कपास की फसल में लगने वाले विभिन्न प्रकार के कीट एवं उनका प्रबंधन

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कपास संपूर्ण भारत के किसानों के लिए एक नकदी फसल मानी जाती है। इसकी खेती केवल भारत में ही नहीं बल्कि पुरे विश्वभर में की जाती है, लेकिन कपास के उत्पादन में भारत का स्थान सबसे पहले आता है। चूँकि कपास एक नकदी फसल है, इसलिए इसकी खेती किसानों की अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पिछले कुछ वर्षों में कपास फसल के उत्पादन और कीमत में काफी उछाल देखी गयी है। कपास की फसल से जहाँ एक तरफ किसान अधिक आय प्राप्त करते हैं तो वहीं दूसरी तरफ किसानों को अपनी फसल से कीटों और रोगों के चलते काफी नुकसान भी झेलना पड़ता है। जी हाँ अक्सर मौसम में अधिक नमी और अनियमितता की वजह से फसल में विभिन्न प्रकार के कीटों का आक्रमण हो जाता है, जो फसलों को भारी हानि पहुंचाते हैं साथ ही किसानों की मेहनत और आय को भी प्रभावित करते हैं। इसलिए  यदि आपने भी अपने खेतों में कपास की खेती की है एवं उसमें किसी भी प्रकार के कीटों के हमले का सामना कर रहे हैं, तो आप इस लेख में बताये गए सुझाव के अनुसार अपनी कपास की फसल को सुरक्षित कर सकते हैं।  

  • कपास रेशे वाली फसल हैं यह कपडे़ तैयार करने का नैसर्गिक रेशा हैं।
  • मध्यप्रदेश में कपास सिंचित एवं असिंचित दोनों प्रकार के क्षेत्रों में लगाया जाताहैं।
  • प्रदेश में कपास फसल का क्षेत्र 7.06 लाख हेक्टेयर था तथा उपज 426.2 किग्रा लिंट/हे.
  • बीटी कपास में रस चूसक कीटों के नियंत्रण के लिये 2-3छिडकाव कर नापर्याप्त होता हैं जबकि पहले में देश की कुल कीटनाशक खपत का लगभग आधाभाग लग जाता था।
  • बी.टी.कपास से अधिकतम उपज दिसम्बर मध्य तक लेली जाती हैं जिससे रबी मौसम गेहूँ का उत्पादन भी लिया जा सकता हैं।
संकर किस्मउपयुक्त क्षेत्र जिलेविशेष
डी.सी.एच. 32 (1983)धार, झाबुआ, बड़वानी खरगौनमहीन रेशेकी किस्म
एच-8 (2008)खण्डवा, खरगौन व अन्य क्षेत्रजल्दी पकने वाली किस्म 130-135दिन
रासी 659 बीजी II (Rasi 659 BG II)सिरसा,फतेहाबाद,हिसार,आदियह किस्म मध्यम भारी मिट्टी में लगाई जाती है।
इसके बड़े बॉल होते है ।
यह किस्म 145-160 दिन की होती है।
अजीत 155 बीजी II (Ajeet 155 BG II)सिरसा,फतेहाबाद,हिसार,आदियह किस्म मध्यम हल्की मिट्टी में लगाई जाती है
इसके बॉल मध्यम आकर के होते है।
यह किस्म 140-150 दिन की होती है।

यदि पर्याप्त सिंचाई सुविधा उपलब्ध हैं तो कपास की फसल को मई माह में ही लगाया जा सकता हैं सिंचाई की पर्याप्त उपलब्धता न होने पर मानसून की उपयुक्त वर्षा होते ही कपास की फसल लगावें। कपास की फसल को मिट्टी अच्छी भूरभूरी तैयार कर लगाना चाहिए। सामान्यतः उन्नत जातियों का 2.5 से 3.0 किग्रा. बीज (रेशाविहीन/डिलिन्टेड) तथा संकर एवं बीटी जातियों का 1.0 किग्रा. बीज (रेशाविहीन) प्रति हेक्टेयर की बुवाई के लिए उपयुक्त होता हैं। उन्नत जातियों में चैफुली 45-60*45-60 सेमी. पर लगायी जाती हैं (भारी भूमि में 60*60, मध्य भूमि में 60*45, एवं हल्की भूमि में ) संकर एवं बीटी जातियों में कतार से कतार एवं पौधे से पौधे के बीच की दूरी क्रमशः 90 से 120 सेमी. एवं 60 से 90सेमी रखी जाती हैं |

प्रजातिनत्रजन (किलोग्राम/हे. )फास्फोरस/हे.पोटाश/हे.गंधक (किग्रा/हे.)
उन्नत80-12040-6020-3025
संकर150754025
 15% बुआई के समय एक चैथाई 30 दिन, 60 दिन, 90 दिन पर बाकी 120 दिनआधा बुआई के समय एवं बाकी 60 दिन परआधा बुआई के समय एवं बाकी 60 दिन परबुआई के समय
  • उपलब्ध होने पर अच्छी तरह से पकी हुई गोबर की खाद/कम्पोस्ट 7 से 10 टन/हे. (20 से 25 गाड़ी) अवश्य देना चाहिए ।
  • बुआई के समय एक हेक्टेयर के लिए लगने वाले बीज को 500 ग्राम एजोस्पाइरिलम एवं 500 ग्राम पी.एस.बी. से भी उपचारित कर सकते है जिससे 20 किग्रा नत्रजन एवं 10 किग्रा स्फुर की बचत होगी।
  • बोनी के बाद उर्वरक को कालम पद्धति से देना चाहिए। इस पद्धति से पौधे के घेरे/परिधि पर 15 सेमी गहरे गड्ढे सब्बल बनाकर उनमें प्रति पौधे को दिया जाने वाला उर्वरक डालते है व मिट्टी से बंद कर देते है।

एकान्तर (कतार छोड़ ) पद्धति अपना कर सिंचाई जल की बचत करे बाद वाली सिंचाईयाँ हल्की करें,अधिक सिंचाई से पौधो के आसपास आर्द्रता बढ़ती है व मौसम गरम रहा तो कीट एवं रोगों के प्रभाव की संभावना बढ़ती है ।

कीट पहचान हानि नियंत्रण के उपाय
हरा मच्छर हरामछर पंचभुजाकार हरे पीले रंग के अगले जोड़ी पंख पर एक काला धब्बा पाया जाता है शिशु -व्यस्क पत्तियों के निचले भाग से रस चूसते है। पत्तिया क्रमशः पीली पड़कर सूखने लगती है। 1.पूरे खेत में प्रति एकड़ 10 पीले प्रपंच लगाये। 2.नीम तेल 5 मिली.टिनोपाल/सेन्डोविट 1 मिली.प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।3.रासायनिक कीटनाशी थायोमिथाक्ज़्म 25डब्लुजी – 100 ग्राम सक्रिय तत्व/हेएसिटामेप्रिड 20एस.पी. – 20 ग्राम सक्रिय तत्व/हे.इमिडाक्लोप्रिड 17.8एस.एल – 200 मिली.सक्रिय तत्व/हे ट्रायजोफास 40ईसी 400 मिली सक्रिय तत्व/हे.एक बार उपयोग में लाई गई दवा का पुनः छिड़काव नहीं करें।
सफेदमक्खी हरामछर हल्के पीले रंग की जिसका शरीर सफेद मोमीय पाउडर से ढंका रहता है पत्तियो से रस चूसती है एवं मीठा चिपचिपा पदार्थ पौधे की सतह पर छोड़ते है वायरस का संचरण भी करती है।
तेला हरामछर अत्यंत छोटे काले रंग के कीट पत्तियो की कनचली समह से खुरचकर हरे पदार्थ का रस पान करते है।
मिलिबग हरामछर मादा पंखी विहीन,शरीर सफेद पाउडर से ढंका। शरीर पर काले रंग के पंख। तने,शाखाओं,पर्णवृतों,फूल पूड़ी एवं घेटोंपर समूह में रस चूसकर मीठा,चिपचिपा पदार्थ उत्सर्जित करती है।

देशी/उन्नत जातियों की चुनाई प्रायः नवम्बर से जनवरी-फरवरी तक, संकर जातियों की अक्टूबर-नवम्बर से दिसम्बर-जनवरी तक तथा बी.टी. किस्मों की चुनाई अक्टूबर से दिसम्बर तक की जाती है। कहीं-कहीं बी.टी. किस्मों की चुनाई जनवरी-फरवरी तक भी होती है। देशी/उन्नत किस्मों से 10-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, संकर किस्मों से 13-18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथी बी.टी. किस्मों से 15-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक औसत उपज प्राप्त होती है।

  • कपास की चुनाई प्रायः ओस सूखन के बाद ही करनी चाहिए।
  • अविकसित, अधखिले या गीले घेटों की चुनाई नहीं करनी चाहिए ।
  • चुनाई करते समय कपास के साथ सूखी पत्तियाँ, डण्ठल, मिट्टी इत्यादि नहीं आना चाहिए।
  • चुनाई पश्चात् कपास को धूप में सुखा लेना चाहिए क्योंकि अधिक नमी से कपास में रूई तथा बीज दोनों की गुणवत्ता में कमी आती है । कपास को सूखाकर ही भंडारित करें क्योंकि नमी होने पर कपास पीला पड़ जायेगा व फफूंद भी लग सकती हैं।
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