- परिचय
- गलघोटू रोग कारक
- गलघोटू रोग संक्रमण
- गलघोटू रोग लक्षण
- गलघोटू रोग की रोकथाम
- गलघोटू रोग से बचाव
- हेमोरेजिक सेप्टिसेमिया टीकाकरण
- टीकाकरण अनुसूची
- गलघोटू रोग का उपचार
गलघोटू (Hemorrhagic Septicemia ) एक घातक संक्रामक बीमारी है जो मुख्यत: गाय भैंस में मानसून के मौसम के दौरान होती है साधारण भाषा में गलघोटू रोग “घुरखा” , ” घोटुआ ” , ” डहका ” आदि के नाम से जाना जाता है । यह रोग भेड़,बकरियों एवं सूअरों को प्रभावित करता है ।
पशुओ के इस रोग में पशुपालको को अत्याधिक नुक्सान का सामना करना पड़ता है । गलघोटू रोग के कारण पशुओ की मृत्यु दर अधिक होती है यह रोग छह से दो वर्ष की आयु के जानवरो में होती है ।
यह रोग ‘पस्तुरिल्ला मल्टोसीदा” नामक जीवाणु से होता है गलघोटू रोग का जीवाणु अधिक आद्रता वाले मौसम में सक्रिय होता है और यह 2 से ३ सप्ताह तक मिट्टी एवं घास में सक्रिय रह सकता है ।
यह रोग अस्वस्थ पशु से स्वस्थ पशु में उनके सांस एवं स्त्राव से फैलता है । ख़राब पानी एवं संक्रमित भोजन कराने से पशुओ को यह बीमारी लग जाती है ।
गलघोटू रोग में अचानक से तेज़ बुखार {१०३ -१०५ } हो जाता है ठण्ड लगने लगती है अत्यधिक लार का बहना , आँखों में सूजन आना , गले में सूजन होने से सास लेते समय दर्द होता है पशु खाना पीना बंद कर देता और पशु सुस्त हो जाता है समय पर इलाज न होने की वजह से पशु की मृत्यु हो जाती है । नैदानिक संकेतो के शुरुआत में 6 से ४८ घंटो के बाद पशु की मृत्यु हो सकती है ।
- गलघोटू रोग की पुख्ता जांच होने पर सर्वप्रथम संदेहात्मक वस्तु जैसे की दुघ एकत्र करने का पात्र, वाहन एवं अन्य यन्त्र को हल्के अम्ल क्षार या जीवाणु नाशक द्रव्य से साफ़ करना चाहिए ।
- प्रभावित क्षत्रो में वाहनों एवं पशु की आवाजाही पूर्णतयः रोक देना चाहिए ।
- अस्वस्थ पशु को स्वस्थ पशुओ से अलग स्थान पर रखना चाहिए ताकि रोग स्वस्थ पशुओ में ना फ़ैल सके।
- गाय एवं भैस इस रोग के प्रति अधिक संवेदनशील है ।
- पशु आवास को स्वच्छ रखें रोग की संभावना होने पर तुरंत पशुचिकित्सक से संपर्क करें ।
- ०.५ % फिनाइल को १५ मिनट तक रखने पर इस रोग के जीवाणु मर जाते है ।
- जिस स्थान पर पशु मरा हो उस स्थान को कीटनाशक दवाइयों से धोना चाहिए ।
- इस रोग से बचाव करने के लिए पशुओ का टीकाकरण एक मात्र उपाय है वर्षा ऋतू से दो महीने पूर्व {मई – जून } में टीका लगा देना चाहिए ।
- पशुओ को उचित मात्रा में जगह प्रदान करें ।
- एक ही बाड़े में जरुरत से अधिक जानवर न रखें ।
- बाड़े को सूखा एवं साफ़ रखें ।
Haemorrhagic Septicaemia टीकाकरण करने से यह रोग बरसात के मौसम में नहीं फैलता,
टीकाकरण से यह रोग नियंत्रित किया जा सकता है । एक बार टीकाकरण से पशु में छह महीने से
एक साल तक प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हो जाती है । यह वैक्सीन बाजार में रक्षा एच .एस,
रक्षा एच.एस + बी.क्यू एवं रक्षा त्रयोवेक नाम से उपलब्ध है । गाय तथा भैंस में मे वैक्सीन की
2 मिली मात्रा त्वचा के नीचे दी जाती हैैै ।
पहली खुराक – महीने की आयु के जानवरो को
बूस्टर खुराक – प्रथम टीकरण के 6 महीने बाद
पुनः टीकाकरण – वार्षिक
एंटीबायोटिक संवेदनशीलता परिक्षण विशेष रूप से आवश्यक है जिसके बाद ही पशु में एंटीबायोटिक दिया जाना चाहिए । पेनिसिलिन, अमोक्सीसीलीन, टेट्रासाइक्लिन आदि इस रोग के लिए प्रभावी एंटीबायोटिक दवा है ।