- भूमि
- तापमान
- गन्ना बोने का समय
- भूमि का चुनाव एवं तैयारी
- उच्चतम वैरायटी
- बीज की मात्रा
- बीज उपचार
- बिजाई का तरीका
- सिंचाई
- उर्वरक
- खरपतवार
- रोग नियंत्रण
- अब फसल पकने का इंतजार करें
- गन्ने की खेती से सम्बंधित अन्य विचार
गन्ने की खेती किसी भी तरह की उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती है किन्तु गहरी दोमट मिट्टी में इसकी पैदावार अधिक मात्रा में प्राप्त हो जाती है । इसकी खेती के लिए उचित जल निकासी वाली भूमि की आवश्यकता होती है क्योकि जलभराव से फसल के ख़राब होने की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है । सामान्य P.H. मान वाली भूमि गन्ने की खेती के लिए उपयुक्त होती है । गन्ने के पौधों को शुष्क और आद्र जलवायु की आवश्यकता होती है । इसके पौधे एक से डेढ़ वर्ष में पैदावार देना आरम्भ करते है जिस वजह से इसे विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है इन परिस्थितियों में भी पौधे ठीक से विकास करते है । इसकी फसल को सामान्य वर्षा की आवश्यकता होती है तथा केवल 75 से 120 CM वर्षा ही पर्याप्त होती है ।
गन्ने के बीजो को आरम्भ में अंकुरित होने के लिए 20 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है तथा जब इसके पौधे विकास कर रहे होते है तब उन्हें 21 से 27 डिग्री तापमान चाहिए होता है । इसके पौधे अधिकतम 35 डिग्री तापमान को ही सहन कर सकते है ।
शीतकालीन बुवाई :- गन्ने की अधिक पैदावार लेने के लिए सर्वोत्तम समय अक्टूबर – नवम्बर है ।
बसंतकालीन बुवाई :- इसमें फरवरी से मार्च तक फसल की बुवाई करते है।
गन्ने के लिए काली भारी मिट्टी, पीली मिट्टी, तथा रेतेली मिट्टी जिसमें पानी का अच्छा निकास हो गन्ने हेतु सर्वोत्तम होती है । गन्ना बहुवर्षीय फसल है, इसके लिए खेत की गहरी जुताई के पश्चात् 2 बार कल्टीवेटर व आवश्यकता अनुसार रोटावेटर व पाटा चलाकर खेत तैयार करें, मिट्टी भुरभुरी होना चाहिए इससे गन्ने की जड़े गहराई तक जाएगी और पौधे को आवश्यक पोषक तत्व मिलेंगे। खेत की पहली जुताई के बाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 12 से 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को खेत में डाल दे | इसके बाद खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर दी जाती है, इससे खेत की मिट्टी में गोबर की खाद ठीक तरह से मिल जाती है | गोबर की खाद को मिट्टी में मिलाने के पश्चात् भूमि को नम करने के लिए उसमे पानी लगाकर पलेव कर दिया जाता है | पलेव के बाद जब भूमि ऊपर से सूख जाती है, तो रोटावेटर लगाकर जुताई कर दी जाती है | इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है | भुरभुरी मिट्टी में पाटा लगाकर खेत को समतल कर दिया जाता है | दीमक एवं आंकुर बेधक नियंत्रण हेतु क्लोरोपाईरीफास 20 प्रतिशत ई.सी. घोल 1.5 ली./हे. की दर से 800-1000 ली0 पानी में घोलकर अथवा फोरेट-10 जी का या दीमक नियंत्रण हेतु फेनक्लरेट 0.4 प्रतिशत धूल 25 किग्रा./हे. ड़ालना चाहिए।
अनुमोदित किस्में :-
शीघ्र (9 से 10 माह) में पकने वाली वाली – को.(co) 7314, को.(co) 64, को.सी. 671
मध्य से देर (12-14 माह) में पकने वाली – को.(co) 6304, को.7318, को. 6217
नई उन्नत किस्में :-
शीघ्र (9 -10 माह ) में पकने वाली – को. 8209, को. 7704, को. जवाहर 86-141, को. जवाहर 86-572
मध्यम से देर (12-14 माह ) में पकने वाली – को. जवाहर 94-141, को.जवाहर 86-2087
गन्ने के लिए 100-125 क्वि0 बीज या लगभग 1 लाख 25 हजार आंखें/हेक्टर गन्ने के छोटे छोटे टुकडे इस तरह कर लें कि प्रत्येक टुकड़े में दो या तीन आंखें हों ।
इन टुकड़ों को कार्बेंन्डाजिम-2 ग्राम प्रति लीटर के घोल में 15 से 20 मिनट तक डुबाकर कर रखें। इसके बाद टुकड़ों को नालियों में रखकर मिट्टी से ढंक दे। एवं सिंचाई कर दें या सिंचाई करके हलके से नालियों में टुकड़ों को दबा दें । इससे डंडियों के अंकुरण के समय उन्हें रोग लगने का खतरा कम हो जाता है, औऱ डंडियों का विकास भी अच्छे से होता है |
नालियों के बीच की दुरी 4 से 4.5 या 5 फिट रखें पौधे से पौधे की दुरी 1 से 1.5 फीट रखें ।
गर्मी के दिनों में भारी मिट्टी वाले खेतों में 8-10 दिन के अंतर पर एवं ठंड के दिनों में 15 दिनों के अंतर से सिंचाई करें। हल्की मिट्टी वाले खेतों में 5-7 दिनों के अंतर से गर्मी के दिनों में व 10 दिन के अंतर से ठंड के दिनों में सिंचाई करना चाहिये । सिंचाई की मात्रा कम करने के लिये गरेड़ों में गन्ने की सूखी पत्तियों की पलवार की 10-15 से.मी. तह बिछायें । गर्मी में पानी की मात्रा कम होने पर एक गरेड़ छोड़कर सिंचाई देकर फसल बचावें कम पानी उपलब्ध होने पर ड्रिप (टपक विधि) से सिंचाई करने से भी 60 प्रतिशत पानी की बचत होती है।
गन्ने में 300 कि. नत्रजन (650 किलो यूरिया), 80 किलो स्फुर, (500 कि0 सुपरफास्फेट) एवं 90 किलो पोटाश (150 कि.ग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश) प्रति हेक्टर देवें। स्फुर व पोटाश की पूरी मात्रा बोनी के पूर्व गरेडों में देना चाहिए । नत्रजन की मात्रा अक्टू. में बोई जाने वाली फसल के लिए संभागों में बांटकर अंकुरण के समय, कल्ले निकलते समय, हल्की मिट्टी चढ़ाते समय एवं भारी मिट्टी चढ़ाते समय दें । फरवरी में बोई गई फसल में तीन बराबर भागों में अंकुरण के समय हल्की मिट्टी चढ़ाते समय एवं भारी मिट्टी चढ़ाते समय दें । गन्ने की फसल में नत्रजन की मात्रा की पूर्ति गोबर की खाद या हरी खाद से करना लाभदायक होता है। जस्ते की कमी होने पर बुवाई के साथ 25 किलो जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर अवश्य डालें।
उगाने के लगभग 4 माह तक खरपतवारों की रोकथाम आवश्यक होती है। इसके लिए 3-4 बार निंदाई करना चाहिए । रासायनिक नियंत्रण के लिए अट्राजिन 160 ग्राम प्रति एकड़ 325 लीटर पानी में घोलकर अंकुरण के पूर्व छिड़काव करें । बाद में ऊगे खरपतवारों के लिए 2-4 डी सोडियम साल्ट 400 ग्राम प्रति एकड़ 325 ली पानी में घोलकर छिड़काव करें । छिड़काव के समय खेत में नमी होना आवश्यक है।
लाल सडन रोग :- इस रोग का पता गन्ने को फाड़कर देखने पर ही पता चलता है । जिसमे इसके भीतरी भाग में लाल और सफ़ेद रंग की लाइन दिखने लगती है । इस रोग से बचाव के लिए कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा से बीजो को उपचारित कर लगाना होता है ।
कंडुआ रोग :- इस रोग से प्रभावित पौधा लम्बा और पतला हो जाता है तथा पौधे का सम्पूर्ण भाग काला हो जाता है । इस रोग से बचाव के लिए कार्बेन्डाजिम या कार्बोक्सिन की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर किया जाता है ।
उकठा रोग :- उकठा रोग पौधों पर कटाई से पूर्व देखने को मिलता है । यह रोग गन्ने को सूखा देता है तथा उसे चीरने पर भीतरी भाग में सफ़ेद फफूंद दिखाई देने लगती है इसके साथ ही तना पूरा खोखला हो जाता है । इस रोग से बचाव के लिए कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों की जड़ो पर करते है ।
ग्रासी सूट :- इस रोग से ग्रसित गन्ना पतला और झाड़ीनुमा हो जाता है तथा पत्तिया भी पीली और सफ़ेद हो जाती है । इस रोग से बचाव के लिए बीज की रोपाई से पहले उन्हें उपचारित अवश्य कर ले ।
सफ़ेद मक्खी :- इस रोग का कीट पत्तियों की निचली सतह पर रहकर उसका पूरा रस चूस लेता है, जिससे पत्तिया पीली पढ़कर सूख जाती है । पौधों पर एसिटामिप्रिड या इमिडाक्लोप्रिड का छिड़काव कर इस रोग से बचा जा सकता है |
पाईरिल्ला :- इस क़िस्म का रोग पौधों पर बारिश के मौसम में ही देखने को मिलता है । इस रोग का कीट पौधों की पत्तियों पर चिपचिपा पदार्थ छोड़ देता है, जिससे पत्ती काले रंग की हो जाती है । इस रोग से बचाव के लिए क्विनालफॉस 25 ई. सी. या मैलाथियान 50 ई. सी. का घोल बनाकर पौधों पर छिड़काव करे ।
गन्ने की फसल को तैयार होने में 10 से 12 महीने का समय लग जाता है । इसके पौधों की कटाई भूमि की सतह के पास से ही करनी होती है फसल की कटाई उस समय करें जब गन्ने में सुक्रोज की मात्रा सबसे अधिक हो क्योंकि यह अवस्था थोड़े समय के लिये होती है और जैसे ही तापमान बढ़ता है सुक्रोज का ग्लूकोज में परिवर्तन प्रारम्भ हो जाता है और ऐसे गन्ने से शक्कर एवं गुड़ की मात्रा कम मिलता है । कटाई पूर्व पकाव सर्वेक्षण करें इस हेतु रिफलेक्टो मीटर का उपयोग करें यदि माप 18 या इसके उपर है तो गन्ना परिपक्व होने का संकेत है। गन्ने की कटाई गन्ने की सतह से करें ।
गन्ने की फसल के कतारों के मध्य कम समय में तैयार होने वाली फसलों चना, मटर, धनिया, आलू, प्याज आदि फसलें लें सकते है ।अगर सिंचाई की कमी है तो आप जमीन पर सुखी पत्तियों का कचरा बिछाकर पूर्ण नमी बनाये रख सकते है ।
खाली जगह भरें :– अगर कहीं अंकुरण सही तरीके से न हुआ है तो उसमें नये गन्ने के टुकड़े सिंचाई करें।
मिट्टी चढ़ाना :- गन्ने को गिरने से बचाने के लिए रीजर की सहायता से मिट्टी चढ़ाना चाहिए ।अक्टूबर – नवम्बर में बोई गई फसल में प्रथम मिट्टी फरवरी – मार्च में तथा अंतिम मिट्टी मई माह में चढ़ाना चाहिए । कल्ले फूटने के पहले मिट्टी नहीं चढ़ाना चाहिए ।
बंधाई :- गन्ना न गिरे इसके लिए कतारों के गन्ने की झुंडी को गन्ने की सूखी पत्तियों से बांधना चाहिए । यह कार्य अगस्त के अंत में या सितम्बर माह में करना चाहिए।
सीओवीसी-99463 |
कर्नाटक |
नमी दबाव स्थितियों के लिए उपयुक्त, उपज क्षमता-60-70 टन प्रति एकड़ (1483-1730 क्विंटल प्रति हैक्टर), उच्च उपजवर्धक (70-80 टन प्रति एकड़), उच्च तलशाखन, बेहतर गुणवत्ता, चौड़ी पंक्ति रोपण के लिए उपयुक्त, बेहतर रतून उत्पादकता, सूखा सहिष्णु और गुड़ बनाने के लिए अति उत्तम, परिपक्वताः मध्यम पछेती। |
सीओएलके-09204(इक्षु-3) |
पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, राजस्थान, उत्तर प्रदेश एवं पश्चिमी क्षेत्र |
सिंचित एवं जलभराव स्थिति के लिए उपयुक्त, गन्ना उपज क्षमता-82.8 टन प्रति हैक्टर और सीसीएस उपज 9.30 टन प्रति हैक्टर, एक मध्यम-पछेती क्लोन, इसमें झड़न और पुष्पण नहीं होता है, बेहतर रतून उत्पादकता और पोषकतत्व अनुक्रियाशील, परिपक्वता-मध्यम पछेती (11-12 माह), रेड रॉट एवं स्मट से मध्यम प्रतिरोधी। |
सीओपीबी-94(सीओपीबी-10181) |
पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखंड के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र एवं उत्तर प्रदेश के उत्तरी तथा पश्चिमी क्षेत्र |
सामान्य सिंचित स्थिति, उपोष्ण जलवायु, संस्तुत उर्वरक खुराक के साथ वसंत ऋतु में रोपण के लिए उपयुक्त, उपज क्षमता-84-87 टन प्रति हैक्टर, उच्च उपजवर्धक, उच्च शर्करा तत्व, परिपक्वता-मध्यम पछेती (11-12 माह), रेड रॉट प्रतिरोधी। |
यूपी (सीओए-11321) |
पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल एवं असोम |
सिंचित, सामान्य उर्वरता स्तर के लिए उपयुक्त, दबाव से सहिष्णु, उपज क्षमता-74.74 टन प्रति हैक्टर, रस में सुक्रोज (17.90 प्रतिशत), सीसीएस (8.76 टन प्रति हैक्टर) और गन्ना में pol (13.23 प्रतिशत), परिपक्वता-अगेती, प्रमुख रोगों से मध्यम प्रतिरोधी और प्रमुख नाशीजीवों से न्यून प्रतिरोधी। |
श्रीमुखी (सीओए-11321) |
आंध्रप्रदेश |
आश्वस्त सिंचाई, सीमित सिंचाई, पछेती रोपण, बारानी, जलभराव और लाल सड़न रोग संवेदनशील क्षेत्रों के लिए उपयुक्त, उपज क्षमता-111.31 टन प्रति हैक्टर, सीसीएस (13.59 टन प्रति हैक्टर), रस (17.16) में सुक्रोज (प्रतिशत) और गन्ना (13.73) में pol(प्रतिशत), परिपक्वता-अगेती, लाल सड़न से प्रतिरोधी, स्मट एवं मुरझान से संवेदनशील, अगेती प्ररोहबेधक नाशीजीव से कम संवेदनशील और अंतर ग्रंथिबेधक से उच्च संवेदनशील। |
इक्षु 4 सीओएलके-11206 |
पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, राजस्थान, उत्तरप्रदेश के मध्य एवं पश्चिमी इलाके |
सिंचित रोपण के लिए उपयुक्त, उपज क्षमता-91.50 टन प्रित हैक्टर, उच्च उपजवर्धक एवं मध्यम-परिपक्वता वाली वाणिज्यिक किस्म, नमी दबाव स्थिति के तहत बेहतर निष्पादन, परिपक्वताः मध्य-पछेती, सभी केंद्रों में लाल सड़न और स्मट रोगों से मध्यम प्रतिरोधी। |
इक्षु 5 सीओएलके-11203 |
पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, राजस्थान, उत्तर प्रदेश के मध्य एवं पश्चिमी क्षेत्र |
सिंचित रोपण के लिए उपयुक्त, उच्च उपजवर्धक, लाल सड़न रोग प्रतिरोधी वाणिज्यिक किस्म, उपज क्षमता-81.97 टन प्रति हैक्टर, सीसीएस (10.52 टन प्रति हैक्टर), रस (18.41) में सुक्रोज (प्रतिशत) और गन्ना (13.44) में pol (प्रतिशत) परिपक्वता-मध्यम पछेती, अधिकतर केंद्रों में लाल सड़न एवं स्मट रोगों से मध्यम रोगी, लगभग सभी स्थानों में मुख्य नाशीकीटों से कम संवेदनशील। |
सीओ-06022(06 सीओ-022) |
तमिलनाडु और पुड्डुचेरी की पारिस्थितिकी |
प्रायद्वीपीय क्षेत्र की सामान्य स्थितियों तथा सूखा संवेदनशील क्षेत्रों के लिए उपयुक्त, उपज क्षमता- 105.23 टन प्रति हैक्टर, सीसीएस (13.76 टन प्रति हैक्टर), रस (18.88) में सुक्रोज (प्रतिशत) और परिपक्वता अवधि : 10 माह (300 दिन), अगेती, वर्तमान रोगजनकों/लाल सड़न रोग उत्पन्न करने वाले नाशीकीटों से मध्यम प्रतिरोधी। |
बाहुबली (सीसीएपफ-0517) |
कर्नाटक |
दक्षिण कर्नाटक के सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त, उपज क्षमता : 200-225 टन प्रति हैक्टर, बेहतर रतून उत्पादकता, सामान्य झड़न के साथ गहरा जड़ स्थापन, परिपक्वताः मध्यम-पछेती (12-14 माह), पर्णिल रोग से प्रतिरोधी, पर्ण बरुथी और अंतर ग्रंथि नाशीजीव से कम संवेदनशील। |
चारचिका (सीओओआर-10346) |
ओडिशा |
गैर-सड़न, सिंचित ऊपरी भूमि और मध्यम भूमि के लिए उपयुक्त, उचित जल प्रबंधन के साथ चावल भूमि में भी उगाई जा सकती है, उपज क्षमता-100 टन प्रति हैक्टर, परिपक्वताः मध्यम-पछेती (360 दिन), जलभराव और नमी दबाव से सहिष्णु। |
स्त्रोत : खेती पत्रिका, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, कृषि अनुसंधान भवन, पूसा गेट, नई दिल्ली-12