- भूमि
- तापमान
- उचित समय
- भूमि की तेयारी
- उच्चतम वैरायटी
- बीज उपचार
- बिजाई का तरीका
- बिजाई
- सिंचाई
- अब फसल पकने का इंतजार करें
जौ सभी प्रकार की कृषि योग्य भूमि में पैदा हो सकती है । इसकी खेती कई तरह की भूमि जैसे बलुई, बलुई दोमट या दोमट मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन दोमट मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है । इसकी बुवाई क्षारीय और लवणीय भूमि में करनी चाहिए इसके साथ ही जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए ।
जौ की बिजाई के लिए मुख्यतया 20-25 डिग्री सेल्सियस तापमान होना चाहिए ।
10 नवम्बर से 25 नवम्बर के बीच का समय बिजाई के लिए बढ़िया माना जाता है ।
नरमा या धान की कटाई के बाद भूमि की जुताई करके उसमे पानी दे । पानी देने के 7-10 दिन बाद (मौसम के अनुसार) भूमि में 80-100 क्विंटल रूढ़ी की खाद डालकर या 50 Kg सुपर और 30 kg पोटाश डालकर दोबारा से बुवाई करे बुवाई के लिए कल्टीवेटर – तोई – हेरो इत्यादी का इस्तेमाल करें ।
ज्योति, आजाद, के-15, हरीतिमा, प्रीति, जागृति, लखन, मंजुला, नरेंद्र जौ-1,2 और 3, के-603, एनडीबी-1173 ।
3 ग्राम थाईरम या एग्रोसन जी.एन. या कैपटन या विटावेक्स प्रति किलो बीज से उपचार किया जा सकता है अगर उपचारित बीज का उपयोग कर रहे हो तो उन्हें उपचारित न करें ।
जौ की बिजाई 2 तरीके से कर सकते है छिटा विधि और कतारों में । बिजाई के लिए कतारों की दुरी 20 cm तक होनी चाहिए ।
बिजाई के समय भूमि और पानी के अनुसार बीज का चयन करे । बिजाई के समय 50 से 60 Kg जौ के बीज में 50 KG DAP मिलाकर के बिजाई करें ।
पहली सिंचाई: बिजाई के 25 से 30 दिन के अंदर पहली सिंचाई करें और पहली सिंचाई के साथ 25-30 Kg प्रति एकड़ यूरिया खाद डालें ।
दूसरी सिंचाई: बिजाई के 50 से 60 दिन के अंदर दूसरी सिंचाई करें ।
नोट: दूसरी सिंचाई के बाद यह भी चेक करे की जौ में कोई खरपतवार तो नहीं है अगर है तो खरपतवारनाशक का छिड़काब करें ।
तीसरी सिंचाई: बिजाई के 80 से 85 दिन के अंदर तीसरी सिंचाई करें ।
नोट: चौथी सिंचाई अथवा दाना बनते टाइम ध्यान रखे की फसल में कोई बीमारी जेसे सुंडी – तेला तो नहीं है अगर है तो कीटनाशक का छिडकाव करें ।
आखरी सिंचाई: बिजाई के 100 से 105 दिन के अंदर अथवा जब फसल में दाना बन रहा हो चौथी सिंचाई करें ।
फसल के पकने का समय 01 अप्रैल से 12 अप्रैल के लगभग फसल पक जाती है । फसल पकने पर पत्तियां सूखने लग जाती है और बाली पिली पड़ जाती है । जौ की कटाई से पहले बाली हाथ में लेकर मसलकर देखे के बाली पूरी पकी है या नहीं । फसल पकने के बाद अपने सुविधाजनक साधनों से फसल की कटाई और कढ़ाई करे ।