- भूमि
- तापमान
- उचित समय
- भूमि की तेयारी
- उच्चतम वैरायटी
- बीज उपचार
- बिजाई का तरीका
- सिंचाई
- उर्वरक
- खरपतवार
- रोग नियंत्रण
- अब फसल पकने का इंतजार करें
देश में लौकी की खेती को किसी भी क्षेत्र में सफलतापूर्वक किया जा सकता है । इसकी खेती उचित जल निकासी वाली जगह पर किसी भी तरह की भूमि में की जा सकती है । किन्तु उचित जल धारण क्षमता वाली जीवाश्म युक्त हल्की दोमट भूमि इसकी सफल खेती के लिए सर्वोत्तम मानी गयी है । लौकी की खेती में भूमि का पी.एच मान 6 से 7 के मध्य होना चाहिए ।
लौकी की खेती के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु की जरुरत होती है । बीज अंकुरण के लिए 30 से 35 डिग्री सेन्टीग्रेड और पौधों की बढ़वार के लिए 32 से 38 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान सबसे अच्छा होता है ।
जायद, खरीफ, रबी सीजन में लौकी की फसल ली जाती है । जायद की बुवाई मध्य जनवरी, खरीफ मध्य जून से प्रथम जुलाई तक और रबी सितंबर अंत से अक्टूबर के पहले सप्ताह तक लौकी की खेती की जाती है ।
लौकी की खेती में हमें खेत समतलीकरण के पहले ही खाद की उचित व्यवस्था करनी चाहिए । हमें सर्वप्रथम 1 हेक्टेयर भूमि में 7 से 8 ट्राली गोबर की खाद का छिड़काव अच्छे से पूरे खेत में करना चाहिए । रासायनिक उर्वरक हेतु हम 2 बोरी डीएपी तथा ३ बोरी पोटाश का छिड़काव भी अपने खेतों में करवा सकते हैं ज्यादा से ज्यादा उपयुक्त हो तो हम गोबर की खाद का ही प्रयोग करें ।
कोयंबटूर 1, अर्काबहार, उषा समर प्रोलिफिक राउंड, पंजाब गोल, पुसासमर प्रोलीफिकलॉन्ग, नरेंद्र रश्मि, पूसा संदेश, पूसा हाइब्रिड 3, पूसा नवीन इत्यादी ।
रोगों से बचाव के लिए बीज और पौधशाला की मिट्टी को कवकनाशी या थीरम आदि से उपचारित कर लेना चाहिए। बीज और पौधशाला को ट्राइकोडर्मा से भी उपचारित किया जा सकता है ।
लौकी की बुआई के लिए गर्मी के मौसम में 2.5-3.5 व वर्षा के मौसम में 4-4.5 मीटर की दूरी पर 50 से.मी. चौड़ी व 20-25 से.मी. गहरी नाली बना लेते हैं । इन नालियों के दोनों किनारे पर 60-75 से.मी. (गर्मी वाली फसल) व 80-85 से.मी. (वर्षा कालीन फसल) की दूरी पर बीज की बुआई करते हैं । एक स्थान पर 2-3 बीज 4 से.मी. की गहराई पर बोना चाहिए ।
लौकी की खेती में जल की उचित व्यवस्था एक महत्वपूर्ण बिंदु है । जल की व्यवस्था हेतु हमें यह सुनिश्चित करना है कि गर्मियों में लगातार दो से 3 दिन के अंतराल में लौकी के पौधों को पानी मिलता रहे अन्यथा उनमें प्रभाव अच्छा नहीं पड़ता अतः हमें दो से 3 दिनों के अंतराल में पानी देते रहना चाहिए । अगर बात की जाए बरसात के दिनों की तो बरसात के दिनों में भी हमें 5 से 6 दिनों में पानी देते रहना चाहिए अन्यथा ऐसा नहीं करने पर भी लौकी के वृक्षों में प्रभाव पड़ता है ।
बीजो की रोपाई के लगभग 40 दिन बाद 30 kg NPK पौधों में फूल बनने के दौरान डालना चाहिए ।
वर्षाकालीन ऋतु में सिंचाई के बाद खेत काफी मात्रा में खरपतवार उग आते हैं अतः उनको खुर्पी की सहायता से 25-30 दिनों मेें निराई करके खरपतवार निकाल देना चाहिए । लौकी में पौधे की अच्छी वृद्धि एवं विकास के लिए 2-3 बार निराई-गुड़ाई करके जड़ों के पास मिट्टी चढ़ा देना चाहिए । रासायनिक खरपतवारनाशी के रूप में व्यूटाक्लोर रसायन की 2 कि.ग्रा. मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से बीज बुआई के तुरंत बाद छिड़काव करना चाहिए ।
लौकी की फसल जल्द रोगग्रस्त होती है । इसकी फसल में मुख्य रूप से चुर्णी फफूंदी, उकठा (म्लानि), फल मक्खी और लाल कीड़ा जैसे प्रमुख रोग का ज्यादातर प्रकोप रहता है । इसकी जड़ों से लेकर बाकी हिस्सों में कीड़े भी लगते हैं । लौकी की उन्नत खेती एवं उन्नत पैदावार के लिए किसान भाई को इसकी फसल को इन कीटों एवं वायरसों के प्रकोप से भी बचाना जरूरी है इसके लिए किसान भाई को इन कीटों एवं रोगों के प्रति सचेत रहना चाहिए एवं कृषि विशेषज्ञ की सलाह से कीटनाशक या रासायनिक खाद का इस्तेमाल करके फसल का उपचार एवं निवारण करते रहना चाहिए ।
लौकी के फलों की तुड़ाई मुलायम अवस्था में करना चाहिए । फलों का वज़न किस्मों पर निर्भर करता है । फलों की तुड़ाई डण्ठल लगी अवस्था में किसी तेज चाकू से करना चाहिए एवं चार से पाँच दिन के अंतराल पर करना चाहिए ताकि पौधे पर ज्यादा फल लगें ।