचाई करें पर ध्यान रहे की अगर बारिश हो जाती है तो सिंचाई आवश्यकता अनुसार ही करें । साथ में ये भी ध्यान रखें की पोधों में जल भराव की स्थिति न हो ।
पहली और दूसरी सिंचाई के साथ 20 – 20 Kg यूरिया की छिड़काव करें और साथ ही पहली सिंचाई के साथ 30 किलोग्राम नत्रजन का उपयोग करें।
इसके लिए राजमा की फसल में 1 से 2 निराई-गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है । खरपतवार के रासायनिक नियंत्रण के लिए पेन्डीमेथलीन 3.3 लीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 800 से 900 लीटर पानी में घोलकर छिड़क दें।
राजमा में रोग-कीट जैसे कि सफेद मक्खी एवं माहू कीट लगते है। इनके रोकने के लिए कीटनाशक 1.5 मिलीलीटर रोगर या डेमोक्रांन दवा का छिडक़ाव करना चाहिए। वहीं राजमा पर जैसे कि पत्तियों पर मुजैक दिखते ही रोगार या डेमेक्रांन कीटनाशक को 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव करना चाहिए। इसके लावा मोजेक रोगी पौधों को प्रारंभ में ही निकाल देना चाहिए साथ में डाईथेंन जेड 78 या एम 45 को मिलाकर छिडक़ाव करना चाहिए ।
राजमा के पौधों को तैयार होने में तक़रीबन 120 से 130 का समय लग जाता है इसके बाद जब इसकी पत्तिया पीले रंग की दिखाई देने लगे, तब इसके पौधों को भूमि के पास से काट लेना चाहिए । पौधों की कटाई के बाद उन्हें अच्छी तरह से धूप में सूखा लिया जाता है । इसके बाद मशीन की सहायता से इसके बीजो को ठीक से निकाल ले ।