- भूमि
- तापमान
- उचित समय
- भूमि की तेयारी
- उच्चतम वैरायटी
- बीज उपचार
- नर्सरी त्यार करना
- बिजाई का तरीका
- बिजाई
- सिंचाई
- खरपतवार नियंत्रण
- उर्वरक
- मिट्टी चढ़ाना या सहारा देना
- रोग व उनकी रोकथाम
- अब फसल पकने का इंतजार करें
टमाटर की खेती अलग-अलग तरह की मिट्टी पर की जा सकती है इसके लिए रेतीली दोमट से लेकर चिकनी मिट्टी, लाल और काली मिट्टी तक पर खेती की जा सकती है अच्छे निकास वाली मिट्टी की पी एच 7-8.5 होनी चाहिए । यह तेजाबी और खारी मिट्टी में भी उगने योग्य फसल है ज्यादा तेजाबी मिट्टी में खेती ना करें । अगेती फसल के लिए हल्की मिट्टी लाभदायक है, जबकि अच्छी पैदावार के लिए चिकनी, दोमट और बारीक रेत वाली मिट्टी बहुत अच्छी है ।
इसके अच्छे उत्पादन के लिए 21 से 23 डिग्री सेल्सियस तक तापमान होना चाहिए ।
उत्तरी राज्यों में बसंत के समय टमाटर की पनीरी नवंबर के आखिर में बोयी जाती है और जनवरी के दूसरे पखवाड़े में खेत में लगाई जाती है । पतझड़ के समय पनीरी की बिजाई जुलाई-अगस्त में की जाती है और अगस्त-सितंबर में यह खेत में लगा दी जाती है । पहाड़ी इलाकों में इसकी बिजाई मार्च-अप्रैल में की जाती है और अप्रैल-मई में यह खेत में लगा दी जाती है ।
टमाटर के पौधे लगाने के लिए अच्छी जोताई और समतल मिट्टी की जरूरत होती है मिट्टी को भुरभुरा बनाने के लिए 4-5 बार जोताई करें। फिर मिट्टी को समतल करने के लिए सुहागा लगाएं । आखिरी बार हल से जोताई करते समय इसमें अच्छी किस्म की रूड़ी की खाद और कार्बोफिउरॉन 4 किलो प्रति एकड़ या नीम केक 8 किलो प्रति एकड़ डालें । टमाटर की फसल को बैड बनाकर लगाया जाता है जिसकी चौड़ाई 80-90 सैं.मी. होती है । मिट्टी के अंदरूनी रोगाणुओं, कीड़ों और जीवों को नष्ट करने के लिए मिट्टी को सूरज की किरणों में खुला छोड़ दें । पारदर्शी पॉलीथीन की परत भी इस काम के लिए प्रयोग की जा सकती है यह परत सूर्य की किरणों को सोखती है जिससे मिट्टी का तापमान बढ़ जाता है और यह मिट्टी के अंदरूनी रोगाणुओं को मारने में सहायक होती है ।
पूसा शीतल पूसा-120, पूसा रूबी, पूसा गौरव, अर्का विकास, अर्का सौरभ, सोनाली, पूसा हाइब्रिड-1, पूसा हाइब्रिड-2, पूसा हाईब्रिड-4, रश्मि और अविनाश-2 ।
फसल को मिट्टी से होने वाली बीमारियों और कीड़े मकौड़ों से बचाने के लिए बीजों को बिजाई से पहले थीरम 3 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 3 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचार करें। इसके बाद टराइकोडरमा 5 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचार करें । बीज को छांव में रख दें और फिर बिजाई के लिए प्रयोग करें ।
टमाटर के बीजो को सीधा खेत में न उगा कर पहले इन्हे नर्सरी (पौध घर) में तैयार किया जाता है यदि पौधे साधारण किस्म के है तो उनके लिए प्रति हेक्टयेर 400 से 500 ग्राम बीजो की जरूरत होती है और यदि संकर किस्म के पौधे है तो उनमे 250 से 300 ग्राम तक बीज ही काफी होते है ।
बीजो को उगाने के लिए उचित आकार की क्यारियाँ तैयार कर लें इसके बाद उन क्यारियों में गोबर की खाद को अच्छे से मिला दें . साथ ही मिट्टी को कार्बोफ्यूरान की उचित मात्रा से उपचारित कर लें ऐसा करने से पौधों को रोग ग्रस्त होने से बचाया जा सकता है ।
उपचारित मिट्टी में बीज को अच्छे से मिला दें उसके बाद तैयार की गयी क्यारियों की उचित समय पर सिंचाई करते रहे इसके बाद लगभग 25 से 30 दिन के समय में टमाटर के पौधे लगाने के योग्य हो जाते है, और उन्हें खेत में लगा दिया जाता है ।
रोपाई से पूर्व कार्बेन्डिजिम या ट्राईटोडर्मा के घोल में पौधों की जड़ों को 20-25 मिनट उपचारित करने के बाद ही पौधों की रोपाई करें। पौध को उचित खेत में 75 से.मी. की कतार की दूरी रखते हुये 60 से.मी के फासले पर पौधों की रोपाई करें ।
रोपाई के समय भूमि और पानी के अनुसार बीज का चयन करे और तरीकेवार रोपाई करें ।
मिट्टी में नमी के आधार पर सिंचाई की आवश्यकता होती है । पहली सिंचाई फूल निकलने से पहले और दूसरी सिंचाई फलियां बनने के समय करनी चाहिए इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हल्की सिंचाई करें और खेत में पानी का ठहराव न रहे। टमाटर में तापमान सहने की क्षमता अच्छी होती है। इसलिए बहुत जल्दी-जल्दी सिंचाई करने की कोई जरूरत नहीं पड़ती है ।
खरपतवार फसल के निमित्त पोषक तत्वों व जल को ग्रहण का फसल को कमजोर करते हैं और उपज को भारी हानि पहुंचाते हैं । फसल की बढ़वार रुक जाती है इसलिए समय-समय पर खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई जरूरी है । यदि खेत में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार, जैसे-बथुआ, सेंजी, कृष्णनील, सतपती अधिक हों तो स्टाम्प-30 (पैंडीमिथेलिन) का छिड़काव करें इससे काफी हद तक खरपतवारों को नियंत्रित कर सकते हैं ।
टमाटर की अधिक उत्पादन के लिए खाद और उर्वरकों का उपयोग से पहले संभव हो तो अपने खेत की मिट्टी का परीक्षण करवा लेना चाहिए इसके बाद ही खाद और उर्वरक का इस्तेमाल करें । वैसे तो टमाटर की खेती के लिए सड़ी हुई गोबर खाद, डीएपी, अमोनियम सल्फेट, म्यूरेट ऑफ पोटाश बुआई से पहले खेत में छिड़के ।
टमाटर मे फूल आने के समय पौधों में मिट्टी चढ़ाना एवं सहारा देना आवश्यक होता है । टमाटर की लम्बी बढ़ने वाली किस्मों को विशेष रूप से सहारा देने की आवश्यकता होती है। पौधों को सहारा देने से फल मिट्टी एवं पानी के सम्पर्क मे नही आ पाते जिससे फल सड़ने की समस्या नही होती है । सहारा देने के लिए रोपाई के 30 से 45 दिन के बाद बांस या लकड़ी के डंडों में विभिन्न ऊॅचाईयों पर छेद करके तार बांधकर फिर पौधों को तारों से सुतली बांधते हैं इस प्रक्रिया को स्टेकिंग कहा जाता है ।
प्रमुख कीट :- हरा तैला, सफेद मक्खी, फल छेदक कीट एंव तम्बाकू की इल्ली ।
प्रमुख रोग :-आर्द्र गलन या डैम्पिंग ऑफ, झुलसा या ब्लाइट, फल संडन ।
नियंत्रण :-
गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें ।
पौधशाला की क्यारियॉ भूमि धरातल से ऊंची रखे एवं फोर्मेल्डिहाइड द्वारा स्टरलाइजेशन करलें ।
क्यारियों को मार्च अप्रैल माह मे पॉलीथीन शीट से ढके भू-तपन के लिए मृदा में पर्याप्त नमी होनी चाहिए ।
गोबर की खाद मे ट्राइकोडर्मा मिलाकर क्यारी में मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए ।
पौधशाला की मिट्टी को कॉपर ऑक्सीक्लोराइड के घोल से बुवाई के 2-3 सप्ताह बाद छिड़काव करें ।
पौध रोपण के समय पौध की जड़ों को कार्बेन्डाजिम या ट्राइकोडर्मा के घोल मे 10 मिनट तक डुबो कर रखें ।
पौध रोपण के 15-20 दिन के अंतराल पर चेपा, सफेद मक्खी एवं थ्रिप्स के लिए 2 से ३ छिड़काव इमीडाक्लोप्रिड या एसीफेट के करें। माइट की उपस्थिति होने पर ओमाइट का छिड़काव करें ।
फल भेदक इल्ली एवं तम्बाकू की इल्ली के लिए इन्डोक्साकार्ब या प्रोफेनोफॉस का छिड़काव करे उपचार के लिए बीजोपचार, कार्बेन्डाजिम या मेन्कोजेब से करना चाहिए । खड़ी फसल मेंं रोग के लक्षण पाये जाने पर मेटालेक्सिल + मैन्कोजेब या ब्लाईटॉक्स का धोल बनाकर छिड़काव करें। चूर्णी फंफूद होने सल्फर धोल का छिड़काव करें ।
जब फलों का रंग हल्का लाल होना शुरू हो उस अवस्था मे फलों की तुड़ाई करें तथा फलों की ग्रेडिंग कर कीट व व्याधि ग्रस्त फलों दागी फलों छोटे आकार के फलों को छाटकर अलग करें । ग्रेडिंग किये फलों को केरैटे में भरकर अपने निकटतम सब्जी मण्डी या जिस मण्डी मे अच्छा टमाटर का भाव हो वहां ले जाकर बेचें ।